कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर तीर्थराज पुष्कर में आस्था का अद्भुत नजारा देखने को मिला और बुधवार को, दुर्धरा से पड़ रही हल्की ठंड के बावजूद, लाखों श्रद्धालु, साधु-संत और महिला-पुरुष पवित्र पुष्कर सरोवर के 52 घाटों पर ब्रह्ममुहूर्त से ही पहुंचने लगे। सर्द हवाओं के बीच भी श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर था, और उन्होंने आस्था की डुबकी लगाई। सरोवर के आसपास का पूरा वातावरण 'हर-हर महादेव' और 'जय ब्रह्म देव' के जयकारों से गूंज उठा, जिससे एक दिव्य और आध्यात्मिक माहौल बन गया।
आस्था का महासंगम और भक्तिमय वातावरण
यह पर्व हर साल देश भर से भक्तों को आकर्षित करता है, जो इस पवित्र दिन पर पुष्कर सरोवर में स्नान करने के लिए आते हैं। 52 घाटों पर एक साथ लाखों लोगों का जमावड़ा, मंत्रोच्चार और भक्तिमय वातावरण एक अद्वितीय दृश्य प्रस्तुत करता है। सुबह के ब्रह्ममुहूर्त में, जब सूर्योदय से पहले की किरणें भी धरती पर नहीं आई होतीं, तब भी श्रद्धालु ठंडे पानी में डुबकी लगाने से नहीं हिचकिचाते, जो उनकी अटूट श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है। इस दौरान, घाटों पर भक्तों की भीड़ इतनी अधिक थी कि तिल धरने की जगह नहीं थी, फिर भी सभी शांति और व्यवस्था बनाए रखते हुए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। हर चेहरे पर एक अलौकिक शांति और भक्ति का भाव स्पष्ट दिख रहा था, जो इस पवित्र अवसर की गरिमा को और बढ़ा रहा था।
पुष्कर की पौराणिक मान्यता और उत्पत्ति
पुष्कर निवासी शशिकांत शर्मा के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन पुष्कर सरोवर में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह एक ऐसी मान्यता है जो सदियों से चली आ रही है और लाखों लोगों को इस पवित्र सरोवर की ओर खींचती है। धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने पुष्कर तीर्थ सरोवर में पूजा की थी, जिससे इस स्थान की पवित्रता और भी बढ़ जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को एक कमल पुष्प दिया था, जिसे उन्होंने पृथ्वी पर गिराया और उसी स्थान पर पुष्कर तीर्थ का जन्म हुआ और इसलिए इस दिन स्नान करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है, और भक्त सदियों से इस परंपरा का पालन करते आ रहे हैं, अपने जीवन को धन्य मानते हुए।
स्नान के बाद पूजा-अर्चना और दीपदान की परंपरा
देश भर से आए श्रद्धालु सूर्योदय से पहले स्नान करके ब्रह्मा मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं और स्नान के बाद, वे पवित्र ब्रह्मा मंदिर की ओर बढ़ते हैं, जहां वे भगवान ब्रह्मा की आराधना करते हैं, जो इस तीर्थ के प्रमुख देवता हैं। इसके साथ ही, वे सरोवर में दीपदान भी करते हैं, अपने परिवार की सुख-समृद्धि और कल्याण की कामना करते हैं। जगमगाते दीपों से सरोवर का दृश्य अत्यंत मनमोहक और आध्यात्मिक हो उठता है, जो भक्तों के मन में शांति और संतोष भर देता है। हजारों छोटे-बड़े दीपों की रोशनी से पूरा सरोवर जगमगा उठता है,। जो अंधकार पर प्रकाश की विजय और आशा का प्रतीक है। यह दृश्य न केवल आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि देखने में भी अत्यंत भव्य और प्रेरणादायक होता है।
साधु-संतों की विशेष उपस्थिति और वैदिक मंत्रोच्चार
स्नान और दीपदान पर्व के अवसर पर साधु-संतों ने भी पुष्कर सरोवर में आस्था की डुबकी लगाई और विशेष पूजा-अर्चना की। इन पवित्र आत्माओं की उपस्थिति ने पर्व की गरिमा को और बढ़ा दिया। घाटों पर वैदिक मंत्रोच्चार, आरती और दीपदान का अद्भुत संगम देखने को मिला, जिससे पूरा वातावरण दिव्य ऊर्जा से भर गया। साधु-संतों के मुख से निकले मंत्रों की ध्वनि दूर-दूर तक गूंज रही थी, जो भक्तों को एक अलग ही आध्यात्मिक लोक में ले जा रही थी। श्रद्धालुओं ने सरोवर के जल में स्नान कर भक्ति और शांति का अनुभव किया और चारों ओर जगमगाते दीपों और भजन-कीर्तनों की ध्वनि से पूरा वातावरण आध्यात्मिक रंगों से सराबोर हो गया, जिससे यह कार्तिक पूर्णिमा का स्नान पुष्कर की आध्यात्मिक पहचान और हिंदू आस्था का अद्भुत संगम बन गया।
पुष्कर की आध्यात्मिक विरासत और सांस्कृतिक महत्व
कार्तिक पूर्णिमा का यह आयोजन केवल एक धार्मिक स्नान नहीं, बल्कि पुष्कर। की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत और भारतीय संस्कृति का एक जीवंत प्रदर्शन है। यह लाखों लोगों को एक साथ लाता है, जो अपनी। आस्था और भक्ति के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ते हैं। यह पर्व हर साल हमें हमारी प्राचीन परंपराओं और विश्वासों की याद दिलाता है, जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं और आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। पुष्कर का यह वार्षिक मेला और स्नान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि। यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सामुदायिक सद्भाव का भी एक बड़ा केंद्र बन जाता है। देश के कोने-कोने से आए लोग एक साथ मिलकर इस पवित्र पर्व को मनाते हैं, जो भारत की विविधता में एकता की भावना को दर्शाता है।