स्टडी / ग्लोबल वार्मिंग से इंसान समेत कई जीवों के नर हो रहे नपुंसक, नस्ल खत्म होने का खतरा!

Zoom News : May 25, 2021, 03:57 PM
Delhi: भविष्य में पूरी दुनिया एक ऐसी समस्या से जूझेगी जो किसी भी महामारी से ज्यादा बड़ी होगी। धरती पर मौजूद सभी जीवों की अगली पीढ़ी के लिए खतरा है। आप सोचिए कि कुछ सालों बाद इंसानों और अन्य जानवरों के नर नपुंसक हो जाएं तो क्या होगा। एक नई स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ कि इसके लिए सबसे बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक तापमान है। इससे पहले पर्यावरण में शामिल अलग-अलग प्रकार के घातक रसायन भी जिम्मेदार हैं।

हमें पता है कि ज्यादा तापमान जब अत्यधिक की ओर बढ़ता है तो जानवरों की जान जाने लगती हैं। ये उसे बर्दाश्त नहीं कर पाते। नई रिसर्च में ये बात सामने आई है कि ज्यादा तापमान वाले पर्यावरण में नर जीव नपुंसक हो ही रहे हैं। इसके अलावा जिन जगहों पर तापमान को लेकर इतने बुरे हालात नहीं हैं, उन्हें भी नपुंसक होने का खतरा है। इसका मतलब ये है कि प्रजातियों का विभाजन प्रजनन के मामले में तापमान के चलते गड़बड़ हो जाए। शायद इंसान जलवायु परिवर्तन को कमतर आंक रहा है। यहीं पर गलती हो रही हैं इंसानों से।।।अगर इसे नहीं रोका गया तो ये किसी भी महामारी से ज्यादा भयानक स्थिति होगी। कुछ जीवों की प्रजातियां तो विलुप्त भी हो सकती हैं।  

वैज्ञानिकों को कुछ सालों से ये बात पता है कि तापमान बढ़ता है तो जानवरों की प्रजनन क्षमता बिगड़ती हैं। उदाहरण के लिए अगर 2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ता है तो कोरल्स में स्पर्म बंडल्स और अंडों के आकार में कमी आ जाती है। इसके अलावा बीटल्स और मधुमक्खियों की कुछ प्रजातियों में प्रजनन दर की कमी देखी गई है। जितना तेजी से तापमान बढ़ता है, उतनी ही तेजी से मधुमक्खियों जैसे कीट-पतंगों की प्रजनन क्षमता में कमी आती है।

ज्यादा तापमान का असर गाय, सूअर, मछली और पक्षियों की प्रजनन क्षमता पर भी असर डालता है। इसके भी उदाहरण वैज्ञानिकों के पास मौजूद हैं। हालांकि अभी तक वैज्ञानिक इस बात की जांच नहीं कर पाए हैं कि ज्यादा तापमान से जैव-विविधता पर किस स्तर का असर पड़ेगा। इसे लेकर कोई भविष्यवाणी फिलहाल नहीं की जा सकती। 

नेचर मैगजीन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक यूके, स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने मिलकर मक्खियों की 43 प्रजातियों का अध्ययन किया है। इसमें ये जांच की गई कि नर मक्खियों की प्रजनन क्षमता पर तापमान का क्या असर हो रहा है। क्योंकि मक्खियां वैश्विक स्तर पर पाई जाती हैं। इसलिए इनपर स्टडी करने से पूरी दुनिया में बढ़ते तापमान के असर को देखा जा सकता है। 

वैज्ञानिकों ने पाया कि मक्खियों की कई प्रजातियों के नर बढ़ते तापमान में सर्वाइव नहीं कर पाते। कई तो मारे जाते हैं। गर्मी से बचने के लिए ये मक्खियां चार घंटे तक उड़ान भरती रहती हैं, उसके बाद ये मारी जाती हैं। इसके अनुसार वैज्ञानिकों ने अंदाजा लगाया कि किस तापमान पर 80 फीसदी जीवों को नुकसान पहुंचता है। और वह तापमान कौन सा है जिसपर नर जीवों की प्रजनन क्षमता खत्म हो जाती है। चाहे वह इंसान हों या जानवर। 

वैज्ञानिकों ने देखा कि 43 प्रजातियों में से 11 प्रजातियों के नर मक्खियों में 80 फीसदी नपुंसकता आई। ये अत्यधिक तापमान से थोड़ा कम की स्थिति में होता है। लेकिन जैसे ही तापमान इससे ज्यादा होता है या फिर वह अत्यधिक की श्रेणी में आता है, तब नर मक्खियां मरने लगती हैं। अगर किसी तरह से मक्खियां बच भी जाती हैं तो सात दिन बाद 43 में 19 प्रजातियों की नर मक्खियां 44 फीसदी तक नपुंसक हो जाती हैं।  

वैज्ञानिकों ने इस डेटा को रियल डेटा के साथ मिक्स किया। उससे पूरी दुनिया में बढ़ने वाले तापमान और उसकी चपेट में आने वाली प्रजातियों के बारे में जानकारी जुटाई। इससे पता चला कि भविष्य में इंसान समेत कई ऐसे जीव होंगे जिनके नर ज्यादा तापमान की वजह से नपुंसक होते चले जाएंगे। इसके बाद का अत्यधिक तापमान छोटे जीवों को मारने लगेगा। अगर किसी जीव की प्रजनन क्षमता कम होती है तो उसकी पूरी प्रजाति पर इसका असर पड़ता है। 

वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में ऐसा माहौल बनाया जिसमें मक्खियों की प्रजाति नष्ट हो जाती है। यानी विलुप्त हो जाती है। लेकिन यहां पर एक चीज सामने ये आई कि मक्खियों की ये प्रजाति ज्यादा तापमान से नहीं खत्म हुई, बल्कि इसके नर नपुंसक हो चुके थे। वो अगली पीढ़ी को जन्म देने अक्षम थे इसलिए इनकी प्रजाति नष्ट हो गई। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि अगर ऐसे ही जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान में इजाफा और पर्यावरण में रसायन मिलता रहा तो इंसान समेत की जीवों की प्रजनन क्षमता खत्म हो जाएगी। कई जीवों की प्रजातियां भी खत्म हो जाएंगी।

कुछ जीवों ने अत्यधिक तापमान में अपनी प्रजनन क्षमता को नियंत्रित करने की कला सीख ली है। उदाहरण के तौर पर प्राइमेट्स यानी बंदरों की प्रजाति और इंसानों के वीर्यकोष (Testis) शरीर के बाहर होते हैं। ताकि स्पर्म को अधिक तापमान में सुरक्षित रखा जा सके। जैसे-जैसे धरती गर्म होती जा रही है, हो सकता है कि कुछ और जीव अपनी प्रजनन क्षमता को बचाने के लिए इसके साथ संतुलन बनाने में सफल हो जाएं। लेकिन इस प्रक्रिया की गति इतनी धीमी है कि इतने में पूरी प्रजाति खत्म हो सकती है।  

मक्खियों पर की गई स्टडी में पता चला कि अत्यधिक तापमान का प्रजनन पर असर अगली 25 पीढ़ियों तक रह सकता है। इतना ही नहीं अगर हर साल कोई प्रजाति हीटवेव से जूझती है तब भी उसकी प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है। हालांकि इसके अलावा पर्यावरण में रसायन, पोषक तत्वों का कम मिलना और जलवायु में बढ़ती एसिडिटी भी फर्टिलिटी पर नुकसान पहुंचाती हैं।  

बीटल्स पर की गई एक अलग स्टडी में ये बात सामने आई है कि अगर हर साल कोई प्रजाति हीटवेव को जूझता है तो उसके नर भी नपुंसक हो सकते हैं। इंसानों और अन्य स्तनधारी जीवों के लिए अधिक बड़े स्तर पर अध्ययन करने की जरूरत है। ताकि इस बात को और पुख्ता किया जा सके कि ऐसा हो रहा है। हालांकि कुछ महीनों पहले एक स्टडी में ये बात सामने आई थी कि प्रदूषण की वजह से पुरुषों के लिंग का आकार और प्रजनन क्षमता कम हो रही हैं।


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