
- भारत,
- 05-May-2019 01:16 PM IST
बनारस। आधुनिकीकरण के इस समय में जैवसम्पदा एवं मानव स्वास्थय का क्षरण प्रमुख समस्याओं की तरह उभर कर सामने आ रहे हैं| प्रदूषित वातावरण एवं अव्यवस्थित जीवनशैली के परिणाम स्वरुप लोग आज विभिन्न प्रकार के रोगों जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कैंसर आदि से पीड़ित है।सामान्यरूप से बाजार में इन् रोगों के लिए बहुत सी दवाईयाँ उपलब्ध है, परन्तु इन दवाइयों से उपचार के साथ ही साथ शरीर में बहुत से अन्य साइड इफ़ेक्ट भी हो जाते है।प्राचीन समय में औषधिय पौधों का प्रयोग कर मानव शरीर की रोगों से रक्षा किया जाता था, जिनका शरीर पर कोई अन्य दुष्प्रभाव भी नहीं होता था| आयुर्वेदिक किताबो में उल्लेखित ऋष्यगंधा एक औषधीय पौधा है, जिसे सामान्य भाषा में पनीर का फूल या पनीर बंध के नाम से जाना जाता है।वैज्ञानिक शब्दों में इसे विधानिया कोअगुलंस के नाम से जानते है।यह पौधा प्राचीन काल से ही आयुर्वेद में मधुमेह, कैंसर, दांत दर्द, मोटापे में कमी के लिए प्रयोग किया जाता रहा है, परन्तु इसके अनुचित रख-रखाव एवं अन्धाधुन्ध प्रयोग के कारण आज यह एक संकटाग्रस्त पौधे की तरह जाना जाता है।वास्तव में आज वैज्ञानिक तकनीकियों के साथ आयुर्वेदिक वनस्पतियों के प्रयोग से, एलिलोपैथीक दवाओ से ज्यादा कारगर दवाओ का इजाद संभव हो रहा है।प्रयोगशाला में किया ऋष्यगंधा का उत्पादनबीएचयू के वनस्पति विज्ञानं विभाग की प्रो शशि पाण्डेय ने इसे संभव कर दिखाया है| प्रो पाण्डेय एवं उनकी शोधार्थी (रिसर्च स्कॉलर) ने प्रयोगशाला में ही कृत्रिम ऊतक संवर्धन विधि से संकटाग्रस्त पौधे पनीर के फूल का उत्पादन संभव कर लिया है।साथ ही साथ उन्होंने इन उतक संवर्धित पौधों में उपस्थित जैवसक्रिय यौगिक विथानोलॉयड्स के प्रतिशत को भी बढाया है। अपने इस शोध कार्य को आगे ले जाते हुए प्रो. पाण्डेय ने नैनोटेक्नोलाजी के साथ इन कृत्रिम उतक संवर्धित पौधों का प्रयोग कर सूक्ष्म नैनोकणों का निर्माण किया।प्रो. पाण्डेय ने बताया की उनके प्रयोगशाला में बनाये गए ये नैनोंकण रोग प्रतिरोधी विथानोलॉयड्स से जुड़े रहते है, जो की कैंसर एवं मधुमेह के प्रति प्रभावी यौगिक के रूप में जाना जाता है ।उन्होंने आगे बताया की ये नैनोकण ना की केवल कम मात्रा में प्रयोग होते है बल्कि रोग प्रतिरोधी विथानोलॉयड्स के प्रभाव को भी बढ़ा देते है।कैंसर के बीमारी लिए कारगर साबित होगीपनीर के फूल की पतियों से बने ये नैनोकण सरवाईकल कैंसर के प्रति प्रभावी पाए गए है, जिनका प्रयोग आगे भविष्य में बड़े स्तर पर किया जाना संभव हो सकता है। इन शोधकार्यों के फलस्वरूप इस संकटाग्रस्त पौधे का विस्तार रूप से उत्पादन संभव हुआ है, साथ ही साथ कैंसर के क्षेत्र में भी इसके प्रयोग की सम्भावनाये दिखाई दे रही है, क्योकि ये नैनोकण कैंसर के प्रति प्रभावी विथानोलॉयड्स की क्षमता को 50 फीसदी से अधिक बढ़ावा प्रदान करते है।प्रो पाण्डेय ने आगे बताया की इस विषय पर शोध कार्य अभी भी जारी है, साथ ही साथ इसके प्रभाव का अध्यन चूहों एवं पौधों दोनों पर भी देखा जा रहा है| अब तक से अध्यन के नतीजे प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओ इंडस्ट्रियल क्रॉप्स एंड प्रोडक्ट्स एवं मटेरियल साइंस एंड इंजिन्यरिंग सी में प्रकाशित हो चुके है।