- भारत,
- 22-Jun-2025 10:20 AM IST
S Jaishankar: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने अपने कार्यकाल के 11 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इस दौरान भारत की विदेश नीति में व्यापक परिवर्तन देखने को मिला है। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने इन 11 वर्षों के कूटनीतिक सफर का लेखा-जोखा पेश करते हुए स्पष्ट कहा कि भारत अब पहले जैसा नहीं रहा—अब दुनिया को यह समझना होगा कि भारत के साथ सहयोग करना फायदे का सौदा है, और टकराव की कीमत चुकानी पड़ सकती है।
पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों की यथार्थवादी सोच
जयशंकर ने कहा कि भारत को अपने पड़ोसियों से हर समय सहज और सरल रिश्तों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। उन्होंने साफ किया कि रिश्तों में उतार-चढ़ाव स्वाभाविक हैं, लेकिन भारत ने हमेशा संयम और समझदारी से काम लिया है। नेपाल, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों के साथ संबंधों में आई चुनौतियों का भारत ने संतुलित तरीके से समाधान निकाला है। श्रीलंका में सरकार बदलने के बाद भी भारत के संबंध मजबूत रहे हैं, वहीं मालदीव के साथ शुरुआती तनाव के बावजूद रिश्ते पटरी पर लौट आए हैं।
पाकिस्तान: अलगाव और स्पष्ट नीति का उदाहरण
पाकिस्तान को लेकर जयशंकर का रुख बेहद स्पष्ट और सख्त था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने खुद को सेना की सोच के तहत परिभाषित किया है, जिससे वहां शत्रुता की भावना गहराई से जड़ें जमा चुकी है। उन्होंने याद दिलाया कि पहले भारत ने 26/11 मुंबई हमले जैसे जघन्य आतंकी हमले पर भी संयम दिखाया था, लेकिन मोदी सरकार ने नीति में बदलाव करते हुए उरी सर्जिकल स्ट्राइक (2016), बालाकोट एयर स्ट्राइक (2019) और हालिया ऑपरेशन सिंदूर के जरिए यह स्पष्ट कर दिया है कि अब भारत मूकदर्शक नहीं बनेगा। जयशंकर ने दो टूक कहा, "भारत अब पहले नहीं छेड़ेगा, लेकिन अगर छेड़ा गया तो छोड़ेगा नहीं।"
चीन और अमेरिका को लेकर भारत की रणनीति
चीन को लेकर जयशंकर ने कहा कि सीमाई विवादों से निपटने के लिए भारत को अपनी सामरिक क्षमताएं बढ़ानी होंगी। उन्होंने 2020 की गलवान घाटी झड़प को एक कड़ा सबक बताया, जिससे भारत ने अपनी रक्षा रणनीति को और सुदृढ़ किया। वहीं अमेरिका के संदर्भ में उन्होंने कहा कि वहां की नीति में कुछ अनिश्चितता होती है, इसलिए भारत बहुआयामी साझेदारी बनाकर स्थायित्व की ओर बढ़ रहा है।
संकट काल में भारत की भूमिका: ऑपरेशन गंगा से सिंधु तक
मोदी सरकार की विदेश नीति का सबसे मानवीय चेहरा तब सामने आया जब दुनिया भर में संकट के समय भारतीयों को सुरक्षित निकाला गया। चाहे यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच ऑपरेशन गंगा हो या ईरान-इजराइल संघर्ष के दौरान ऑपरेशन सिंधु, भारत ने अपनी कूटनीतिक क्षमता और मानवीय संवेदना का सफल प्रदर्शन किया। जयशंकर ने कहा कि ये अभियान वैश्विक संकटों में भारत की सशक्त स्थिति का प्रमाण हैं।
हिंद-प्रशांत और खाड़ी देशों से गहराए संबंध
मोदी युग की विदेश नीति में केवल पड़ोसी ही नहीं, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र, आसियान देशों और खाड़ी देशों के साथ भी रिश्तों को नई ऊंचाई मिली है। भारत की "एक्ट ईस्ट" नीति और हिंद-प्रशांत में बढ़ती सक्रियता ने उसे वैश्विक शक्ति संतुलन का अहम खिलाड़ी बना दिया है। खाड़ी देशों के साथ रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग ने भारत को पश्चिम एशिया में एक स्थिर साझेदार के रूप में स्थापित किया है।
आत्मनिर्भर और सशक्त भारत की विदेश नीति
11 वर्षों में भारत ने न केवल अपनी विदेश नीति को सशक्त बनाया है, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी आवाज को भी बुलंद किया है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत अब "रिएक्टिव" नहीं बल्कि "प्रोएक्टिव" विदेश नीति पर अमल कर रहा है। एस. जयशंकर का यह संदेश साफ है—भारत अब अपनी शर्तों पर दुनिया से बात करता है, और यही नया भारत है।