Navratri 2025 / नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की इस विधि से करें पूजा, यहां पढ़ें कथा, आरती और मंत्र

माता कालरात्रि नवरात्रि की सातवीं शक्ति हैं। उनकी पूजा से भय, रोग और नकारात्मकता दूर होती है। शारदीय नवरात्रि में 29 सितंबर को उनकी पूजा होगी। विधिपूर्वक स्नान-ध्यान, मंत्रजाप और गुड़-चने का भोग अर्पण कर भक्त आशीर्वाद पाते हैं। पौराणिक कथा में उन्होंने रक्तबीज का संहार किया।

माता कालरात्रि, माता दुर्गा की सातवीं शक्ति, भक्तों के लिए सिद्धियों का वरदान देने वाली और नकारात्मकता को दूर करने वाली देवी हैं। इनकी पूजा से भय, रोग और सभी प्रकार की बाधाएं समाप्त होती हैं। शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन, यानी 29 सितंबर को, माता कालरात्रि की पूजा विशेष रूप से की जाएगी। आइए, जानते हैं माता कालरात्रि की पूजा विधि, मंत्र, कथा और भोग के बारे में।

माता कालरात्रि की पूजा विधि

नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा निम्नलिखित विधि से करें:

  1. प्रभात स्नान: सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

  2. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल पर माता कालरात्रि की प्रतिमा या तस्वीर को गंगाजल से स्नान करवाएं।

  3. पूजा सामग्री अर्पण: माता को कुमकुम, रोली, अक्षत अर्पित करें। धूप और दीप प्रज्वलित करें।

  4. मंत्र और पाठ: पूजा के दौरान माता के मंत्रों, दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती और कथा का पाठ करें।

  5. भोग: पूजा के अंत में माता को गुड़, गुड़ से बने पदार्थ या चने का भोग लगाएं।

नवरात्रि के सातवें दिन की कथा

माता कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा जाता है, क्योंकि ये अपने भक्तों के जीवन में शुभता और समृद्धि लाती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, माता ने शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज जैसे राक्षसों का संहार कर देवताओं और मनुष्यों की रक्षा की थी।

कथा के अनुसार, एक समय शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज के आतंक से तीनों लोक भयभीत थे। इन राक्षसों का भय चारों ओर फैल गया था। तब सभी देवता भगवान शिव के पास समाधान के लिए पहुंचे। भगवान शिव ने माता पार्वती से इन राक्षसों का अंत करने का आग्रह किया। माता ने दुर्गा का रूप धारण कर शुंभ-निशुंभ का वध किया।

लेकिन रक्तबीज का संहार एक चुनौती था, क्योंकि उसे वरदान था कि उसके रक्त की एक बूंद धरती पर गिरने से उसी जैसा एक और राक्षस जन्म लेगा। तब माता दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि का रूप धारण किया। माता कालरात्रि ने रक्तबीज के रक्त को धरती पर गिरने से पहले ही अपने मुंह में समाहित कर लिया और अंत में उसका संहार कर दिया। इस तरह माता ने तीनों लोकों को राक्षसों के भय से मुक्त किया।

माता कालरात्रि की आरती

कालरात्रि जय जय महाकाली
काल के मुंह से बचाने वाली
दुष्ट संहारिणी नाम तुम्हारा
महा चंडी तेरा अवतारा
पृथ्वी और आकाश पर सारा
महाकाली है तेरा पसारा
खंडा खप्पर रखने वाली
दुष्टों का लहू चखने वाली
कलकत्ता स्थान तुम्हारा
सब जगह देखूं तेरा नजारा
सभी देवता सब नर नारी
गावे स्तुति सभी तुम्हारी
रक्तदंता और अन्नपूर्णा
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना
ना कोई चिंता रहे ना बीमारी
ना कोई गम ना संकट भारी
उस पर कभी कष्ट ना आवे
महाकाली मां जिसे बचावे
तू भी 'भक्त' प्रेम से कह
कालरात्रि मां तेरी जय।

माता कालरात्रि के मंत्र

निम्नलिखित मंत्रों का जप माता कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए करें:

  1. मूल मंत्र: ॐ कालरात्र्यै नम:।

  2. बीज मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै।

  3. स्तुति मंत्र: या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

माता कालरात्रि का भोग

माता कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए गुड़ या गुड़ से बने पदार्थों का भोग लगाएं। इसके अतिरिक्त, चने और मालपुआ भी माता को अर्पित किए जा सकते हैं। इन भोगों को श्रद्धा और भक्ति के साथ अर्पित करने से माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

माता कालरात्रि की पूजा से भक्तों को न केवल सिद्धियां प्राप्त होती हैं, बल्कि उनके जीवन से भय, रोग और नकारात्मकता भी दूर होती है। इस नवरात्रि, माता कालरात्रि की कृपा प्राप्त करने के लिए श्रद्धापूर्वक उनकी पूजा करें और उनके मंत्रों का जप करें।