Annakoot Festival / जयपुर में बड़ी धूमधाम से मनाया गया अन्नकूट महोत्सव, जानिए क्यों मनाया जाता है अन्नकूट महोत्सव।

Zoom News : Nov 08, 2022, 09:35 AM
Annakoot Festival: जयपुर के श्री राम पार्क झोटवाड़ा में श्री राम नगर सेवा समिति के तत्वधान में दीपावली स्नेह मिलन समारोह और अन्नकूट महोत्सव का आयोजन रखा गया जिसमें 1000 भक्तों ने अन्नकूट का प्रसाद ग्रहण किया। सुंदरकांड का आयोजन किया गया और झांकी सजाई गई आरती करके प्रसाद वितरण किया गया। साय 6:00 बजे से लेकर रात्रि 10:00 बजे तक प्रसादी वितरण का कार्यक्रम हुआ. 


समिति के अध्यक्ष हेमंत चौहान सेमरा ने बताया वार्ड 39 ग्रेटर के पार्षद अजय सिंह चौहान उपस्थित होकर कार्यक्रम में अपनी सहभागिता दर्ज कराई अन्नकूट के मौके पर पार्क में आकर्षक सजावट की गई. साथ में ही अध्यक्ष हेमंत चौहान जी ने बताया की पहली बार अन्नकूट का और दीपावली स्नेह मिलन समारोह का आयोजन किया गया है जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और कार्यक्रम को सफल बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। 


अध्यक्ष हेमंत चौहान सेमरा, उपाध्यक्ष कृष्ण पाल जादौन, सचिव माली राम जी शर्मा, कोषाध्यक्ष लोकेश सोनी, समिति मेंबर कमल कांत जी नरूका, गोरेलाल सिंह चौहान, महेंद्र सिंह जी चौधरी, अजय पाल सिंह यादव, गजेंद्र राठौड़, ओम प्रकाश व्यास, अनिल खंडेलवाल, श्याम सिंह जी कुशवाह, वीरेंद्र कुमार, कैप्टन सूरजमल, अशोक सैनी, रवि, बाबूलाल जी, सोनू कुमावत, अमित, अजीत, नरेश पाल सिंह, संदीप सिंह निर्वाण, सतीश जी पारीक, दिनेश गुप्ता, लक्ष्मीकांत, पंडित जी, मुकेश चौधरी, पहलाद चौधरी, दुर्गेंद्र कलावत आदि ने इस आयोजन में अपना योगदान दिया। 

क्यों मनाया जाता है अन्नकूट महोत्सव:

एक बार इंद्र ने कूपित होकर ब्रजमंडल में मूसलधार वर्षा की। इस वर्षा से ब्रजवासियों को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने 7 दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर इन्द्र का मान-मर्दन किया किया था। उस पर्वत के नीचे 7 दिन तक सभी ग्रामिणों के साथ ही गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। फिर ब्रह्माजी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म ले लिया है, उनसे बैर लेना उचित नहीं है। यह जानकर इन्द्रदेव ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा-याचना की। भगवान श्रीकृष्ण ने 7वें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव 'अन्नकूट' के नाम से मनाया जाने लगा।


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