Arvind Kejriwal: दिल्ली में सत्ता गंवाने के बाद अब आम आदमी पार्टी (AAP) की पंजाब सरकार भी राजनीतिक घमासान के केंद्र में है। कांग्रेस में संभावित टूट की अटकलों के बीच, मुख्यमंत्री भगवंत मान, सरकार के मंत्री और विधायकों के साथ पार्टी आलाकमान ने दिल्ली में एक आपात बैठक की। इस बैठक में अरविंद केजरीवाल ने विधायकों से चर्चा की, लेकिन बातचीत का सार स्पष्ट नहीं हुआ। अचानक बुलाई गई इस बैठक ने राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है।
क्या है आम आदमी पार्टी की चिंता?
1. हाईकमान की साख बचाने की कवायद
दिल्ली में मिली हार के बाद AAP नेतृत्व कमजोर पड़ा है। पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया समेत कई वरिष्ठ नेता चुनाव हार गए, जिससे पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व संकट में दिख रहा है। इसी वजह से पंजाब के विधायकों को चंडीगढ़ में बुलाने के बजाय दिल्ली बुलाया गया, ताकि यह संदेश न जाए कि नेतृत्व कमजोर है।
2. एंटी इनकंबेंसी से निपटने की कोशिश
दिल्ली चुनाव में AAP की हार का एक प्रमुख कारण एंटी इनकंबेंसी रहा। पार्टी ने अपने कई विधायकों के टिकट काटे, लेकिन फिर भी सत्ता में वापसी नहीं कर सकी। अब पंजाब में भी कुछ विधायकों में नाराजगी देखी जा रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में AAP को सिर्फ तीन सीटें मिलीं, और हाल ही में हुए नगर निकाय चुनावों में भी प्रदर्शन औसत रहा।
3. कांग्रेस-बीजेपी गठबंधन का डर
दिल्ली में AAP को हराने में कांग्रेस की अहम भूमिका रही। कांग्रेस को जिन 19 सीटों पर वोट मिले, वहां आप बहुत कम अंतर से हारी। इससे बीजेपी को सीधा फायदा हुआ। अब पंजाब में AAP को डर है कि बीजेपी उसके वोट काट सकती है और कांग्रेस को फायदा मिल सकता है। पंजाब में कांग्रेस AAP की मुख्य विपक्षी पार्टी है, जबकि बीजेपी शहरी क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत कर रही है।
पंजाब AAP के लिए क्यों अहम है?
पंजाब पहला पूर्ण राज्य है, जहां AAP 2022 में सत्ता में आई। इस जीत से पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती मिली, राज्यसभा में उसकी सीटें बढ़ीं और उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला। लेकिन 2027 के विधानसभा चुनाव निकट हैं, और दिल्ली की तरह यहां भी पार्टी की स्थिति कमजोर हुई तो आगे की राह मुश्किल हो सकती है।AAP के लिए यह वक्त संकट प्रबंधन का है, क्योंकि पंजाब की सत्ता पार्टी के राष्ट्रीय विस्तार के लिए बेहद अहम है। अब देखना होगा कि AAP पंजाब में अपने जनाधार को कैसे बचा पाती है।