दुनिया / चीन में 'ब्यूबोनिक प्लेग' का खतरा! इसे 'काली मौत' भी कहते हैं

AajTak : Jul 06, 2020, 09:39 AM
Covid19: कोरोना वायरस से जूझ रही दुनिया के लिए एक और बुरी खबर है। अब एक बार फिर चीन से एक खतरनाक और जानलेवा बीमारी फैलने का खतरा है। इस बीमारी ने पहले भी पूरी दुनिया में लाखों लोगों को मारा है। इस जानलेवा बीमारी का दुनिया में तीन बार हमला हो चुका है। पहली बार इसे 5 करोड़, दूसरी बार पूरे यूरो की एक तिहाई आबादी और तीसरी बार 80 हजार लोगों की जान ली थी। अब एक बार फिर ये बीमारी चीन में पनप रही है। इसे ब्लैक डेथ या काली मौत भी कहते हैं।

इस बीमारी का नाम है ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague)। उत्तरी चीन के एक अस्पताल में ब्यूबोनिक प्लेग का मामला आने के बाद से वहां अलर्ट जारी कर दिया गया है। चीन के आंतरिक मंगोलियाई स्वायत्त क्षेत्र, बयन्नुर में प्लेग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए तीसरे स्तर की चेतावनी जारी की गई है।

ब्यूबोनिक प्लेग का यह केस बयन्नुर के एक अस्पताल में शनिवार को सामने आया। स्थानीय स्वास्थ्य विभाग ने यह चेतावनी 2020 के अंत तक के लिए जारी की है। लोगों को सतर्क रहने के लिए कहा है। क्योंकि यह बीमारी जंगली चूहों में पाए जाने वाली बैक्टीरिया से होती है।

इस बैक्टीरिया का नाम है यर्सिनिया पेस्टिस बैक्टीरियम (Yersinia Pestis Bacterium)। यह बैक्टीरिया शरीर के लिंफ नोड्स, खून और फेफड़ों पर हमला करता है। इससे उंगलियां काली पड़कर सड़ने लगती है। नाक के साथ भी ऐसा ही होता है।

चीन की सरकार ने बयन्नुर शहर में मानव प्लेग फैलने के खतरे की आशंका जाहिर की है। ब्यूबोनिक प्लेग को गिल्टीवाला प्लेग भी कहते हैं। इसमें शरीर में असहनीय दर्द, तेज बुखार होता है। नाड़ी तेज चलने लगती है। दो-तीन दिन में गिल्टियां निकलने लगती हैं। 14 दिन में ये गिल्टियां पक जाती हैं। इसके बाद शरीर में जो दर्द होता है वो अंतहीन होता है।

ब्यूबोनिक ब्लेग सबसे पहले जंगली चूहों को होता है। चूहों के मरने के बाद इस प्लेग का बैक्टीरिया पिस्सुओं के जरिए मानव शरीर में प्रवेश कर जाता है। इसके बाद जब पिस्सू इंसानों को काटता है वह संक्रामक लिक्विड इंसानों के खून में छोड़ देता है। बस इसी के बाद इंसान संक्रमित होने लगता है। चूहों का मरना आरंभ होने के दो तीन सप्ताह बाद मनुष्यों में प्लेग फैलता है। 

दुनिया भर में ब्यूबोनिक प्लेग के 2010 से 2015 के बीच करीब 3248 मामले सामने आ चुके हैं। जिनमें से 584 लोगों की मौत हो चुकी है। इन सालों में ज्यादातर मामले डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, मैडागास्कर, पेरू में आए थे।

इससे पहले 1970 से लेकर 1980 तक इस बीमारी को चीन, भारत, रूस, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण अमेरिकी देशों में पाया गया है।

ब्यूबोनिक प्लेग को ही 6ठीं और 8वीं सदी में प्लेग ऑफ जस्टिनियन (Plague Of Justinian) नाम दिया गया था। इस बीमारी ने उस समय पूरी दुनिया में करीब 2।5 से 5 करोड़ लोगों की जान ली थी। 

ब्यूबोनिक प्लेग का दूसरा हमला दुनिया पर 1347 में हुआ। तब इसे नाम दिया गया था ब्लैक डेथ (Black Death)। इस दौरान इसने यूरोप की एक तिहाई आबादी को खत्म कर दिया था।

ब्यूबोनिक प्लेग का तीसरा हमला दुनिया पर 1894 के आसपास हुआ था। तब इसने 80 हजार लोगों को मारा था। इसका ज्यादातर असर हॉन्गकॉन्ग के आसपास देखने को मिला था। भारत में 1994 में पांच राज्यों में ब्यूबोनिक प्लेग के करीब 700 केस सामने आए थे। इनमें से 52 लोगों की मौत हुई थी। 

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