Zee News : Jul 31, 2020, 08:46 AM
कोलंबो: श्रीलंका (Sri Lanka) में पांच अगस्त को होने वाले संसदीय चुनाव में जीत भले ही किसी की भी हो, लेकिन चीन (China) के हित सुरक्षित रहने वाले हैं। बीजिंग श्रीलंका पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए एक खास रणनीति के तहत आगे बढ़ रहा है।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी श्रीलंका के सबसे प्रभावी बौद्ध धर्म गुरुओं (Buddhist clergy) को अपने पक्ष में कर रही है और इसमें काफी हद तक कायमाब भी हुई है। इसी के तहत, पिछले साल कोलंबो में लोटस टॉवर का अनावरण किया गया था। 350 मीटर ऊंचे इस टॉवर का निर्माण चीन ने ही करवाया और इसका नाम बौद्ध धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक लोटस सूत्र पर रखा गया। श्रीलंका का बहुसंख्यक सिंहली समुदाय बौद्ध धर्म को ही मानता है। लोटस टॉवर एक तरह से चीन की बौद्ध कूटनीति का उदाहरण है, जिसकी शुरुआत उसने पिछले श्रीलंकाई चुनाव के दौरान की थी। कई रिपोर्टों में कहा गया है कि चीनी कंपनी China Harbor द्वारा श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के चुनावी अभियानों के लिए $7 मिलियन का भुगतान किया गया और इसका एक हिस्सा प्रभावशाली बौद्ध भिक्षु के पास भी गया।
रिपोर्टों के अनुसार, भुगतान की गई राशि में से $38,000 कथित रूप से राजपक्षे के समर्थक एक लोकप्रिय बौद्ध भिक्षु को दिए गए। हालांकि, तमाम प्रयासों के बावजूद चीन को मनचाहे परिणाम नहीं मिले, लेकिन उसे बौद्ध धर्म गुरुओं के रूप में श्रीलंका में अपने मंसूबों को आगे बढ़ाने के लिए नए साथी जरूर मिल गए।
2015 में चीनी राजदूत ने असगिरिया चैप्टर के भिक्षुओं के साथ मुलाकात की थी, जो श्रीलंका में दो सबसे प्रभावशाली बौद्ध चैप्टरों में से एक हैं। पिछले साल चैप्टर के मुख्य भिक्षु द्वारा मुसलमानों पर देश को नष्ट करने का आरोप लगाया, जिसे चीन के प्रभाव के रूप में देखा गया। इसके बाद श्रीलंकाई बौद्ध प्रतिनिधिमंडल ने चीन में चौथे विश्व बौद्ध फोरम में भाग लिया। 52 देशों के 1,000 से अधिक बौद्ध भिक्षु और विद्वान इस आयोजन का हिस्सा थे और श्रीलंकाई प्रतिनिधिमंडल उसमें सबसे बड़ा था।चीन श्रीलंका के प्रभावशाली लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहा है। वह श्रीलंका के बौद्ध समुदाय के विकास का साथी बनना चाहता है, लेकिन तिब्बत में उसने बौद्ध भिक्षुओं को प्रताड़ित किया हुआ है। अब गौर करने वाली बात यह होगी कि क्या श्रीलंका को यह हकीकत समझ आती है?
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी श्रीलंका के सबसे प्रभावी बौद्ध धर्म गुरुओं (Buddhist clergy) को अपने पक्ष में कर रही है और इसमें काफी हद तक कायमाब भी हुई है। इसी के तहत, पिछले साल कोलंबो में लोटस टॉवर का अनावरण किया गया था। 350 मीटर ऊंचे इस टॉवर का निर्माण चीन ने ही करवाया और इसका नाम बौद्ध धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक लोटस सूत्र पर रखा गया। श्रीलंका का बहुसंख्यक सिंहली समुदाय बौद्ध धर्म को ही मानता है। लोटस टॉवर एक तरह से चीन की बौद्ध कूटनीति का उदाहरण है, जिसकी शुरुआत उसने पिछले श्रीलंकाई चुनाव के दौरान की थी। कई रिपोर्टों में कहा गया है कि चीनी कंपनी China Harbor द्वारा श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के चुनावी अभियानों के लिए $7 मिलियन का भुगतान किया गया और इसका एक हिस्सा प्रभावशाली बौद्ध भिक्षु के पास भी गया।
रिपोर्टों के अनुसार, भुगतान की गई राशि में से $38,000 कथित रूप से राजपक्षे के समर्थक एक लोकप्रिय बौद्ध भिक्षु को दिए गए। हालांकि, तमाम प्रयासों के बावजूद चीन को मनचाहे परिणाम नहीं मिले, लेकिन उसे बौद्ध धर्म गुरुओं के रूप में श्रीलंका में अपने मंसूबों को आगे बढ़ाने के लिए नए साथी जरूर मिल गए।
2015 में चीनी राजदूत ने असगिरिया चैप्टर के भिक्षुओं के साथ मुलाकात की थी, जो श्रीलंका में दो सबसे प्रभावशाली बौद्ध चैप्टरों में से एक हैं। पिछले साल चैप्टर के मुख्य भिक्षु द्वारा मुसलमानों पर देश को नष्ट करने का आरोप लगाया, जिसे चीन के प्रभाव के रूप में देखा गया। इसके बाद श्रीलंकाई बौद्ध प्रतिनिधिमंडल ने चीन में चौथे विश्व बौद्ध फोरम में भाग लिया। 52 देशों के 1,000 से अधिक बौद्ध भिक्षु और विद्वान इस आयोजन का हिस्सा थे और श्रीलंकाई प्रतिनिधिमंडल उसमें सबसे बड़ा था।चीन श्रीलंका के प्रभावशाली लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहा है। वह श्रीलंका के बौद्ध समुदाय के विकास का साथी बनना चाहता है, लेकिन तिब्बत में उसने बौद्ध भिक्षुओं को प्रताड़ित किया हुआ है। अब गौर करने वाली बात यह होगी कि क्या श्रीलंका को यह हकीकत समझ आती है?