Priyanka Gandhi / संसद में प्रियंका गांधी ने मांगा अपॉइंटमेंट, नितिन गडकरी ने तुरंत दिया समय और खिलाई डिश

संसद के शीतकालीन सत्र में प्रियंका गांधी ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से अपने संसदीय क्षेत्र के कामों के लिए मुलाकात का समय मांगा। गडकरी ने तुरंत सहमति दी और प्रश्नकाल के बाद उनसे मुलाकात की, साथ ही उन्हें चावल से बनी डिश भी खिलाई।

गुरुवार को लोकसभा में एक असाधारण और सौहार्दपूर्ण घटना देखने को मिली, जिसने राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना दिया और आमतौर पर हंगामेदार रहने वाले संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान, कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से अपने संसदीय क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर चर्चा के लिए मुलाकात का समय मांगा। इस घटना ने न केवल सदन का ध्यान खींचा, बल्कि दोनों नेताओं के बीच एक सकारात्मक संवाद का उदाहरण भी प्रस्तुत किया। यह दर्शाता है कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद, जनहित के मुद्दों पर त्वरित। और प्रभावी कार्रवाई संभव है, खासकर जब नेता व्यक्तिगत रूप से पहल करते हैं।

चंडीगढ़-शिमला हाईवे पर सवाल और मुलाकात की मांग

प्रश्नकाल के दौरान, केरल के वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से चंडीगढ़-शिमला हाईवे की स्थिति और उससे संबंधित समस्याओं को लेकर सवाल किया। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा था, जिस पर प्रियंका गांधी अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों की चिंताओं को उजागर कर रही थीं। अपना सवाल खत्म करते ही, उन्होंने एक मुस्कान के साथ गडकरी से कहा कि वह जून महीने से उनसे अपने संसदीय क्षेत्र के कुछ महत्वपूर्ण कामों के लिए मिलने का वक्त मांग रही हैं, लेकिन उन्हें अभी तक समय नहीं मिल पाया है। उन्होंने विनम्रतापूर्वक अनुरोध किया कि उन्हें जल्द ही मुलाकात का समय दिया जाए, ताकि वे अपने क्षेत्र की समस्याओं को विस्तार से समझा सकें।

जून से लंबित थी मुलाकात की मांग

प्रियंका गांधी ने सदन में स्पष्ट किया कि वह पिछले कई महीनों, विशेष रूप से जून से, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से मिलने का प्रयास कर रही थीं। उनके संसदीय क्षेत्र से जुड़े कई विकास कार्य और मुद्दे थे, जिन पर वह व्यक्तिगत रूप से मंत्री से चर्चा करना चाहती थीं और यह दर्शाता है कि यह मुलाकात की मांग कोई तात्कालिक नहीं थी, बल्कि एक लंबे समय से लंबित थी, जिसे उन्होंने संसद के पटल पर उठाने का फैसला किया। इस तरह की सार्वजनिक अपील अक्सर तब की जाती है जब सामान्य चैनलों के माध्यम से संपर्क स्थापित करना मुश्किल हो जाता है।

गडकरी का त्वरित और अप्रत्याशित जवाब

जब प्रियंका गांधी ने भरी संसद में मुलाकात का समय मांगा, तो नितिन गडकरी का जवाब तुरंत और अप्रत्याशित था। उन्होंने किसी भी औपचारिकता को दरकिनार करते हुए कहा कि किसी भी अपॉइंटमेंट की जरूरत नहीं है, क्योंकि उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। गडकरी ने प्रियंका गांधी को तुरंत प्रश्नकाल समाप्त होने के बाद अपने संसद कार्यालय में। आने का निमंत्रण दिया, यह कहते हुए कि वह उनसे बात करेंगे और उनकी बात सुनेंगे। यह जवाब न केवल प्रियंका गांधी के लिए, बल्कि सदन में मौजूद अन्य सदस्यों के लिए भी आश्चर्यजनक था, क्योंकि आमतौर पर मंत्रियों से मुलाकात के लिए औपचारिक प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है और इसमें समय लगता है।

प्रश्नकाल के बाद हुई तत्काल मुलाकात

नितिन गडकरी के आश्वासन के बाद, प्रश्नकाल समाप्त होते ही दोनों नेताओं के बीच तत्काल मुलाकात हुई। यह मुलाकात संसद भवन के भीतर गडकरी के कार्यालय में हुई, जहां प्रियंका गांधी अपने संसदीय क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने पहुंचीं। इस त्वरित प्रतिक्रिया और मुलाकात ने संसदीय मर्यादा और सौहार्द का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया, जहां राजनीतिक मतभेदों के बावजूद जनहित के मुद्दों पर संवाद को प्राथमिकता दी गई। यह घटना दिखाती है कि कैसे व्यक्तिगत पहल से नौकरशाही बाधाओं को दूर किया जा सकता है।

संसदीय सत्र की अन्य प्रमुख चर्चाएं

मुलाकात के दौरान, नितिन गडकरी ने प्रियंका गांधी को चावल से बनी एक विशेष डिश भी खिलाई। यह आतिथ्य का एक व्यक्तिगत स्पर्श था, जिसने इस मुलाकात को और भी यादगार बना दिया। यह दर्शाता है कि राजनीतिक संवाद के साथ-साथ व्यक्तिगत सौहार्द और सम्मान भी भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू है। इस घटना ने संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान चल रहे हंगामे के बीच एक सकारात्मक और मानवीय पहलू को उजागर किया, जो अक्सर तीखी बहस और आरोप-प्रत्यारोप के बीच खो जाता है। यह शीतकालीन सत्र वैसे तो काफी हंगामेदार रहा है, जिसमें मनरेगा की जगह लाए गए दूसरे बिल पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही थी। प्रियंका गांधी ने भी गुरुवार को प्रदूषण और मनरेगा में हो रहे बदलाव को लेकर अपनी बात रखी थी। इन गंभीर चर्चाओं और हंगामे के बीच, गडकरी और प्रियंका गांधी के बीच की यह सौहार्दपूर्ण बातचीत एक ताजी हवा के झोंके की तरह थी, जिसने दिखाया कि राजनीति में भी व्यक्तिगत संबंध और त्वरित समाधान की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। यह घटना संसदीय कार्यवाही के मानवीय पक्ष को दर्शाती है।