बिहार / लालू यादव के शासन काल में खुला देश का पहला चरवाहा विद्यालय, कई देशों ने किया रिसर्च

AajTak : Sep 17, 2020, 08:27 AM
Delhi: भारतीय राजनीति में लालू यादव की तरह देसी अंदाज में बोलकर वाहवाही लूटने वाला शायद ही कोई दूसरा नेता रहा होगा। लालू बड़ी-बड़ी बातें देसी अंदाज में हंसते-हंसाते कह देते थे। लेकिन उन्होंने अपने शासन काल में कई ऐसे काम कर दिए, जिस पर देश और दुनिया में लोग रिसर्च करने लगे। इन्हीं कामों में से एक था लालू के सपनों का चरवाहा विद्यालय। 

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के दिग्गज नेता लालू यादव भले ही आज चारा घोटाला के आरोप में रांची की जेल में हैं लेकिन जब वह बिहार के मुख्यमंत्री थे तो एक सपना देखा था। उनका सपना था कि गरीबों के बच्चे भी पढ़ें-लिखें और तरक्की करें। कहा जाता है कि लालू का बचपन गरीबी में बीता। इसलिए वह गरीबों की समस्या को भली भांति समझते थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने एक नारा दिया था- 'ओ गाय चराने वालो, भैंस चराने वालो।।।पढ़ना लिखना सीखो।' 


मुजफ्फरपुर में खुला पहला चरवाहा विद्यालय

लालू यादव की इस कल्पना पर देश में लोग चुटकियां भी लेने लगे लेकिन लालू धुन के पक्के थे। उन्होंने ठान लिया कि गरीबों के लिए चरवाहा विद्यालय खोलेंगे। देश के पहले चरवाहा विद्यालय के लिए मुजफ्फरपुर को चुना गया। 23 दिसंबर 1991 को मुजफ्फरपुर के तुर्की में 25 एकड़ जमीन में पहला चरवाहा विद्यालय खुला। स्कूल में पांच शिक्षक, नेहरू युवा केंद्र के पांच स्वयंसेवी और 5 एजुकेशन इंसट्रक्टर की तैनाती की गई।

तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने 15 जनवरी 1992 को स्कूल का उद्घाटन किया और बच्चों को गिनती लिखना सिखाया था। तब भी उन्होंने बच्चों की क्लास भोजपुरी में ली थी। बाद में 1992 तक 113 विद्यालय पूरे प्रदेश में खोले गए। तुर्की के बाद दूसरा चरवाहा विद्यालय रांची के पास झीरी में खुला था। 


चरवाहा विद्यालय के पीछे क्या थी सोच?

गांव में गरीब और पिछड़े लोगों के बच्चे दिन में अक्सर अपने पशु को चराने के लिए खेतों में जाया करते हैं। ऐसे में लालू यादव ने सोचा था कि ये पशु चराने के साथ-साथ पढ़ाई भी कर सकें, इसलिए चरवाहा विद्यालय खोला गया था। यह लालू के चर्चित प्रयोगों में से एक था। सुबह इस विद्यालय में जानवरों को चराने वाले बच्चे आते थे। 

वह अपने जानवरों को चराने के लिए छोड़ देते और स्कूल में तैनात टीचर से पढ़ाई करते, जबकि वहीं स्कूल में महिलाएं बड़ी, पापड़ और अचार आदि बनाने की ट्रेनिंग लेती थीं। अगर जानवर बीमार होते तो उन्हें देखने के लिए डॉक्टर भी आते थे। स्कूल प्रबंधन बच्चों को घर लौटते समय चारे का गट्ठर भी देता ताकि घर में पशुओं को खाना खिलाने की चिंता उन्हें ना हो।


स्कूल प्रबंधन किसके हाथों में था? 

चरवाहा विद्यालय चलाने की जिम्मेदारी कृषि, सिंचाई, शिक्षा, उद्योग, पशु पालन और ग्रामीण विकास विभाग पर थी। विद्यालय में बच्चों को दोपहर का भोजन, किताब, कपड़े और मासिक स्टाइपेंड भी मिलता था। हालांकि इतने सारे विभागों पर स्कूल चलाने की जिम्मेदारी भी मुसीबत बन गई, क्योंकि उनमें आपसी समन्यवय का अभाव हो गया और शायद चरवाहा विद्यालय के संचालन बंद होने की यह एक मुख्य वजह भी बनी। 


चरवाहा विद्यालय को देखने आईं विदेशी टीमें

लालू यादव ने जब चरवाहा विद्यालय खोलने की बात कही तो देश और प्रदेश के कई नेताओं ने इसपर चुटकी ली थी। लेकिन विद्यालय खुलने के बाद यह काफी चर्चित हो गया। उस समय लालू के इस प्रयोग को देश और दुनिया के मीडिया में सुर्खियां मिली। 

बीबीसी की एक रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मीकांत सजल ने बताया था, "अमेरिका और जापान की कई टीम इस विद्यालय को देखने आई थी। आलम ये था कि हम लोग इस प्रयोग पर हंस रहे थे लेकिन पूरी दुनिया इस पर रिसर्च कर रही थी।"


क्यों फ्लॉप हुआ चरवाहा विद्यालय?

चरवाहा विद्यालय खुलते ही देश-दुनिया में सुर्खियां बटोरने लगा। लेकिन धीरे-धीरे कुशल प्रबंधन के अभाव में योजना दम तोड़ने लगी। लालू यादव के 15 साल के शासन काल में चरवाहा विद्यालय फुस्स होने लगा लेकिन कभी इसे बंद करने की घोषणा नहीं हुई। 

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बीबीसी को बताया था, ''ये सिर्फ एक आईवॉश था। इसका कोई व्यवहारिक लक्ष्य और पक्ष नहीं था, इसलिए खत्म भी हो गया। बाकी हमने उनसे हमेशा कहा कि आप कॉलेज खोलिए प्राथिमिक शिक्षा को दुरुस्त करने पर ध्यान दीजिए लेकिन वो समाज को बेवकूफ बनाकर उस पर अपना नियंत्रण रखने में ही लगे रहे।"


।।।जब लालू बन गए मैनेजमेंट गुरु

2004 के लोकसभा चुनाव में लालू किंग मेकर बनकर उभरे और रेल मंत्री बने थे। कहा जाता है कि रेल मंत्री रहते उन्होंने दशकों से घाटे में चल रहे रलवे को मुनाफे में ला दिया। साल 2008-09 के लिए रेल बजट पेश करते हुए लालू यादव ने बताया था कि रलवे ने 2007-08 में 25 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। हालांकि इस पर सवाल उठते रहे। 

नीतीश कुमार ने कहा कि लालू जी ने आंकड़ों की बाजीगरी कर जनता को गुमराह किया है। लेकिन रेलवे का यह टर्नओवर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) अहमदाबाद और देश के कुछ दूसरे मैनेजमेंट स्कूल के लिए केस स्टडी बन गया। इसके बाद लालू के नेतृत्व क्षमता की प्रशंसा हुई और हार्वर्ड एवं दुनिया के कुछ अन्य यूनिवर्सिटी ने स्टूडेंट्स को संबोधित करने के लिए लालू यादव को इनवाइट भी किया।  

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