देश / आसान शब्दों में समझें, क्या होती है GDP, कैसे दर्ज की जाती है गिरावट और बढ़ोतरी

NDTV : Sep 01, 2020, 04:30 PM
नई दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus pandemic) के प्रकोप और उसकी रोकथाम के लिये लगाए गए ‘लॉकडाउन' (Lockdown) से देश की पहले से नरम पड़ रही अर्थव्यवस्था पर और बुरा असर पड़ा है। सोमवार को जारी आधिकारिक आंकड़े के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2020-21 में अप्रैल-जून के दौरान अथर्व्यवस्था (Indian Economy) में 23.9 प्रतिशत की अब तक की सबसे बड़ी तिमाही गिरावट आयी है। इस दौरान कृषि को छोड़कर विनिर्माण, निर्माण और सेवा समेत सभी क्षेत्रों का प्रदर्शन खराब रहा है। दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में इससे पहले जनवरी-मार्च तिमाही में 3।1 प्रतिशत और पिछले साल अप्रैल-जून में 5।2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। तिमाही आंकड़े 1996 से जारी किये जा रहे हैं और उस समय से यह अबतक की सबसे बड़ी गिरावट है। इतना ही नहीं विश्लेषक जो अनुमान जता रहे थे, गिरावट उससे भी बड़ी है।

किसी भी मुल्क की माली हालत, यानी आर्थिक स्थिति का आकलन करने का सबसे अहम मानक है सकल घरेलू उत्पाद, यानी GDP या Gross Domestic Product। इसका अर्थ यह हुआ कि एक वित्तवर्ष के दौरान किसी मुल्क ने कितनी रकम का उत्पाद और सेवाएं तैयार कीं, यानी एक निश्चित वक्फे में देशभर में तैयार की गई सेवाओं और उत्पादों का बाज़ार मूल्य क्या रहा।

देश की उन्नति और बढ़ोतरी का परिचायक माने जाने वाले GDP का आकलन भारत में हर तीन महीने, यानी हर तिमाही में किया जाता है, यानी अप्रैल से मार्च तक चलने वाले किसी भी वित्तवर्ष के दौरान कुल चार तिमाहियों (अप्रैल-जून, जुलाई-सितंबर, अक्टूबर-दिसंबर, जनवरी-मार्च) में इसका आकलन किया जाता है। किसी भी अन्य देश की तरह हमारे देश में भी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में तीन हिस्से शामिल हैं - कृषि से होने वाला उत्पाद, उद्योग गजत द्वारा तैयार किया गया अंतिम उत्पाद तथा देश में सेवाक्षेत्र द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं का कुल मूल्य। इन तीन क्षेत्रों में पैदा हुए उत्पाद के बढ़ने या घटने के आधार पर देश की GDP बढ़ती या घटती है।

सो, जब भी GDP का आंकड़ा बढ़ता नज़र आता है, देश की तरक्की का सबूत बनता है, और जब यह आंकड़ा गिरावट दर्ज करता है, देश की तरक्की पर भी ब्रेक लग जाता है, यानी मुल्क की माली हालत गिरती नज़र आती है।

सकल घरेलू उत्पाद को प्रस्तुत करने के दो पैमाने होते हैं - स्थिर कीमतें, यानी Constant Prices और मौजूदा कीमतें या वर्तमान मूल्य, यानी Current Prices। स्थिर कीमतें का अर्थ यह हुआ कि किसी एक साल को आधार वर्ष, यानी Base Year मान लिया जाता है, और फिर हर वर्ष उत्पादन की कीमत में तुलनात्मक वृद्धि या कमी इसी वर्ष के आधार पर तय की जाती है, ताकि बदलाव को महंगाई के उतार-चढ़ाव से इतर मापा जा सके। मौजूदा कीमतों के आधार पर GDP तय किए जाते समय उसमें मौजूदा महेगाई दर, यानी मुद्रास्फीति की दर को भी आधार बनाया जाता है।

इसे आम बोलचाल की भाषा में समझने के लिए मान लीजिए कि 2010 को आधार वर्ष मान लेने के बाद 2011 में हमारे देश में 1000 रुपये मूल्य की 300 वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन हुआ, और हमारी कुल GDP तीन लाख रुपये रही। वहीं, चार साल बाद 2015 में कुल 200 वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन हुआ, लेकिन तब तक उनका मूल्य 1500 रुपये हो चुका था, तो सामान्य GDP तीन लाख रुपये की ही रही, लेकिन आधार वर्ष के हिसाब से देखे जाने पर इसकी कीमत 1000 रुपये के हिसाब से सिर्फ दो लाख रुपये रह गई, इसलिए GDP में गिरावट दर्ज की जाएगी।

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