Ban / इन इलाकों में फेसबुक, ट्विटर से संबंधित सोशल मीडिया न्यूज प्लेटफॉर्म पर बैन

News18 : Jul 12, 2020, 01:58 PM
चंडीगढ़। हरियाणा (Hariyana) में सोशल मीडिया (Social Media) समाचार प्लेटफार्मों (News Platforms) पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। 6 उपायुक्तों ने अपने अधिकार क्षेत्र में इसे बैन किया है। इसमें कहा गया है कि ऐसे प्लेटफार्मों से असत्यापित और भ्रामक समाचारों का प्रसार समाज में शांति भंग कर सकता है और कोरोनोवायरस महामारी के दौरान आम आदमी के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। हरियाणा में विपक्ष व मानवाधिकार संगठन के कार्यकर्ताओं ने इसे अघोषित आपातकाल और सोशल मीडिया की आवाज को चुप कराने का प्रयास बताया है। साथ ही बैन हटाने की मांग भी की है।

मीडिया रिपोर्ट के मुतबिक व्हाट्सएप, ट्विटर, फेसबुक, टेलीग्राम, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, पब्लिक ऐप और लिंक्डइन पर आधारित सभी सोशल मीडिया समाचार प्लेटफॉर्म को बैन किया गया है। सोनीपत, कैथल, चरखी दादरी, करनाल, नारनौल और भिवानी के डीसी द्वारा ये बैन लगाया गया है। इसमें भी करनाल डीसी ने 15 दिनों के लिए प्रतिबंध लगाया है, जबकि ​अन्य पांच ने अगले आदेश तक प्रतिबंध लगा दिया है।

पहले भी जारी हो चुका है आदेश

बता दें कि इसी तरह का पहला आदेश चरखी दादरी डीसी ने इस साल 12 मई को जिला मजिस्ट्रेट के रूप में अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए जारी किया था। इसके बाद अब ताजा आदेश 10 जुलाई को करनाल डीसी ने जारी किया है। मिली जानकारी के मुताबिक सोनीपत में किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने समाचार चैनल के रूप में कार्य करने की अनुमति नहीं ली है। उन्हें न तो हरियाणा सरकार के सूचना और जनसंपर्क निदेशालय से पंजीकरण मिला और न ही केंद्र सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय से कोई अनुमति दी गई है।

जताई ये आशंका

बैन लगाने के पीछे तर्क भी दिया गया है। इसके तहत सोशल मीडिया के समाचार चैनलों से जानबूझकर या अनजाने में फर्जी समाचार या गलत रिपोर्टिंग के कारण कोरोना वायरस महामारी की इस असामान्य परिस्थिति में समाज के एक बड़े वर्ग के बीच भ्रामक जानकारी फैलने की आशंका है। इसलिए इसे पंजीकृत करवाना आवश्यक है। प्रतिबंध आईपीसी की धारा 188, आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 और महामारी रोग अधिनियम, 1957 के तहत लगाए गए हैं। यह भी उल्लिखित किया गया है कि इन कानूनों का उल्लंघन करने पर जेल की सजा और जुर्माना भी लग सकता है। हालांकि मानवाधिकार कार्यकर्ता सुखविंदर नारा ने इन धाराओं को मनमाना और असंवैधानिक करार दिया है।

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