गुजरात चुनाव / द्रौपदी मुर्मू बिगाड़ेंगी कांग्रेस का गणित, 'खाम' थ्योरी पर पड़ेगी चोट

Zoom News : Jun 24, 2022, 07:50 AM
Delhi: आगामी लोकसभा चुनाव की रणनीति और उसे अमलीजामा पहनाने में जुटी कांग्रेस गुजरात विधानसभा चुनाव की तैयारियों में पिछड़ती जा रही है। एक तरफ जहां सत्तारूढ़ भाजपा चुनाव प्रचार में जुट गई है, वहीं कांग्रेस अभी चुनावी रणनीति तय नहीं कर पाई है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी भी राज्य में दम भर रही है। राज्य में साल के अंत में चुनाव होने हैं।

भाजपा के द्रौपदी मुर्मू को एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनाने से कांग्रेस की ‘खाम’ थ्योरी का गणित बिगड़ सकता है। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने भाजपा को सत्ता से बेदखल करने से ज्यादा खुद अपना प्रदर्शन दोहराना की चुनौती है। वर्ष 2017 के चुनाव में कांग्रेस 77 सीट जीतकर भाजपा को 99 सीट पर रोकने में सफल रही थी। पर, पिछले पांच वर्षों में पार्टी कमजोर हुई है। हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवाणी की तिकड़ी बिखर चुकी है। पार्टी के पास अब सिर्फ जिग्नेश बचे हैं।

खाम की याद आई

कांग्रेस पाटीदार समाज के वरिष्ठ नेता नरेश पटेल को शामिल कर सौराष्ट्र में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही थी, पर पटेल ने राजनीति में आने से इनकार कर रणनीति बिगाड़ दी। सौराष्ट्र की करीब तीन दर्जन सीट पर पाटीदार निर्णायक भूमिका निभाते हैं। नरेश पटेल के इनकार के बाद पार्टी को पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी की खाम (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम ) की याद आई।

आदिवासी मतदाता रहे हैं कांग्रेस के साथ

पार्टी ने ‘खाम’ को केंद्र में रखकर सम्मेलन और दूसरे कार्यक्रम भी शुरू कर दिए। गुजरात में करीब 14 फीसदी क्षत्रिय, 8 प्रतिशत दलित, 15 फीसदी आदिवासी व 10 प्रतिशत मुस्लिम हैं। आदिवासी मतदाता कांग्रेस के पक्ष में वोट करते रहे हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 27 आदिवासी सीट में 14 सीट जीती थी। जबकि भाजपा को 9 सीटें मिली थी। भारतीय ट्राइबल पार्टी को दो सीट मिली थी। इसलिए कांग्रेस को आदिवासी सीट पर बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी।


मुर्मू की उम्मीदवारी आदिवासी मतदाताओं को संकेत

भारतीय जनता पार्टी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर गुजरात के आदिवासी मतदाताओं को साफ संदेश दे दिया है। भाजपा के इस कदम को लेकर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमारी पार्टी के मुकाबले पिछले कुछ वर्षों में भारतीय जनता पार्टी ने आदिवासी मतदाताओं पर ज्यादा फोकस किया है। पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनाना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। हालांकि, यह कहना अभी मुश्किल है कि इसका चुनाव में कितना फायदा मिलेगा।

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