दुनिया / PAK के सबसे भरोसेमंद यार चीन ने तोड़ा भरोसा, लगाई अरबों की चपत

AajTak : May 21, 2020, 10:56 AM
पाकिस्तान: अक्सर चीन को सबसे ज्यादा भरोसेमंद दोस्त गिनाता है लेकिन हैरानी की बात है कि चीन रणनीतिक साझेदारी के नाम पर उसे आर्थिक चोट पहुंचा रहा है। पाकिस्तान में 62 अरब डॉलर की लागत से चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के तहत चीनी कंपनियां खूब मुनाफा कमाने में लगी हुई हैं।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बिजली के बढ़ते दाम की जांच के लिए एक कमिटी गठित की थी जिसने अपनी रिपोर्ट में चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के तहत चीनी कंपनियों के भ्रष्टाचार से पर्दा उठाया है। सीपीईसी में पारदर्शिता की कमी और भ्रष्टाचार ने पाकिस्तान को अरबों रुपये का चूना लगाया है।

पाकिस्तान की 'कमिटी फॉर पावर सेक्टर ऑडिट, सर्कुलर डेब्ट रिजर्वेशन ऐंड फ्यूचर रोडमैप' ने 278 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिजली उत्पादन के क्षेत्र में अनियमितताओं की वजह से 100 अरब रुपये (पाकिस्तानी रुपया) का नुकसान हुआ है। इसमें से एक तिहाई नुकसान चीनी परियोजनाओं में हुआ है।

पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, समिति ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि सीपीईसी के तहत हुनेंग शांडोंग रुई एनर्जी (एचएसआर) और कासिम इलेक्ट्रिक पावर कंपनी लिमिटेड कोल प्लांट्स ने अपनी  लागत बहुत ज्यादा रखी।

कमिटी की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के दो कोयला आधारित प्लांट के लिए करीब 32।46 अरब रुपये (पाकिस्तानी रुपया) की अतिरिक्त लागत को मंजूरी दी गई थी।

चीनी कंपनियों को निर्माण कार्य जारी होने के दौरान 48 महीनों के लिए ब्याज की दरों में छूट की अनुमति दी गई थी लेकिन असल में प्लांट का पूरा काम 27-29 महीनों में ही हो चुका था। इससे कंपनियों को अतिरिक्त भुगतान मिलता रहा। डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपये के 6 फीसदी सालाना अवमूल्यन को देखते हुए यह मुनाफा और बढ़ जाता है।

चीनी कंपनी एचएसआर ने निर्माण कार्य के दौरान मिलने वाले लंबी अवधि का लोन लिया था, हालांकि, पहले साल इसने कोई धनराशि उधार नहीं ली और दूसरे साल कम ब्याज दर वाले छोटी अवधि के ही लोन से ही अपना काम चलाया। कमिटी ने जिन दो प्रोजेक्ट की जांच की है, लॉन्चिंग के वक्त उनकी लागत 3।8 अरब डॉलर थी। कमिटी ने पाया कि कंपनियों को 483 अरब रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया गया जो मौजूदा विनिमय दर से 3 अरब डॉलर की रकम के बराबर है।

समिति ने सुझाव दिया है कि पाकिस्तान की सरकार चीनी कंपनियों पर अतिरिक्त भुगतान की वापसी के लिए दबाव डाले।

सीपीईसी में पाकिस्तान की सेना की सीधी भूमिका को देखते हुए कमिटी ने चीनी परियोजनाओं की जांच में नरमी भी बरती है। सीपीईसी अथॉरिटी के अध्यक्ष फिलहाल लेफ्टिनेंट जनरल आसिम सलीम बाजवा है जो सूचना एवं प्रसारण मंत्री भी हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन की बिजली उत्पादन करने वाली 16 कंपनियों ने 60 अरब रुपये का निवेश किया और पिछले दो-तीन सालों में ही 400 अरब रुपये का मुनाफा कमाया।

चीनी कंपनियों को बिना किसी घोटाले के बैठे-बैठाए ही इतना ज्यादा मुनाफा हो चुका है। इसकी कल्पना करना ही मुश्किल है कि 62 अरब डॉलर की सीपीईसी की परियोजना में चीन को कितना फायदा होने वाला है।

श्रीलंका और मालदीव का अनुभव बताता है कि कंपनियों को अतिरिक्त भुगतान में पाकिस्तान की सरकार की ही लापरवाही है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से ही डूबने के कगार पर है और कोरोना वायरस की महामारी ने भी हालात और खराब किए हैं। आर्थिक सुधार करने के बजाय, पाकिस्तान की सरकार हमेशा की तरह महामारी के नाम पर फिर कर्ज मांग रही है। अब चीन का निवेश भी पाकिस्तान को कर्ज के जाल में उलझाता जा रहा है। चीनी निवेश को लेकर जताई गईं सारी आशंकाएं अभी से सच साबित होती दिखाई दे रही हैं।

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