- भारत,
- 20-Jul-2025 08:40 AM IST
Dollar vs Rupee: अप्रैल के आखिरी कारोबारी दिन, जब करेंसी मार्केट बंद हुआ था, तब भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 84.54 के स्तर पर कारोबार कर रहा था। यह वह समय था जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ से राहत दी थी और व्यापारिक तनाव को 90 दिनों के लिए टाल दिया था। इसके अलावा, जीएसटी के आंकड़े भी सकारात्मक रहे थे, और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने उसी महीने ब्याज दरों में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर बाजार को राहत प्रदान की थी। लेकिन मई का महीना शुरू होते ही रुपए का बुरा दौर शुरू हो गया। मई में 1.01 रुपए की मासिक गिरावट के बाद रुपया संभल नहीं पाया, और यह सिलसिला जून और जुलाई में भी जारी रहा।
जुलाई में भी नहीं रुकी गिरावट
जुलाई 2025 में भी रुपए की कमजोरी बरकरार रही। आंकड़ों के अनुसार, जुलाई में अब तक रुपया डॉलर के मुकाबले 40 पैसे गिर चुका है। जून के आखिरी कारोबारी दिन रुपया 85.76 के स्तर पर था, जो 18 जुलाई को 86.16 पर बंद हुआ। विशेषज्ञों का मानना है कि विदेशी निवेशकों की बिकवाली, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि, और डॉलर इंडेक्स में तेजी के कारण रुपए पर दबाव बना हुआ है। इसके अलावा, भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील की अनुपस्थिति और ट्रंप की ब्रिक्स देशों पर 10% टैरिफ की धमकी भी भारतीय करेंसी के लिए चुनौती बन रही है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले दिनों में रुपए में और गिरावट देखने को मिल सकती है।
मई और जून का प्रदर्शन
मई 2025 में रुपए में 1% से अधिक की गिरावट दर्ज की गई। अप्रैल के अंत में रुपया 84.54 के स्तर पर था, जो मई के आखिरी कारोबारी दिन 85.55 पर पहुंच गया, यानी 1.01 रुपए की गिरावट। जून में यह गिरावट कम रही, लेकिन फिर भी रुपया 21 पैसे कमजोर होकर 85.76 के स्तर पर बंद हुआ। इन दो महीनों में रुपए की लगातार कमजोरी ने भारतीय करेंसी की स्थिरता पर सवाल उठाए।
80 दिनों में 2% की गिरावट
प4 दिनों (अप्रैल से 18 जुलाई तक) में रुपया डॉलर के मुकाबले 1.62 रुपए या करीब 2% गिर चुका है। अप्रैल के अंत में 84.54 के स्तर से यह 18 जुलाई को 86.16 पर आ गया। यह गिरावट मार्च में देखी गई तेजी को पूरी तरह बेअसर कर चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगले छह महीनों में रुपया 86 से 87 के दायरे में रह सकता है।
रुपए पर दबाव के कारण
विदेशी निवेशकों की बिकवाली: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय बाजारों से पूंजी निकालना शुरू किया, जिससे करेंसी पर दबाव बढ़ा।
कच्चे तेल की कीमतें: वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल से भारत का आयात बिल बढ़ा, जिसका असर रुपए पर पड़ा।
डॉलर इंडेक्स में तेजी: मजबूत डॉलर इंडेक्स ने उभरते बाजारों की करेंसी, जिसमें भारतीय रुपया भी शामिल है, को कमजोर किया।
ट्रेड डील पर अनिश्चितता: भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड डील में देरी और टैरिफ की धमकी ने बाजार में अनिश्चितता बढ़ाई।
