राजस्थान / अस्पतालों में दवाई नहीं , लोकल परचेज व सब्स्टीट्यूट से चला रहे काम

Zoom News : Apr 20, 2022, 11:52 AM
अस्पतालों में ओपीडी और आईपीडी की सभी दवाइयां निशुल्क भले ही कर दी गई हाे लेकिन किसी भी स्तर पर मरीजों को सभी दवाएं नहीं मिल पा रही हैं। हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 75 तरह की दवाइयां तो प्रदेश के विभिन्न ड्रग स्टोर्स में हैं ही नहीं। वहीं 180 तरह की वे दवाइयां हैं जो महज एक माह की बची हैं और अभी तक उनका रेट कांट्रेक्ट नहीं हुआ है। यानी कि यदि सरकार को जल्दी ही अस्पतालों में सभी प्रकार की दवाइयों की सप्लाई करनी है तो आरएमएससीएल (राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन लिमिटेड) को इन सभी दवाओं की खरीद प्रक्रिया जल्दी ही पूरी करनी होगी। देश के सबसे बड़े ओपीडी और आईपीडी वाले एसएमएस अस्पताल में पिछले सात दिन में मुख्यमंत्री और चिकित्सा मंत्री के लगातार विजिट, हेल्थ सेक्रेट्री के प्रदेश भर के सीएमएचओ, अस्पताल अधीक्षकों के साथ वीसी के बाद भी परेशानी दूर नहीं हो पा रही है। वजह यही कि अस्पतालों में दवाइयां पूरी नहीं हैं। भले ही सरकार ने मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध अस्पताल और जिला अस्पतालों में खुद के स्तर पर खरीद की अनुमति दे दी है लेकिन लंबे समय तक यह प्रक्रिया भी नहीं चल सकती। मामले में भास्कर ने जब दवाओं की लिस्ट खंगाली तो एंटीबायोटिक से लेकर पेनकिलर, कार्डियो, इमरजेंसी की दवाएं तक नहीं हैं।


छह महीने में भी टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं

किसी भी दवा की खरीद के लिए आरएमएससीएल की ओर से टेंडर कर रेट कांट्रेक्ट (दर संविदा) किया जाता है। नियम यह है कि टेंडर जारी किए जानेे की तारीख के 120 दिन के भीतर प्रक्रिया फाइनल की जानी चाहिए। लेकिन अधिकांश खरीद में तो आरएमएससीएल की ओर से छह महीने तक में भी यह प्रक्रिया पूरी नहीं की गई। नतीजतन जिन दवाओं के रेट कांट्रेक्ट होकर दवाई खरीद की जानी थी, वह रूक गई। करीब 100 से अधिक ऐसी दवाइयां हैं जो इस वजह से अटकी हुुई हैं।


 दवाओं की कमी हुई है लेकिन हम सब्स्टीट्यूट और लोकल परचेज कर रहे हैं ताकि किसी का इलाज प्रभावित नहीं हो। पूरा इलाज निशुल्क योजना के शुरू होने के बाद अस्पतालों में काफी अधिक लोग आने लगे हैं और इसका असर भी हो रहा है। -डॉ. विनय मल्होत्रा, अधीक्षक, एसएमएस अस्पताल


किस वेयर हाउस में कितनी दवाएं नहीं

सेंट्रल स्टोर की बात करें तो यहां ही 450 से अधिक तरह की दवाएं नहीं हैं। इसके अलावा अजमेर एमसीडीडब्ल्यू (मेडिकल कॉलेज ड्रग वेयर हाउस) में 392, बीकानेर में 220, जयपुर में 77, जोधपुर में 130, कोटा में 210, उदयपुर में 213 तरह की दवाएं नहीं हैं। जमेर डीडीडब्ल्यू (जिला वेयर हाउस) में 195, अलवर में 285, बाडमेर में 190, बांसवाड़ा में 186, बारां में 254, भरतपुर में 353, भीलवाड़ा में 209, बीकानेर में 357, बूंदी में 468, चित्तौढगढ़ में 230, चुरू में 106, दौसा में 293, धौलुपर में 303, डूंगरपुर में 381, श्रीगंगानगर में 303, हनुमानगढ़ में 326, जयपुर प्रथम में 247, जयपुर सैकेण्ड में 288, जैसलमेर में 113, जालोर में 245, झंुझुनू में 215, जोधपुर में 301, करौली में 175, कोटा में 249, नागौर में 217, पाली में 348, प्रतापगढ़ में 236, राजसमंद में 242, सवाईमाधाेपुर में 252, सीकर में 236, सिरोही में 255, टोंक 248, उदयपुर में 281 तरह की दवाएं नहीं हैं।


एंटीबायोटिक (10 से अधिक तरह के), पेरासिटामोल की भी कमी

डायक्लोफेनेक विद पेरासिटामोल (दर्द), एसिलोफिनिक एंड पेरासिटामोल (दर्द), सिट्राजिन व फेनिलएफिड्रिन (कोेल्ड एंड कफ), मेटफार्मिन (डायबिटीज), आईब्यूप्रोफेन (दर्द), सिफलेक्सिम (एंटीबायोटिक), एमोेक्सिसिलिन 500 एमजी (एंटीबायोटिक), लोसारटन 50 एमजी(ब्लड प्रेशर), सिफलॉक्सिन (एंटीबायोटिक), मेरोपेनम 1एमजी (लाइफ सेविंग एंंटीबायोटिक), मेट्रोनडिआजोल (फंगल इंफेक्शन को रोकने के लिए), सेफ्टोक्मिसिमिन इंजेक्शन (एंटीबायोेटिक), पेरासिटामोल इंजेक्शन (तेज दर्द में), हेपेरिन सोडियम (खून पतला करने के लिए काम आने वाली दवा), डायसिक्लोमाइन (पेट दर्द), मेटफार्मिन (डायबिटीज), ट्रेमाडोल (कैंसर पेशेेंट को दर्द के लिए), सिफलॉक्सिन सस्पेंशन (बच्चों को सीरप के रूप में दी जाने वाली एंटीबायोेटिक), एमिकासिन इंजेक्शन (लाइफ सेविंग एंटीबायोटिक), सिप्रोफालॉक्सिसिन वडेक्सामेथासोन (इयर ड्रॉप), एटिनोलाल (बीपी), केल्सिफेरोल ग्रेनुएल्स (विटामिन डी 3) जैसी दवाएं नहीं हैं।


लोकल परचेज व सब्स्टीट्यूट से चला रहे काम

सरकार की ओर से अस्पताल से ही दवाई देने दिए जाने की सख्ती के बाद अस्पताल प्रशासन खुद सकते में हैं कि आखिर किस तरह मरीजों को पूरी तरह दवाई उपलब्ध कराएं। ऐसे में अस्पताल मुख्य दवाइयों के सब्सटीटयूट से काम चला रहे हैं और कुछ जगह लोकल परचेज की जा रही है। लेकिन मुख्य बात यह है कि लोकल परचेज जहां 20 गुना तक महंगी पड़ती है है वहीं इस तरह से कब तक काम चलाते रहेंगे।


इसलिए RMSCL नहीं कर पा रहा खरीद

दवाइयों के रेट कांट्रेक्ट होने के लिए आरएमएससीएल में पिछले आठ महीने से फाइलें इधर से उधर घूम रही हैं लेकिन कहीं ना कहीं जाकर काम अटक जाता है। यदि समय पर रेट कांट्रेक्ट हों तो ड्रग स्टोर्स पर समय पर दवाएं पहुंच सकेंगी।


रेट ही एप्रुव नहीं हुई

आरएमएससीएल अधिकारी टेक्नीकल स्क्रूटनी कर फाइनेंशियल बिड खोल आरटीपीपी एक्ट के अनुसार रेट एप्रुव करते हैं। जिन दवाओं का रेट कांट्रेक्ट दो करोड़ से अधिक होता है, उसे एप्रुवल के लिए मेडिकल हेल्थ सेक्रेट्री के यहां भेजा जाता है। मामला यहीं अटका हुआ है। हो यह रहा है कि करीब 30-50 दवाओं की एप्रवुल यहां अटकी हुुई है और आरएमएससीएल को मिल नहीं पा रही है।

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