Pakistan-US News / पाकिस्तान को आखिर क्यों गले लगा रहा US? पूर्व CIA अधिकारी ने कर दिया बड़ा खुलासा

पाकिस्तान और अमेरिका की बढ़ती नजदीकी के पीछे स्वार्थों की परतें खुल रही हैं। ट्रंप द्वारा पाक आर्मी चीफ आसिम मुनीर को लंच और सम्मान के पीछे तीन बड़े खुलासे हैं। पहला, ईरान पर हमले के लिए पाकिस्तानी एयरबेस और एयरस्पेस का उपयोग। दूसरा, ट्रंप के दामाद की क्रिप्टो कंपनी के लिए पाकिस्तान में डील।

Pakistan-US News: पिछले कुछ समय से अमेरिका और पाकिस्तान के बीच बढ़ती नजदीकियों ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। खासकर भारत के साथ चार दिनों तक चले सैन्य संघर्ष और ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच के लिए आमंत्रित करना कई सवाल खड़े कर रहा है। जिस पाकिस्तान को ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे सूची में डालकर आतंकी फंडिंग पर सवाल उठाए थे, उसी पाकिस्तान के प्रति अब इतना प्रेम क्यों उमड़ रहा है? हाल ही में अमेरिका के एक पूर्व सीआईए अधिकारी जॉन किरियाकौ के सनसनीखेज खुलासे ने इस नजदीकी के पीछे छिपे स्वार्थों की परतें उघाड़ दी हैं। आइए, इन कारणों को विस्तार से समझते हैं।

अमेरिका का पाकिस्तान प्रेम: स्वार्थों की कहानी

18 जून 2025 को व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर की जमकर मेहमाननवाजी की। यह मुलाकात सामान्य नहीं थी, क्योंकि अमेरिका बिना किसी रणनीतिक हित के किसी भी देश को इतना महत्व नहीं देता। इस मुलाकात के पीछे तीन प्रमुख कारण सामने आए हैं, जो अमेरिका के स्वार्थों को स्पष्ट करते हैं।

पहला कारण: ईरान पर हमले के लिए पाकिस्तान का सामरिक महत्व

पहला और सबसे बड़ा कारण इजरायल-ईरान युद्ध में अमेरिका की रणनीतिक जरूरतें हैं। अमेरिका को ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले के लिए पाकिस्तान के एयरबेस, पोर्ट, और एयरस्पेस की आवश्यकता थी। पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति इसे मध्य पूर्व में अमेरिकी सैन्य रणनीतियों के लिए महत्वपूर्ण बनाती है। ट्रंप-मुनीर मुलाकात का एक उद्देश्य पाकिस्तान को इस रणनीति में शामिल करना था, ताकि अमेरिका अपनी क्षेत्रीय प्रभुत्व की योजना को आगे बढ़ा सके। विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका पाकिस्तान को साथ रखकर यह सुनिश्चित करना चाहता था कि ईरान के खिलाफ कार्रवाई में मुस्लिम देशों का एकजुट होना रोका जाए।

दूसरा कारण: क्रिप्टो करेंसी और ट्रंप का निजी हित

दूसरा कारण ट्रंप के परिवार से जुड़ा हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने खुलासा किया कि आसिम मुनीर ने ट्रंप के दामाद की क्रिप्टो करेंसी कंपनी के लिए पाकिस्तान में एक डील फाइनल कराई। इसके तहत पाकिस्तान में ट्रंप की कंपनी के लिए क्रिप्टो करेंसी काउंसिल का गठन किया गया। यह डील बंद कमरों में हुई, और इसके लिए ट्रंप ने मुनीर को धन्यवाद देना चाहा। यह निजी हित अमेरिका-पाकिस्तान की नजदीकी का एक और महत्वपूर्ण कारण है।

तीसरा कारण: पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी नियंत्रण

सबसे चौंकाने वाला खुलासा पूर्व सीआईए अधिकारी जॉन किरियाकौ ने किया। उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार की कमान और नियंत्रण एक अमेरिकी जनरल के अधीन है। यह दावा न केवल हैरान करने वाला है, बल्कि यह भी बताता है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अमेरिका क्यों इतना घबराया हुआ था। भारत ने 7 मई 2025 को पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी, जिसके बाद दोनों देश युद्ध के कगार पर पहुंच गए थे। अगर भारत ने पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया होता, तो यह अमेरिका के लिए भी बड़ा झटका होता, क्योंकि किरियाकौ के अनुसार, इन ठिकानों पर अमेरिका का अप्रत्यक्ष नियंत्रण है। इसीलिए अमेरिका युद्धविराम के लिए इतना बेताब था और उसने इसका श्रेय लेने की कोशिश भी की।

ऑपरेशन सिंदूर और अमेरिका की बेचैनी

ऑपरेशन सिंदूर, जिसे भारत ने 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में शुरू किया था, ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया। इस हमले में 100 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए, जिनमें मसूद अजहर का भाई जैसे बड़े नाम शामिल थे। इस कार्रवाई ने पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया, लेकिन अमेरिका की बेचैनी भी कम नहीं थी। ट्रंप ने बार-बार दावा किया कि उनकी मध्यस्थता से भारत-पाकिस्तान युद्ध रुका, लेकिन भारत ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने स्पष्ट किया कि युद्धविराम द्विपक्षीय स्तर पर हुआ, और इसमें अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी।

पाकिस्तानी पत्रकार निजाम सेठी ने भी खुलासा किया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान इतना डर गया था कि उसने ट्रंप से युद्धविराम के लिए गुहार लगाई थी। अमेरिका की यह बेताबी इस डर से थी कि अगर भारत ने पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों, जैसे किराना हिल्स, पर हमला किया, तो यह अमेरिका के रणनीतिक हितों को नुकसान पहुंचा सकता था।

अमेरिका का दोहरा चेहरा

अमेरिका का इतिहास बताता है कि वह हमेशा अपने हितों के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करता रहा है। शीत युद्ध के दौरान से लेकर 9/11 के बाद अफगानिस्तान में ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम तक, पाकिस्तान अमेरिका के लिए एक रणनीतिक मोहरा रहा है। पाकिस्तान की कमजोर लोकतांत्रिक व्यवस्था और सेना द्वारा संचालित शासन इसे अमेरिका के लिए आसान साझेदार बनाता है। भारत के मुकाबले पाकिस्तान से सौदेबाजी करना अमेरिका के लिए सरल है, क्योंकि पाकिस्तानी सेना को सैन्य और आर्थिक मदद के बदले आसानी से राजी किया जा सकता है।

हालांकि, यह नजदीकी भारत के लिए चिंता का विषय है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका ने भारत की कार्रवाई का समर्थन तो किया, लेकिन खुलकर साथ नहीं दिया। इसका कारण यह था कि अमेरिका दक्षिण एशिया में संतुलन बनाए रखना चाहता है, ताकि पाकिस्तान पूरी तरह चीन की गोद में न चला जाए।