Delhi Ordinance Bill / राज्यसभा में भी दिल्ली सेवा बिल पास, 131 वोट पड़े पक्ष में, उम्मीद से ज्यादा NDA को मिला समर्थन

Zoom News : Aug 07, 2023, 11:50 PM
Delhi Ordinance Bill: दिल्ली सर्विस बिल लोकसभा के बाद राज्यसभा से भी पास हो गया है. दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक 2023 सोमवार को ऊपरी सदन से पारित हुआ. ये बिल अब कानून का रूप लेगा. राज्यसभा में बिल के पक्ष में 131 और विपक्ष में 102 वोट पड़े. राज्यसभा से बिल का पास होना मोदी सरकार के लिए एक बड़ी जीत है, क्योंकि आम आदमी पार्टी ने बिल को गिराने के लिए पूरा दम लगा दिया था. सीएम केजरीवाल समर्थन मांगने के लिए गैर NDA दलों के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात की थी.

बता दें कि राज्यसभा में कुल 245 सीटें हैं जिसमें 8 रिक्त हैं. इसका मतलब है कि राज्यसभा में मौजूदा स्थिति में 237 सीटें हैं. बिल को पास कराने के लिए सरकार को 119 वोटों की जरूरत थी. सदन में NDA के पास 112 सांसद हैं. उसे नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनत दल के 9 सांसदों का भी समर्थन मिला. इसके अलावा आंध्र प्रदेश की YSR कांग्रेस के 9 सांसदों का भी सपोर्ट मिला है. यही नहीं चंद्रबाबू नायडू की TDP ने भी मोदी सरकार का साथ दिया. NDA के 112 और बीजेडी (9)-YSR (9) कांग्रेस और टीडीपी (1) का समर्थन मिलने के बाद उसे 131 वोट मिले.

दिल्ली में सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए ये बिल लाए: शाह

इससे पहले इस बिल को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में कहा है कि दिल्ली में सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए ये बिल लाए हैं। बिल का मकसद दिल्ली में भ्रष्टाचार को रोकना है। शाह ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने भी दिल्ली को पूरा अधिकार नहीं दिया। हमें किसी राज्य के पावर को लेने की जरूरत नहीं है। वो (केजरीवाल सरकार) पूर्ण राज्य की पावर एन्जॉय करना चाहते हैं। दिल्ली के किसी भी सीएम के साथ ऐसे झगड़े नहीं हुए हैं। दिल्ली में अराजकता फैलाने का काम शुरू किया गया। केजरीवाल सरकार पावर का अतिक्रमण करती है। 

दिल्ली सेवा विधेयक पर राज्यसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ये भी कहा कि दो सदस्य कह रहे हैं कि उन्होंने AAP सांसद राघव चड्ढा द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव (चयन समिति का हिस्सा बनने के लिए) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। अब यह जांच का विषय है कि प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कैसे हो गए। राज्यसभा के उपसभापति का कहना है कि चार सांसदों ने मुझे लिखा है कि उनकी ओर से कोई सहमति नहीं दी गई है और इसकी जांच की जाएगी। एआईएडीएमके सांसद डॉ. एम. थंबीदुरई का भी दावा है कि उन्होंने कागज पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं और यह विशेषाधिकार का मामला है।

क्यों लाए बिल? अमित शाह ने बताया

शाह ने कहा, 'संविधान सभा में सबसे पहला संविधान संशोधन पारित किया गया था। तब से संविधान को बदलने की प्रक्रिया चल रही है। हम संविधान में बदलाव आपातकाल डालने के लिए नहीं लाए हैं। हम संविधान में बदलाव उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री की सदस्यता को पुनर्जीवित करने के लिए नहीं लाए हैं।'

उन्होंने कहा, 'यह बिल हम शक्ति को केंद्र में लाने के लिए नहीं बल्कि केंद्र को दी हुई शक्ति पर दिल्ली UT की सरकार अतिक्रमण करती है, इसको वैधानिक रूप से रोकने के लिए यह बिल लेकर लाए हैं।'

सीएम केजरीवाल का सरकार पर निशाना

बिल के पास होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मोदी सरकार पर जमकर बरसे. उन्होंने इसे काला दिन बताया. सीएम ने कहा कि आज का दिन भारत के इतिहास में काला दिन साबित हुआ. आज दिल्ली के लोगों को गुलाम बनाने वाला बिल पास कर दिया गया. जब हम आजाद नहीं हुए थे 1935 में अंग्रेजों ने कानून बनाया था उसमें ये लिखा था कि चुनाव तो होंगे लेकिन चुनी हुई सरकार को काम करने की शक्तियां नहीं होंगी. जब आज़ादी मिली तो संविधान में लिखा कि चुनी हुई सरकार को काम करने की आज़ादी होगी. आज 75 साल बाद मोदी जी ने आज़ादी छीन ली. दिल्ली के लोगों के वोट की कोई कीमत नहीं बची है.

सीएम केजरीवाल ने आगे कहा, ’11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत एक जनतंत्र है जिसमें जनता सरकार चुनती है और सरकार को काम करने की ताकत होनी चाहिए. एक हफ्ते के अंदर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट दिया गया और अध्यादेश ले आए. इस कानून में लिखा है कि जनता किसे भी चुने लेकिन सरकार उपराज्यपाल और मोदी जी चलाएंगे. जिस देश के प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानते तो उस देश का क्या भविष्य हो सकता है.’

विधेयक राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किए जाने के बाद एक अधिनियम बन जाएगा. ये दिल्ली सरकार की शक्तियों को महत्वपूर्ण रूप से कम कर देगा और उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ा देगा. विधेयक में अफसरों की पोस्टिंग और नियंत्रण के संबंध में निर्णय लेने के लिए एक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण के निर्माण का प्रावधान है. हालांकि समिति की अध्यक्षता मुख्यमंत्री करते हैं, लेकिन समिति में दिल्ली के मुख्य सचिव और गृह सचिव भी हैं. निर्णय बहुमत से लिए जाने हैं. इसके अलावा, विधेयक के अनुसार, समिति चरण के बाद भी अंतिम फैसला उपराज्यपाल का होगा, जिससे निर्वाचित सरकार को फिर से नुकसान होगा.

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