Rajasthan Elections / पहले पिता, अब पुत्र... कांग्रेस करती है गुर्जरों का अपमान- PM मोदी?

Zoom News : Nov 23, 2023, 08:00 PM
Rajasthan Elections: राजस्थान में 25 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है और गुरुवार शाम को चुनाव प्रचार खत्म हो गया है. प्रचार के आखिरी दिन राजस्थान में एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे राजेश पायलट का जिक्र कर गुर्जर समाज का मुद्दा उठाया. पीएम मोदी ने एक पुराने राजनीतिक घटनाक्रम को याद करते हुए कहा कि गुर्जर समाज का बेटा संघर्ष करता है राजनीति में मुकाम हासिल करता है लेकिन सत्ता हासिल होने के बाद उन्हें सम्मानजनक जगह नहीं मिलती. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने प्रदेश में गुर्जरों का हमेशा अपमान किया. पहले राजेश पायटल का अपमान किया और अब सचिन पायलट के साथ हो रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी राजस्थान में चुनाव प्रचार के दौरान लगातार गुर्जरों के साथ हुए भेदभाव और अपमान का मुद्दा उठा रहे हैं. बुधवार को उन्होंने भीलवाड़ा में ये मुद्दा उठाया था, फिर गुरुवार देवगढ़ की जनसभा को संबोधित करते हुए भी पीएम मोदी ने गुर्जरों का मुद्दा जोर शोर से उठाया. उन्होंने कहा – ‘स्वर्गीय राजेश पायलट जी के साथ भी इन्होंने यही किया और उनके बेटे के साथ भी यही कर रहे हैं. गुर्जरों का जितना अपमान कांग्रेस ने किया है, यह राजस्थान की पहली पीढ़ी ने भी देखा है और आज की पीढ़ी भी देख रही है.’

चुनावी मौके पर गुर्जर समाज के अपमान का जिक्र

प्रधानमंत्री मोदी आखिर क्यों बार-बार गुर्जरों के साथ हुए भेदभाव का जिक्र कर रहे हैं, इसकी एक लंबी कहानी है. यह कहानी राजस्थान की राजनीति से जुड़ी है. राजेश पायलट गुर्जर समाज से ताल्लुक रखते थे. उन्होंने 1998 में दौसा में तमाम विपरीत परिस्थितियों में जीत हासिल की थी. उस वक्त राज्य में बीजेपी की सरकार थी. राजेश पायलट एक अनुभवी नेता थे. उन्होंने भारतीय रक्षा बलों में सेवा दी थी और बाद में राजनीति में आए थे. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और संजय गांधी के साथ भी उनकी नजदीकी थी. राजस्थान में उनका बड़ा जन समर्थन था उसका असर पूरी हिंदी पट्टी पर था.

लेकिन बाद में राजेश पायलट की गांधी परिवार के साथ अनबन हो गई. साल 1997 में वो पार्टी अध्यक्ष पद के लिए सीताराम केसरी के खिलाफ चुनाव में भी खड़े हुए. उनकी अदावत अशोक गहलोत से भी हुई जो कि गांधी परिवार के निकट रहे. इसका उन्हें फायदा भी मिला. गांधी परिवार ने अशोक गहलोत को प्रदेश की राजनीति में उभरने का पूरा मौका दिया. गहलोत ने भी खुलकर जिम्मेदारी संभाली. इसके उलट राजेश पायलट दरकिनार होते गए.

राजेश पायलट बनाम अशोक गहलोत की ‘वो’ कहानी

राजेश पायलट उस वक्त केंद्र में संचार मंत्री थे. उन्हें जोधपुर में मुख्य डाकघर का उद्घाटन करना था. उस समय गहलोत जोधपुर के सांसद हुआ करते थे. उस कार्यक्रम में गहलोत को निमंत्रण नहीं भेजा गया था. जिसके बाद गहलोत समर्थक नाराज हो गए. कार्यक्रम में उन्होंने राजेश पायलट से सीधे पूछा कि हमारे सांसद कहां हैं, वे कहीं नजर नहीं आ रहे. इस पर राजेश पायलट ने तंज कसते हुए कहा- बेचारे गहलोत यहीं कहीं होंगे.

इस वाकये के बाद दोनों नेताओं के बीच शीत युद्ध बढ़ता गया. दोनों राजस्थान से थे, दोनों दिग्गज नेता रहे लिहाजा दोनों के बीत शीत युद्ध भी चलता रहा. ऐसा कहा जाता है दोनों एक दूसरे के लिए राजनीतिक तौर पर खतरा बन चुके थे. दोनों नेताओं में टकराव बढ़ रहा था.

उस साल राजस्थान में कांग्रेस 153 सीटें जीतकर सत्ता में आई. मुख्यमंत्री के लिए अशोक गहलोत के नाम पर सहमति बनी. आलाकमान ने मुहर लगा दी. उस वक्त अशोक गहलोत जोधपुर से सांसद और पीसीसी चीफ थे, विधायक नहीं थे. इसके बावजूद आलाकमान उनको ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे. इस मौके पर शिवचरण माथुर से लेकर परसराम मदेरणा तक को सीएम पद को आगे किया गया, यहां तक कि राजेश पायलट ने अशोक गहलोत विरोधी गुट का समर्थन भी किया था इसके बावजूद अशोक गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाया गया.

दौसा में अपने पराक्रम से जीते थे राजेश पायलट

1998 और 1999 के चुनावों के दौरान ही उनका कांग्रेस आलाकमान से मतभेद शुरू हो गया. दौसा में 1999 के चुनाव में राजेश पायलट 10,000 वोटों के अंतर से जीते थे. बताया जाता है राजेश पायलट को हराने के लिए भीतरघात हुआ लेकिन उन्होंने अपने पराक्रम से जीत हासिल की. कहा ये भी जाता है कि इसके पीछे कथित ‘जादूगर’ का प्रभाव था. राजस्थान की राजनीति में ‘जादूगर’ अशोक गहलोत को कहा जाता है.

राजेश पायलट के प्रति अशोक गहलोत की विरोधी भावना तब और स्पष्ट हो गई जब वो उनके सम्मान में आयोजित स्मृति कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए. पायलट से उनका विरोध आगे भी जारी रहा. यह राजेश पायलट के बाद सचिन पायलट तक देखा जा रहा है. पिछले कई सालों में दोनों नेताओं के बीच मतभेद खुल कर सामने आते रहे हैं. हालांकि आलाकमान ने बीच बचाव भी किया जिसके बाद दोनों में इस चुनाव नें सुलह बन सकी. लेकिन दोनों में मतभेद दूर नहीं हुए.

सचिन पायलट को भी उठाना पड़ा नुकसान

राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट को भी राजनीतिक तौर पर अपनी महत्वकांक्षा को कुर्बान करना पड़ा. 2018 के विधानसभा चुनाव को लेकर सचिन पायलट ने जमकर मेहनत की. वो प्रदेश अध्यक्ष थे. अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने मिलकर वसुंधरा राजे सरकार को उखाड़ फेंका लेकिन बात जब सीएम पद की आई तो गहलोत का जादू चल गया और वो हाईकमान को मनाने में कामयाब हो गए. मायूस सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बनाया. लेकिन दोनों की केमिस्ट्री दूर-दूर तक नजर नहीं आई. नौबत यहां तक आ गई कि सचिन पायलट एक बार अपने समर्थक विधायकों को लेकर जयपुर से गुरुग्राम पहुंच गए.

चर्चा हुई कि वो बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना रहे हैं, हालांकि गहलोत अपनी सरकार बचाने में कामयाब हो गए. पार्टी ने फिर से दोनों नेताओं को एक किया और अब मिलकर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है. हालांकि, गहलोत और पायलट खेमों का टकराव अक्सर ही खुलकर सामने आता रहता है. बीजेपी भी इस मुद्दे को खुलकर उठा रही है और अब पीएम मोदी ने भी चुनाव से ठीक पहले राजेश पायलट और सचिन पायलट के बहाने कांग्रेस की घेराबंदी की है.

SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER