Coronavirus / क्या जर्मनी ने Covid-19 मृत्यु दर कम रखने का ढूंढ लिया है फॉर्मूला?

AajTak : Mar 26, 2020, 11:50 PM
Coronavirus: कोरोना वायरस महामारी के विषय में दी जाने वाली सभी दलीलों में मृत्यु दर ही फोकस में है। जर्मनी में इसके अन्य पड़ोसी देशों की तुलना में COVID-19 मृत्यु दर कहीं कम 0.6 फीसदी है। ये इसके बावजूद है कि जर्मनी में कुल केस की संख्या फ्रांस और UK से मिलाकर भी ज्यादा है। ये कैसे संभव हुआ? क्या भारत के लिए इससे सीखने को कुछ सबक हैं?

Covid-19 महामारी ने पूरी दुनिया को थाम कर रख दिया है। वुहान में उत्पत्ति के बाद ये वायरस दुनिया के अधिकतर हिस्सों में फैल गया। इसका खौफ हर दिन के साथ लोगों पर बढ़ता ही गया।

शुरू में इस वायरल संक्रमण को अधिकतर देशों ने चीन की समस्या मान कर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकिन इस वायरस के अमेरिका और यूरोप को चपेट में लेने के बाद भी बीमारी के फैलाव को साधारण फ्लू से तुलना करके अनदेखी की जाती रही। कई राजनेताओं और वैज्ञानिकों ने इसकी मृत्यु दर की तुलना साधारण मौसमी फ्लू तक से कर डाली जो हर साल अमेरिका और अन्य देशों को प्रभावित करता है।

अब ये सारी धारणाएं बदल गई हैं। ये अच्छे के लिए ही हुआ। राजनेताओं, डॉक्टर्स और वैज्ञानिकों ने अब बीमारी के फैलाव को बहुत गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। हैरानी की बात नहीं कि तमाम दुनिया के दबाव के आगे झुकते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने आखिरकार इसे महामारी घोषित किया।

चीन अब इस संकट से उबर रहा है। कम से कम कागज पर तो ऐसा ही है। चीन ने अब अपने शहरों को आम दिनों के कामकाज की तरह खोलना शुरू कर दिया है। Covid-19 पर फोकस अब चीन से हट कर यूरोप, अमेरिका और भारत (दक्षिण एशिया) पर आ गया है।

यूरोप, और खास तौर पर अमेरिका सामने आ रहे केसों की टेस्टिंग के लिए संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। इस वजह से बैकलॉग के साथ मृत्यु दर भी बढ़ रही है।

मृत्यु दर चीन में 4% (आधिकारिक आंकड़ा) है लेकिन इटली में कहीं ज्यादा 10।1% , स्पेन में 7।4%, फ्रांस में 5।3% और यूनाइटेड किंगडम में 4।9% है। अमेरिका में फिलहाल मृत्यु दर 1।5% है।

जर्मनी में ये मृत्यु दर आश्चर्यजनक ढंग से कम (0।6%) है। जर्मनी में मैंने अपने कुछ संपर्कों से बात की और वहां से आने वाले डेटा का विश्लेषण कर जानने की कोशिश की कि वहां अपेक्षाकृत मृत्यु दर इतनी कम क्यों है?

डेमोग्राफिक्स (जनसांख्यिकी):

जनसांख्यिकी विश्लेषण के हिसाब से बीमारी के फैलने का विश्लेषण किया जाए तो जर्मनी भाग्यशाली है। जर्मनी और इटली, दोनों देशों में 60 वर्ष से ऊपर के वयस्कों की आबादी का प्रतिशत एक जैसा है।

यद्यपि जर्मनी में Covid-19 पुष्ट केसों की मध्यमान आयु 47 है जो कि इटली में 63 है। यानि जर्मनी ने किसी तरह अपने बुज़ुर्ग लोगों को इतना संक्रमित नहीं होने दिया जितना कि कुछ अन्य देशों में हुआ। यही वजह है कि जर्मनी में मृत्यु दर कम है।अब हमें दोनों देशों के सामाजिक पहलुओं का अध्ययन करना चाहिए जिससे ये पता लगाया जा सके कि संक्रमित लोगों के ब्रेकअप को लेकर दोनों देशों में इतना अंतर क्यों है। अक्सर कहा जाता है कि इटली में युवा पीढ़ी ज्यादा समय पुरानी पीढ़ी के साथ बिताती है। लेकिन हमें इस मत को सही ठहराने के लिए गहराई से विश्लेषण करना होगा।

टेस्टिंग:

Covid-19 के फैलाव से बेहतर ढंग से निपटने के लिए टेस्टिंग के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता, लेकिन यहां भी मैंने छोटे अंतर नोटिस किए कि जर्मनी ने कैसे पूरी स्थिति को हैंडल किया।

A. जर्मनी ने टेस्टिंग पर काफी जोर दिया: जो ताजा आधिकारिक आंकड़े हमारे पास हैं उनके मुताबिक जर्मनी 167,000 टेस्ट (19 मार्च तक) करा चुका था। असलियत में ये आंकड़ा और अधिक ऊंचा होगा। ये आंकड़ा फ्रांस, UK और स्पेन के कुल आंकड़ों से ज्यादा बैठता है।

B. जर्मनी में जल्दी टेस्टिंग: जर्मनी के पास विकेंद्रीकृत मेडिकल सिस्टम है जो कि यूरोपीय देशों, अमेरिका या भारत में नहीं है। वहां सरकार या चीफ मेडिकल काउंसिल जर्मनी के सभी 16 संघीय राज्यों में टेस्टिंग प्रक्रिया को नियंत्रित नहीं करती। यहां रॉबर्ट कोच इंस्टीट्यूट (अमेरिका के CDC और भारत के ICMR के समान) सिर्फ सिफारिश करता है।

जब संकट से निपटने की बात हो तो 16 राज्य अपनी प्रकियाओं के लिए जिम्मेदार हैं। ये सुनिश्चित करता है कि टेस्टिंग लैब्स को चुनने में देरी न हो। इसका मतलब ये भी है कि जर्मनी ने फरवरी के मध्य में ही व्यापक टेस्टिंग करना शुरू कर दिया था। ऐसे में केसों की पहचान बहुत पहले ही कर ली गई। इस वजह से उनका इलाज आसान हो गया और संक्रमण को फैलने से रोका जा सका।

ये वो सबकुछ है जिससे भारत को भविष्य के लिए सबक लेना चाहिए। केंद्रीकृत ढांचे की वजह से भारत को कई बार उपायों और प्रक्रियाओं को लागू करने में देर होती है और कीमती वक्त बर्बाद चला जाता है। बड़े पैमाने पर टेस्टिंग भी एक अहम पहलू है जिस पर हर देश को ध्यान देना चाहिए। ताकि देश में इस बीमारी को फैलने से रोका जा सके।

लापता मामलों पर संदेह:

किसी भी कहानी की तरह जर्मनी की कम मृत्यु दर के आंकड़ों को भी कुछ वर्गों से चुनौती दी जा रही है। यहां रॉबर्ट कोच इंस्टीट्यूट की ओर से Agence France-Presse को दिए बयान में कहा "हम पोस्टमार्टम टेस्ट को निर्णायक कारक नहीं मानते। हम इस सिद्धांत पर काम करते हैं कि मरीजों का मृत्यु से पहले ही टेस्ट कर लिया जाए।

इसका मतलब जर्मनी उनका #COVID19 संक्रमण के लिए टेस्ट नहीं करता जिनकी पहले ही मौत हो चुकी है। ऐसे में संभावना है कि उन्होंने कुछ मौतों को अपने आंकड़ों में शामिल नहीं किया जो टेस्टिंग से पहले ही हो चुकी थीं।

ऐसी स्थिति में अगर मौतों की संख्या को दोगुना भी कर लिया जाए तो भी मृत्यु दर 1।2% ही रहती है जो कि अन्य देशों की तुलना में फिर भी कहीं कम है।

जर्मनियों की कुशलता ऐसी बात है जिसकी सराहना की जानी चाहिए!

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