Cyber Crime / भरतपुर बना साइबर ठगों का सबसे बड़ा हब, पीछे छूटा जामताड़ा… जानें कैसे

Zoom News : Oct 04, 2023, 03:00 AM
Cyber Crime: आजकल साइबर क्राइम देश में सबसे बड़ा अपराध बनाकर अगर उभरा है. कम पढ़े लिखे साइबर अपराधी भी अच्छे खासे पढ़े-लिखे लोगों को कुछ सेकंड में बेवकूफ बनाकर उनके जीवन भर की गाढ़ी कमाई ट्रांजेक्शन के जरिए हड़प लेते हैं. बस एक अनजान फोन कॉल आता है और बैंक अकाउंट साफ हो जाता है. अभी तक माना जा रहा था कि झारखंड का जामताड़ा इस साइबर क्राइम का सबसे बड़ा अड्डा या हब है. लेकिन उसके बाद मेवात से सबसे ज्यादा साइबर ठगी की कॉल आनी शुरू हो गई थी.

धीरे-धीरे असम, पश्चिम बंगाल, मणिपुर और राजस्थान से भी साइबर क्रिमिनल्स ने मोबाइल पर कॉल करके लोगों को ठगना शुरू कर दिया. अब जामताड़ा या मेवात का इलाका नहीं बल्कि राजस्थान का भरतपुर साइबर अपराधियों का सबसे बड़ा हब बन चुका है. देश भर में सबसे ज्यादा साइबर ठगी की वारदातों को भरतपुर से ही अंजाम दिया जाता है. कोरोना के बाद साइबर अपराध के मामलों में अचानक काफी तेजी से बढ़ोतरी देखी गई है.

10 जिलों से 80 फीसदी घटनाएं

देश में साइबर ठगी की 80 फीसदी घटनाओं को सिर्फ 10 जिलों से अंजाम दिया जा रहा है, जो चौंकाने वाला आंकड़ा है. राजस्थान का भरतपुर इनमें टॉप पर है, जहां से अकेले 18 फीसदी ठगी की जा रही है. ‘द फ्यूचर क्राइम रिसर्च फाउंडेशनFCRF ने ऐसे जिलों की सूची तैयार की है, जहां से साइबर ठगी की जा रही है. साइबर क्राइम का सबसे बड़े हब के तौर पर अब राजस्थान का भरतपुर टॉप पर है.

वहीं उत्तर प्रदेश का मथुरा दूसरे नंबर पर है, जहां से 12 फीसदी घटनाएं अंजाम दी जा रही हैं. इसी तरह, नूह (मेवात) से 11 फीसदी, देवघर से 10 फीसदी, जामताड़ा से 9 फीसदी, गुरुग्राम से 8 फीसदी, अलवर से 5 फीसदी, बोकारो व कर्माटांड से 2 फीसदी और गिरिडीह से 2 फीसदी ठगी की घटनाएं हो रही हैं.

भरतपुर क्यों बना साइबर क्राइम का हब?

नोएडा में साइबर थाने की हेड और कई सालों से साइबर क्राइम के बड़े-बड़े मामलों को सुलझाने वाली इंस्पेक्टर रीता यादव का कहना है कि भरतपुर यूं ही साइबर क्राइम का सबसे बड़ा अड्डा नहीं बन गया है. इसके पीछे कई वजह हैं. दिल्ली से सटे होने के कारण यहां साइबर क्राइम बढ़ रहा है. यहा रोजगार के बहुत ज्यादा मौके नहीं हैं, जिस वजह से कमाई के लिए लोग साइबर क्राइम की ओर बढ़ रहे हैं. लोगों में जागरुकता और डिजिटल लिटरेसी की भी कमी है.

मथुरा में क्यों बढ़े साइबर क्राइम?

इंस्पेक्टर रीता यादव का कहना है कि मथुरा के टूरिस्ट डेस्टिनेशन होने की वजह से यहां साइबर अपराधी बढ़ रहे हैं. फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन भी यहां काफी ज्यादा होता है. नूंह दिल्ली एनसीआर के नजदीक है. जिस कारण साइबर अपराधी यहां भी एक्टिव हैं. इसके अलावा कर्माटांड, गुरुग्राम, बोकारो, गिरिडीह, असम, पश्चिम बंगाल , मणिपुर से भी साइबर ठगी की जाती है.

एनसीआर में अपराधियों को विक्टिम भी आसानी से मिल जाते हैं. इसके अलावा देवघर , जामताड़ा साइबर ड्रीम के लिए कुख्यात हैं. यहां काम पढ़े लिखे लोग हाइली क्वालिफाइड लोगो को ठगने के लिए बकायदा ट्रेनिंग देते हैं. यहां साइबर क्राइम सिखाने को क्लास चलाई जाती हैं.

क्यों नहीं पकड़े जाते साइबर अपराधी?

साइबर क्राइम के बढ़ने के कई कारण हैं. सबसे बड़ा कारण फर्जी दस्तावेजों के जरिए फर्जी सिम कार्ड आसानी से हासिल करना है और इस वजह से पुलिस कभी असली साइबर क्रिमिनल्स का पता नहीं जान पाती है या उन तक नहीं पहुंच पाती है. पुलिस रिकॉर्ड में इन साइबर क्रिमिनल्स का कोई रिकॉर्ड नहीं होता और जब पुलिस ऐसे किसी इलाके में किसी साइबर ठग की तलाश करते हुए रेड करने जाती है तो लोकल पुलिस भी उसे सहयोग नहीं करती और तो और खाकी को देखकर अचानक इलाके में भगदड़ मच जाती है.

उस भगदड़ में भागने वालों का कोई भी क्रिमिनल रिकॉर्ड पुलिस के पास नहीं होता है. यानी साफ है कि साइबर क्रिमिनल्स को पता चल जाता है कि पुलिस किसी को पकड़ने आई है और उन्होंने क्राइम किया होता है तो वह पुलिस से भागने लगते हैं ,जबकि पुलिस के पास उनके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं होता. साइबर ठग इतने शातिर होते हैं कि वह फर्जी दस्तावेज और फर्जी सिम कार्ड के जरिए कोई भी सुराग पीछे नहीं छोड़ते. इसके अलावा सबसे बड़ी वजह बेरोजगारी है. साइबर अपराधी बेरोजगार लोगों का फायदा उठाते हैं. उन्हें ट्रेनिंग देते हैं और एक नेटवर्क तैयार करते हैं.

साइबर एक्सपर्ट का क्या कहना है?

साइबर एक्सपर्ट अनुज दयाल का कहना है कि जिस तेजी से ये नए दस जिले साइबर क्राइम का हब बनकर सामने आए हैं. उसकी वजह पुलिसिंग का कमजोर होना, लोगो की अज्ञानता, निरक्षरता और मोरल कंपास की कमी है. उनके मुताबिक साइबर अपराधी अब आर्टिफिशियल इंटीलिजेंस और मशीन लर्निंग का भी इस्तेमाल कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर पड़े किसी भी शख्स के ऑडियो और वीडियो को उठाकर वह आर्टिफिशिएल इंटेलिजेंस के जरिए उससे मिलते-जलती हुई आवाज बना कर अपने शिकार के रिश्तेदार को फोन कर उनसे पैसे की ठगी करते हैं. यह एक नया ट्रेंड सामने आया है.

अनुज दयाल का कहना है कि साइबर अपराधियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले टूल से साइबर पुलिसकर्मी काफी पीछे हैं. साइबर क्राइम करने के लिए ज्यादा स्किल की जरूरत नहीं है. हैकिंग टूल और मैलवेयर आजकल आसानी से मौजूद हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर अपराधी साइबर अटैक करते हैं. इसके अलावा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म में केवाईसी और वेरिफिकेशन की प्रक्रिया खराब है. साइबर अपराधी फर्जी आईडी बना लेते हैं, जिस कारण इन्हें ट्रैक कर पाना भी मुश्किल होता है.

‘साइबर ठगी का शिकार लोगों को नही मिलती रकम’

साइबर ठगी का शिकार होने के बाद पीड़ित साइबर थानों के सिर्फ चक्कर काटता रहता है. उसको अपनी ठगी गई रकम वापस नहीं मिल पाती क्योंकि इन साइबर ठगों तक पहुंचना मुश्किल है. ऐसी ही एक साइबर ठगी का शिकार पत्रकार रुचि राय के रिटायर्ड सरकारी अधिकारी पिता हुए, जिनसे उनके जीवन भर की गाढ़ी कमाई 10 लाख रुपये ठग लिए गए. रुचि राय के मुताबिक, 15 सितंबर को उनके पिता को अनजान नंबर से कॉल आया, सेवानिवृत्त व्यक्ति को ऑनलाइन जीवन प्रमाण पत्र सबमिट करना है.

उनके पिता को पता लगा कि धोखाधड़ी वाली कॉल है. वह एसबीआई की नजदीकी ब्रांच में जाकर अपने काउंट फ्रीज करवाए और ग्राहक सेवा पर सारे ट्रांजैक्शन मोड के ब्लॉक कराया. नेटबैंकिंग भी तुरंत बंद करने को बोला. ग्राहक सेवा प्रतिनिधि ने कहा कि चिंता मत करो. भुगतान के सारे मोड को बंद कर दिया गया है. लेकिन 22 सितंबर को दोपहर 1 बजे 10 मिनट में उनके खाते से अज्ञात लोगों ने 10 लाख रुपये निकाल लिए, पैसे ट्रांसफर होने का कोई ओटीपी और मैसेज बैंक की तरफ से हमें नहीं मिला. फ्रॉड वाले शख्स ने इनके पिता का नंबर दूसरे नाम से पोर्ट कर लिया और ठग लिया.

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