Axiom-4 Mission / जानिए क्या है Axiom-4 मिशन का मकसद, कब तक अंतरिक्ष में रहेंगे शुभांशु

भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए उड़ान भरकर इतिहास रच दिया। फाल्कन-9 रॉकेट से लॉन्च हुए इस मिशन में भारत समेत चार देशों के एस्ट्रोनॉट शामिल हैं। शुभांशु 14 दिन तक स्पेस में माइक्रोग्रैविटी पर रिसर्च करेंगे, जिसमें ‘जल भालू’ भी शामिल है।

Axiom-4 Mission: भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ Axiom-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की ओर उड़ान भर कर इतिहास रच दिया है। स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट ने नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से बुधवार दोपहर 12:01 पर उड़ान भरी, जिसमें ड्रैगन कैप्सूल के जरिये चारों यात्री अंतरिक्ष की ओर रवाना हुए। 28 घंटे की यात्रा के बाद ये स्पेसक्राफ्ट गुरुवार शाम 4:30 बजे भारतीय समयानुसार ISS से जुड़ने वाला है।

चार देशों की सहभागिता, भारत की भागीदारी गर्व की बात

Axiom-4 मिशन, स्पेसएक्स और नासा की संयुक्त पहल है जिसमें चार देशों—भारत, अमेरिका, पोलैंड, और हंगरी—के अंतरिक्ष यात्री शामिल हैं। इस मिशन में 14 दिन तक अंतरिक्ष में रहकर ये एस्ट्रोनॉट्स वैज्ञानिक प्रयोगों और तकनीकी परीक्षणों में शामिल रहेंगे।

शुभांशु शुक्ला का मिशन क्यों है खास?

शुभांशु शुक्ला का यह मिशन कई मायनों में भारत के लिए विशेष है:

  • दशकों बाद किसी भारतीय नागरिक ने निजी स्पेस मिशन में अंतरिक्ष की ओर कदम रखा है।

  • शुभांशु माइक्रोग्रैविटी में जैविक, भौतिक और तकनीकी प्रयोग करेंगे।

  • यह मिशन भारत के महत्वाकांक्षी गगनयान कार्यक्रम (2027) के लिए अहम अनुभव प्रदान करेगा।

मिशन के वैज्ञानिक और व्यावसायिक उद्देश्य

  1. माइक्रोग्रैविटी में प्रयोग: अंतरिक्ष में शून्य गुरुत्वाकर्षण के प्रभावों का अध्ययन।

  2. नई तकनीकों का परीक्षण: भविष्य के स्पेस स्टेशन के निर्माण के लिए टेक्नोलॉजी टेस्टिंग।

  3. विविध देशों का सहयोग: वैश्विक अंतरिक्ष साझेदारी को प्रोत्साहन।

  4. जन-जागरूकता: आम लोगों में अंतरिक्ष विज्ञान को लेकर उत्सुकता और समझ बढ़ाना।

शुभांशु ने क्या लिया अपने साथ अंतरिक्ष में?

शुभांशु शुक्ला अपने साथ एक खास जीव ‘टार्डिग्रेड’ या ‘जल भालू’ भी ले गए हैं। ये सूक्ष्म जीव:

  • 8 पैर वाले होते हैं और माइक्रोस्कोप से ही देखे जा सकते हैं।

  • -272°C से लेकर 150°C तक की परिस्थितियों में भी जीवित रहते हैं।

  • अत्यधिक रेडिएशन, निर्वात और जलविहीनता से नहीं मरते।

  • सुपर हाइबरनेशन में ये 100 साल तक जीवित रह सकते हैं।

  • पहली बार 1773 में जर्मन वैज्ञानिक जोहान गोएज़ ने इनकी खोज की थी।

यात्रा की रूपरेखा

  1. लॉन्च साइट: नासा का केनेडी स्पेस सेंटर।

  2. रॉकेट: स्पेसएक्स का फाल्कन-9।

  3. स्पेसक्राफ्ट: ड्रैगन कैप्सूल।

  4. डॉकिंग: 28 से 29 घंटे में ISS से जुड़ाव।


Axiom-4 मिशन न केवल भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है, बल्कि यह भविष्य की अंतरिक्ष यात्राओं और वैश्विक सहयोग के एक नए युग की शुरुआत भी है। शुभांशु शुक्ला जैसे भारतीय वैज्ञानिकों की भागीदारी से यह स्पष्ट होता है कि भारत अब अंतरिक्ष विज्ञान के वैश्विक मंच पर तेजी से अपनी जगह बना रहा है।