News18 : Aug 29, 2020, 09:28 AM
Delhi: भारत से मधुर संबंध रखने वाला नेपाल (India-Nepal relations) एकाएक उत्तराखंड के तीन इलाकों पर अपनी दावेदारी जताने लगा। नेपाल के इस बदले रवैये के पीछे चीन का दिमाग माना जा रहा है। अपने घरेलू मामलों में चीन की दखलंदाजी का विरोध न करने पर उसकी काफी किरकिरी भी हुई। अब इसी वजह से नेपाल अपने डिप्लोमेटिक कोड ऑफ कंडक्ट (diplomatic code of conduct in Nepal) को दुरुस्त करने जा रहा है। हो सकता है कि इसके बाद चीन वहां की राजनीति में अपने पैर अड़ाना कम कर दे। जानिए, क्या है ये बदलाव।
चीन जमा चुका है कब्जासबसे पहले तो ये देखना होगा कि नेपाल में चीन की पैठ कितनी ज्यादा है। भारत के वन बेल्ट- वन रोड प्रोजेक्ट से इनकार करने के बाद से चीन नेपाल से संबंध बढ़ा रहा है। उसकी योजना है कि नेपाल के जरिए वो व्यापार में सेंध लगा सके। यही वजह है कि नेपाल में चीन ने भारी रकम सड़क योजना पर लगाई हुई है। नेपाल और चीन के बीच रेलवे लिंक बनाने की भी बात चल रही है। यहां तक कि चीन नेपाल के पोखरा शहर में हवाई अड्डा बना रहा है।
ओली पर चीन से रिश्वत लेने का आरोपइसके अलावा ये भी अनुमान है कि खुद नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली को भी चीन से बड़ी रकम मिल रही है। ओली ने साल 2015-16 में अपने पहले कार्यकाल के दौरान कंबोडिया के टेलीकम्युनिकेशन सेक्टर में निवेश किया। इस डील के लिए तब नेपाल में चीनी राजूदत वी चुन्टई ने उनकी मदद की। तब ओली लगभग 8 महीने ही कुर्सी पर रहे थे, जिस दौरान ये सब हुआ। दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही ओली पर चीन के साथ मिलकर करप्शन में लिप्त रहने का आरोप लगा।
चीन से मिलीभगत में बड़े घपलेसाल 2018 में ओली ने चीन की एक कंपनी हुवई के साथ 'Digital Action Room' के लिए करार किया, जबकि इस कंपनी ने फायदेमंद बोली तक नहीं लगाई थी। आरोप है कि ओली को इससे काफी फायदा मिला। कुछ ही महीनों बाद मई 2019 में नेपाल टेलीकम्युनिकेशन कंपनी ने हांगकांग की एक चीनी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया। रेडियो एक्सेस नेटवर्क के लिए हुए करार में भी ओली का निजी लाभ बताया जाता रहा है। साल 2020 में ही एक चीनी कंपनी जेटीई के साथ कोर 4 जी नेटवर्क के लिए करार हुआ है। लगभग 1106 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट में भी ओली पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने घपला किया है
नेपाल के भीतर ही होने लगा विरोधइन सारी वजहों से नेपाल की सत्ताधारी पार्टी और खासतौर पर लीडर ओली ने अपने आंतरिक मामलों में चीन के दखल पर मुंह सिला रखा। ऐसे ही कई कारणों से बीते कुछ महीने में नेपाल की सरकार आंतरिक विरोध का सामना करने लगी। यहां तक कि आम नेपाली लोग भी पीएम ओली को चीन की काठमांडू में तैनात राजदूत के हाथों की कठपुतली होने तक का आरोप लगाने लगे।अब इसे ही देखते हुए सरकार ने विदेशी राजनयिकों के लिए नियमों में बदलाव करने का फैसला किया है। नेपाल के अखबार ‘काठमांडू पोस्ट’ के मुताबिक, विदेश मंत्रालय डिप्लोमैटिक कोड ऑफ कंडक्ट बदलाव करने जा रहा है। इससे आंतरिक मामलों में विदेशी राजदूत घुसपैठ नहीं कर सकेंगे।
क्या काम करते हैं राजदूतये दूसरे देश में अपने देश के प्रतिनिधि का काम करते हैं। इनके बयानों का काफी महत्व होता है। ये कई तरह के काम करते हैं, जैसे जिस देश में वे रह रहे हों, उनके साथ अपने देश के किसी नेता की मीटिंग करवाना। किसी संधि के दौरान भी ये लोग बड़ा रोल निभाते हैं। साथी ही ये उस देश में बसे अपने नागरिकों की भी मदद करते हैं। जैसे अमेरिका में बसे भारतीयों के लिए उस स्टेट की इंडियन एंबेसी जिम्मेदार होगी। वीजा जैसे मामलों में भी ये काफी मदद करते हैं। आसान शब्दों में समझा जाए तो ये दो देशों के बीच पुल की तरह काम करते हैं।प्रोटोकॉल होगा लागूबता दें कि हर देश में राजदूतों के पालन के लिए एक डिप्लोमेटिक प्रोटोकॉल होता है लेकिन नेपाल में अब तक कोई पक्का प्रोटोकॉल नहीं। बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक वैसे तो साल 2016 में ही डिप्लोमेटिक कोड ऑफ कंडक्ट तैयार हो चुका था लेकिन किसी कारण से वो अब तक लागू नहीं हुआ। इसके बाद भी कई बार विदेश मंत्रियों ने इसे लागू करने की कोशिश की लेकिन फेल हुए। अब चीन के दखल पर मचे बवाल और इंटरनेशनल मीडिया में सुर्खियों के कारण नेपाल इसे लागू करने की बात कर रहा है।
चीनी राजदूत यांकी के कारण गुस्साहाल में सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में तनाव होने पर यांकी राजनैतिक तौर पर काफी एक्टिव रहीं और नेताओं की सुलह कराने में लगी रहीं। ये किसी दूसरे देश के राजदूत के कामों की श्रेणी में नहीं आता है। कंडक्ट लागू होने पर यांकी या काठमांडू में कोई भी राजदूत सिर्फ नेपाल और उस पर्टिकुलर देश से जुड़े मुद्दे पर बात कर सकेगा।इसके अलावा अगर उस देश का नेता नेपाल के किसी नेता से मुलाकात करने चाहे तो राजदूत ही वो मीटिंग फिक्स करवाएगा। साथ ही एजेंडा पर ही बात हो सकेगी। माना जा रहा है कि अगर अगले कुछ हफ्तों में कोड ऑफ कंडक्ट का पालन पक्का हो जाए तो चीन की नेपाल में गतिविधियों पर कुछ हद तक विराम लग सकेगा।
चीन जमा चुका है कब्जासबसे पहले तो ये देखना होगा कि नेपाल में चीन की पैठ कितनी ज्यादा है। भारत के वन बेल्ट- वन रोड प्रोजेक्ट से इनकार करने के बाद से चीन नेपाल से संबंध बढ़ा रहा है। उसकी योजना है कि नेपाल के जरिए वो व्यापार में सेंध लगा सके। यही वजह है कि नेपाल में चीन ने भारी रकम सड़क योजना पर लगाई हुई है। नेपाल और चीन के बीच रेलवे लिंक बनाने की भी बात चल रही है। यहां तक कि चीन नेपाल के पोखरा शहर में हवाई अड्डा बना रहा है।
ओली पर चीन से रिश्वत लेने का आरोपइसके अलावा ये भी अनुमान है कि खुद नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली को भी चीन से बड़ी रकम मिल रही है। ओली ने साल 2015-16 में अपने पहले कार्यकाल के दौरान कंबोडिया के टेलीकम्युनिकेशन सेक्टर में निवेश किया। इस डील के लिए तब नेपाल में चीनी राजूदत वी चुन्टई ने उनकी मदद की। तब ओली लगभग 8 महीने ही कुर्सी पर रहे थे, जिस दौरान ये सब हुआ। दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही ओली पर चीन के साथ मिलकर करप्शन में लिप्त रहने का आरोप लगा।
चीन से मिलीभगत में बड़े घपलेसाल 2018 में ओली ने चीन की एक कंपनी हुवई के साथ 'Digital Action Room' के लिए करार किया, जबकि इस कंपनी ने फायदेमंद बोली तक नहीं लगाई थी। आरोप है कि ओली को इससे काफी फायदा मिला। कुछ ही महीनों बाद मई 2019 में नेपाल टेलीकम्युनिकेशन कंपनी ने हांगकांग की एक चीनी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया। रेडियो एक्सेस नेटवर्क के लिए हुए करार में भी ओली का निजी लाभ बताया जाता रहा है। साल 2020 में ही एक चीनी कंपनी जेटीई के साथ कोर 4 जी नेटवर्क के लिए करार हुआ है। लगभग 1106 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट में भी ओली पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने घपला किया है
नेपाल के भीतर ही होने लगा विरोधइन सारी वजहों से नेपाल की सत्ताधारी पार्टी और खासतौर पर लीडर ओली ने अपने आंतरिक मामलों में चीन के दखल पर मुंह सिला रखा। ऐसे ही कई कारणों से बीते कुछ महीने में नेपाल की सरकार आंतरिक विरोध का सामना करने लगी। यहां तक कि आम नेपाली लोग भी पीएम ओली को चीन की काठमांडू में तैनात राजदूत के हाथों की कठपुतली होने तक का आरोप लगाने लगे।अब इसे ही देखते हुए सरकार ने विदेशी राजनयिकों के लिए नियमों में बदलाव करने का फैसला किया है। नेपाल के अखबार ‘काठमांडू पोस्ट’ के मुताबिक, विदेश मंत्रालय डिप्लोमैटिक कोड ऑफ कंडक्ट बदलाव करने जा रहा है। इससे आंतरिक मामलों में विदेशी राजदूत घुसपैठ नहीं कर सकेंगे।
क्या काम करते हैं राजदूतये दूसरे देश में अपने देश के प्रतिनिधि का काम करते हैं। इनके बयानों का काफी महत्व होता है। ये कई तरह के काम करते हैं, जैसे जिस देश में वे रह रहे हों, उनके साथ अपने देश के किसी नेता की मीटिंग करवाना। किसी संधि के दौरान भी ये लोग बड़ा रोल निभाते हैं। साथी ही ये उस देश में बसे अपने नागरिकों की भी मदद करते हैं। जैसे अमेरिका में बसे भारतीयों के लिए उस स्टेट की इंडियन एंबेसी जिम्मेदार होगी। वीजा जैसे मामलों में भी ये काफी मदद करते हैं। आसान शब्दों में समझा जाए तो ये दो देशों के बीच पुल की तरह काम करते हैं।प्रोटोकॉल होगा लागूबता दें कि हर देश में राजदूतों के पालन के लिए एक डिप्लोमेटिक प्रोटोकॉल होता है लेकिन नेपाल में अब तक कोई पक्का प्रोटोकॉल नहीं। बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक वैसे तो साल 2016 में ही डिप्लोमेटिक कोड ऑफ कंडक्ट तैयार हो चुका था लेकिन किसी कारण से वो अब तक लागू नहीं हुआ। इसके बाद भी कई बार विदेश मंत्रियों ने इसे लागू करने की कोशिश की लेकिन फेल हुए। अब चीन के दखल पर मचे बवाल और इंटरनेशनल मीडिया में सुर्खियों के कारण नेपाल इसे लागू करने की बात कर रहा है।
अभी ये हाल हैइसके तहत सबसे पहले तो किसी भी देश का राजदूत बिना अपॉइटमेंट लिए किसी भी नेपाली नेता से मिल नहीं सकेगा। फिलहाल तक वहां चीन की राजदूत हाओ यांकी बिना वक्त लिए सीधे-सीधे PM तक से मिल सकती थीं। यहां तक कि वो सीधे घर चली जाया करती थीं। नेपाल के मामलों की आंतरिक मीटिंग में भी हाओ यांकी का रहना अजीब बात नहीं थी।Amid criticism for its failure to monitor the frequent meetings between the political leadership and foreign diplomats, the Ministry of Foreign Affairs is once again working to revise and reactivate its diplomatic code of conduct. https://t.co/wIMwhjUxeL — by @anilkathmandu
— The Kathmandu Post (@kathmandupost) August 27, 2020
चीनी राजदूत यांकी के कारण गुस्साहाल में सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में तनाव होने पर यांकी राजनैतिक तौर पर काफी एक्टिव रहीं और नेताओं की सुलह कराने में लगी रहीं। ये किसी दूसरे देश के राजदूत के कामों की श्रेणी में नहीं आता है। कंडक्ट लागू होने पर यांकी या काठमांडू में कोई भी राजदूत सिर्फ नेपाल और उस पर्टिकुलर देश से जुड़े मुद्दे पर बात कर सकेगा।इसके अलावा अगर उस देश का नेता नेपाल के किसी नेता से मुलाकात करने चाहे तो राजदूत ही वो मीटिंग फिक्स करवाएगा। साथ ही एजेंडा पर ही बात हो सकेगी। माना जा रहा है कि अगर अगले कुछ हफ्तों में कोड ऑफ कंडक्ट का पालन पक्का हो जाए तो चीन की नेपाल में गतिविधियों पर कुछ हद तक विराम लग सकेगा।