Rajasthan / मिर्धा परिवार और रिश्तेदार ज्वाइन कर रहे है ED के डर से बीजेपी

Zoom News : Mar 10, 2024, 09:04 AM
Rajasthan: पूर्व कैबिनेट मंत्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीया के बाद राजस्थान कांग्रेस के 5 से ज्यादा दिग्गज नेता बीजेपी का दामन थामने जा रहे हैं। इस लिस्ट में पूर्व कृषि मंत्री लालचंद कटारिया, पूर्व गृह राज्य मंत्री राजेंद्र यादव, पूर्व विधायक रिछपाल मिर्धा, पूर्व विधायक विजयपाल मिर्धा, खिलाड़ी लाल बैरवा, आलोक बेनीवाल व कांग्रेस नेता रामपाल शर्मा के नाम शामिल हैं। आखिर क्यों कांग्रेस के ये नेता BJP जॉइन कर रहे हैं? BJP में इन नेताओं के लिए कोई बड़ा सियासी अवसर है या ईडी-सीबीआई का डर? पार्टी में विरोध के बावजूद BJP इन नेताओं को क्यों अपने पाले में करना चाहती है? 

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खास माने जाने वाले और उनकी सरकार में कृषि मंत्री रहे लालचंद कटारिया काफी लंबे टाइम से कांग्रेस में एक्टिव नहीं दिख रहे थे। झोटवाड़ा क्षेत्र होने के बावजूद उन्होंने विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़ा था और चुनाव प्रचार से भी गायब रहे थे। तर्क दिया कि फिलहाल सियासत नहीं अध्यात्म की तरफ ध्यान दे रहे हैं।

इस बीच उनकी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से मुलाकात हुई। फोटो बाहर आए तो इनके कई सियासी मायने निकाले जाने लगे। काफी हद तक ये साफ हुआ था कि अध्यात्म की ओर ध्यान के बहाने नयी सियासी खिचड़ी पक रही है। इस बीच विधानसभा चुनाव आते-आते कटारिया का संघनिष्ठ लोगों से जुड़ाव भी बढ़ गया था।

हालांकि, खुद के BJP में जाने की अटकलों पर उन्होंने आज तक न तो कोई विराम लगाया और न ही खुलकर कुछ कहा। अब बीजेपी से जुड़े सूत्रों की मानें तो कटारिया रविवार सुबह BJP जॉइन कर रहे हैं।

सियासत के मौसम विज्ञानी माने जाते हैं कटारिया

लालचंद कटारिया को जयपुर की राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता है। यही कारण है कि यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रहे लालचंद कटारिया ने इसके बाद न तो साल 2013 का विधानसभा चुनाव लड़ा और न ही मोदी की प्रचंड लहर में अगले साल 2014 व 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा।

इस बीच झोटवाड़ा सीट से साल 2013 में उनकी फैमिली से रेखा कटारिया ने विधानसभा चुनाव लड़ा, वहीं जयपुर लोकसभा सीट से 2014 में सीपी जोशी और साल 2019 में कृष्णा पुनिया ने चुनाव लड़ा। ये तीनों ही चुनाव हार गए।

साल 2018 में विधानसभा चुनावों में वापस एंट्री कर कटारिया ने झोटवाड़ा सीट से चुनाव लड़ा और जीतकर कैबिनेट मंत्री बन गए। वहीं, इसके बाद 2023 में फिर से उन्होंने इलेक्शन नहीं लड़ा।

बीजेपी में एंट्री क्यों?

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में कटारिया ने कभी टिकट मांगा और आलाकमान ने कभी मना किया हो। सूत्रों की मानें तो उनका बीजेपी में जाने के पीछे सियासी फायदे कम राजनीतिक मजबूरी ज्यादा दिख रही है। इसका कनेक्शन मारवाड़ के बड़े सियासी खानदान मिर्धा परिवार से है। डेगाना के पूर्व विधायक विजयपाल मिर्धा लालचंद कटारिया के दामाद हैं।

तकरीबन डेढ़ साल से ज्यादा समय से विजयपाल मिर्धा का ड्राइवर लापता है। पूर्व मंत्री और मौजूदा डेगाना विधायक अजयसिंह किलक इस मामले को लेकर लंबे समय से मिर्धा परिवार पर हमलावर हैं।

पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र यादव की भी गिनती अशोक गहलोत के खासमखास नेताओं में होती आई है। यही कारण है कि उन्हें गृह जैसा प्रमुख मंत्रालय भी दिया गया था।

करीब 5 महीने पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीमों ने बहरोड़-कोटपूतली में राजेंद्र यादव के ठिकानों पर रेड की थी। मिड-डे मील सप्लाई गड़बड़ी से जुड़े मामले में हुई रेड में न सिर्फ यादव बल्कि उनके दोनों बेटों पर भी ईडी का शिकंजा कसना शुरू हो गया था।

इस बीच राजस्थान में सत्ता परिवर्तन हो गया और BJP की सरकार बन गई। कोटपूतली से लगातार दो चुनाव जीतने वाले राजेंद्र यादव भी हार गए। इसके बाद से सियासी गलियारों में ये चर्चा होनी शुरू हो गई थी कि बदलती परिस्थितियों में ईडी के भंवर में फंसे यादव भी कांग्रेस छोड़ सकते हैं। अब यादव को लेकर भी सूत्रों ने ये कन्फर्म कर दिया है कि वो रविवार सुबह बीजेपी जॉइन करने वाले हैं।

मारवाड़ के बड़े किसान नेताओं में शुमार रिछपाल सिंह मिर्धा को लेकर पिछले एक साल से चर्चा थी कि वो कभी भी BJP जॉइन कर सकते हैं। विधानसभा चुनाव से ऐन पहले उनकी भतीजी ज्योति मिर्धा ने भी BJP जॉइन कर ली थी। तब भी यह चर्चा आम थी कि ज्योति मिर्धा उन्हें बीजेपी के पाले में ले जा सकती हैं।

कांग्रेस को भी एक बड़ा वोट बैंक छिटकने का डर था। इसलिए पार्टी ने रिछपाल मिर्धा को तीन तोहफे देकर साध लिया। उन्हें वीर तेजा बोर्ड का पहला चेयरमैन बना दिया। बेटे विजयपाल मिर्धा को दूसरी बार डेगाना से, वहीं भतीजे तेजपाल मिर्धा को खींवसर विधानसभा से टिकट दे दिया।

हालांकि, ये दांव मिर्धा के लिए सियासी फायदे वाला साबित नहीं हुआ। न सिर्फ बेटे विजयपाल और भतीजे तेजपाल को विधानसभा चुनाव में हार नसीब हुई बल्कि BJP टिकट पर चुनाव लड़ने वाली भतीजी ज्योति को भी हार झेलनी पड़ी।

बीजेपी में एंट्री क्यों?

रिछपाल मिर्धा को कांग्रेस में खुद का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था। हाल ही में उन्होंने कहा था कि मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी का कोई मुकाबला ही नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि राम मंदिर निर्माण के बाद बदले हालातों में कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में कोई स्कोप नहीं बचा है। वहीं कांग्रेस तो अब चापलूसों की पार्टी है।

मारवाड़ में कांग्रेस के बड़े लीडर्स में शुमार रिछपाल मिर्धा पूर्व केंद्रीय मंत्री नाथूराम मिर्धा के भतीजे हैं। परिवार को कानूनी पचड़ों से बचाने के लिए वो पहले भी एक बार BJP जॉइन कर चुके हैं।

रिछपाल मिर्धा ने कन्फर्म कर दिया है कि वो और उनके बेटे विजयपाल मिर्धा रविवार सुबह बीजेपी जॉइन कर रहे हैं।

इन दो मामलों की भी चर्चा!

तकरीबन डेढ़ साल से ज्यादा समय से रिछपाल मिर्धा के बेटे विजयपाल मिर्धा का ड्राइवर ताराचंद सेन लापता है। पूर्व मंत्री और मौजूदा डेगाना विधायक अजयसिंह किलक इस मामले को लेकर लंबे समय से मिर्धा परिवार पर हमलावर हैं।

रिछपाल मिर्धा की बेटी तारा मिर्धा के पति रविंद्र भाकर रेलवे में इंडियन रेलवे स्टोर्स सर्विस (IRSS) ऑफिसर हैं, जो फिलहाल सीबीआई के रडार पर हैं। करप्शन के आरोपों के बाद जनवरी 2023 में उन्होंने राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (NFDC) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। सीबीआई जांच शुरू होने के बाद दिसंबर 2023 में उनका मूल विभाग रेलवे में ट्रांसफर कर दिया गया था।

करौली-धौलपुर लोकसभा सीट से पूर्व सांसद रहे खिलाड़ी लाल बैरवा बसेड़ी से विधायक रहने के साथ-साथ अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं। वो खुद को सचिन पायलट गुट का बताते हैं।

विधानसभा चुनाव में उनका टिकट काट दिया गया था, जिसके पीछे बैरवा ने अशोक गहलोत को जिम्मेदार बताते हुए कहा था कि 25 सितंबर को विधायकों के सामूहिक इस्तीफे के दौरान उन्होंने अशोक गहलोत के समर्थन में इस्तीफा नहीं दिया था, इसी के चलते उनका टिकट काटा गया। इसके बाद अब बैरवा ने हाल में हुए विधानसभा चुनाव निर्दलीय लड़ा था और उन्हें महज 1366 वोट मिल पाए थे।

बीजेपी में एंट्री क्यों?

बैरवा के कांग्रेस के खिलाफ इन बयानों और तेवरों के बाद ये साफ था कि वो कांग्रेस छोड़ने का मन बना चुके हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी में भी उन्हें कोई खास तवज्जो नहीं दी जा रही थी। अब सियासी सूत्रों से पक्की खबर है कि बैरवा भी रविवार सुबह बीजपी ज्वॉइन करने वाले हैं।

साल 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट कटने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़ कर जीतने वाले आलोक बेनीवाल कांग्रेस की बड़ी नेता पूर्व डिप्टी सीएम और तीन-तीन राज्यों में गवर्नर रही कमला बेनीवाल के बेटे हैं। साल 2018 के बाद इस बार साल 2023 में हुए विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया और अपने हारे हुए पूर्व प्रत्याशी मनीष यादव को ही टिकट दिया था। जिन्होंने इस बार शानदार जीत भी हासिल कर ली। सियासी जानकारों ने इस हार की वजह बीजेपी प्रत्याशी उपेन यादव का कमजोर होना माना था।

बीजेपी में एंट्री क्यों?

राव राजेंद्र सिंह के बाद से ही बीजेपी के पास इस इलाके में कोई कद्दावर नेता नहीं है। ऐसे में आलोक बेनीवाल और बीजेपी दोनों को ही अब एक-दूसरे में सहारा नजर आ रहा था।

बेनीवाल को भविष्य में भी शाहपुरा से टिकट मिलने की उम्मीद नजर नहीं आ रही है, ऐसे में बीजेपी को न सिर्फ इस सीट पर मजबूत केंडिडेट की तलाश है बल्कि जाट वोटर्स में भी बड़ा सन्देश देना है।

इसी के चलते सियासी जानकार कयास लगा रहे थे कि बेनीवाल कभी भी बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। अब सोर्सेज से मिली जानकारी अनुसार रविवार सुबह बीजेपी की कांग्रेस नेताओं की मेगा जॉइनिंग में उनका नाम भी शामिल है।

राजस्थान क्रिकेट संघ में कोषाध्यक्ष व भीलवाड़ा कांग्रेस कमेटी में पूर्व जिलाध्यक्ष रामपाल शर्मा साल 2019 में कांग्रेस के टिकट पर भीलवाड़ा लोकसभा सीट से प्रत्याशी थे, हालांकि तब वो चुनाव हार गए थे। इससे पहले साल 2013 के विधानसभा चुनावों में रामपाल शर्मा को कांग्रेस ने मांडल विधानसभा सीट से टिकट दिया था लेकिन तब भी उन्हें जीत नसीब नहीं हो पाई थी।

बीजेपी में एंट्री क्यों?

रामपाल शर्मा का पूर्व मंत्री लालचंद कटारिया के साथ पुरानी दोस्ती है। बातचीत में भी उन्होंने यही कारण बताया कि राजस्थान के विकास के लिए लालचंद कटारिया बीजेपी जॉइन कर रहे हैं और मैं भी भीलवाड़ा के विकास के लिए बीजेपी जॉइन कर रहा हूं। राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटों पर आने वाले दिनों में हमारे एक-दो बड़े नेता बीजेपी ज्वॉइन करेंगे।

400 पार सीटों का दावा करने वाली BJP क्यों कांग्रेस नेताओं को अपने पाले में करना चाहती है?

राजस्थान में BJP भले ही सत्ता में है, लेकिन इस लोकसभा चुनाव के लिहाज से केंद्रीय नेतृत्व को कई सीटें कमजोर नजर आ रही हैं।

आदिवासी बाहुल्य डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ में भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) के उभार ने बीजेपी को विधानसभा चुनाव में खासा नुकसान पहुंचाया था। बीजेपी को बांसवाड़ा, डूंगरपुर की 9 में से केवल 2 सीटें हासिल हुई थी। बांसवाड़ा की पांच में 4 सीटें कांग्रेस ने जीती, जबकि डूंगरपुर में एक सीट बीजेपी और एक कांग्रेस के पास है।

आदिवासी इलाके में बीजेपी को मजबूत नेता की तलाश थी। ऐसे में BJP ने महेंद्रजीत सिंह मालवीया को पार्टी में शामिल किया और अब लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी भी बना दिया है।

लालचंद कटारिया और रिछपाल मिर्धा प्रदेश के बड़े जाट लीडर्स माने जाते हैं। नागौर, जयपुर सहित शेखावाटी के जाट वोटर्स में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए बीजेपी कई और जाट नेताओं को भी अपने पाले करने में जुटी है। वहीं राजेंद्र यादव को साधकर BJP यादव वोटर्स पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।

BJP की लोकल लीडरशिप कर रही विरोध

कांग्रेस के इन सभी बड़े लीडर्स की BJP में जॉइनिंग का BJP की लोकल लीडरशिप विरोध कर रही है। इसी कारण से इन लीडर्स की जॉइनिंग में देरी हो रही है।

नागौर में मिर्धा और किलक परिवार की अदावत किसी से छिपी हुई नहीं है। पूर्व मंत्री अजय सिंह किलक लगातार उनका BJP में आने को लेकर विरोध कर रहे हैं। लालचंद कटारिया, आलोक बेनीवाल, खिलाड़ीलाल बैरवा और राजेंद्र यादव की जॉइनिंग को लेकर भी यही स्थिति है।

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