देश / पवार परिवार में सब कुछ ठीक क्यों नहीं है

AajTak : Aug 18, 2020, 09:14 AM
Delhi: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार ने पचास साल के लंबे कैरियर में 12 अगस्त को पहली बार अपने परिवार के किसी सदस्य को सार्वजनिक रूप से फटकार लगाई। दरअसल उनके भतीजे अजीत पवार के बेटे पार्थ ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है और इसी पर पत्रकारों के सवाल के जवाब में शरद पवार ने कहा, “ये मांग मानने लायक नहीं है, वह ‘अपरिपक्व’ है।” ये बात उन्होंने शिवसेना नेता संजय राउत से वाइ।बी। चव्हाण सेंटर में मुलाकात के बाद कही। इस केस को सीबीआई के हवाले करने के सवाल पर उन्होंने जवाब दिया, “मुंबई और महाराष्ट्र पुलिस पर मुझे पूरा भरोसा है। मैं इन्हें 50 साल से जानता हूं।” पार्थ के बारे में पूछे जाने पर वे अपना आपा खो बैठे।

अजीत पवार के बड़े बेटे और शरद पवार के पोते पार्थ तब से चर्चा में हैं जब जुलाई में उन्होंने राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख से सुशांत राजपूत की मौत की सीबीआइ जांच की मांग की थी। इस मांग ने कई लोगों को हैरत में डाल दिया था क्योंकि महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार में गृह विभाग एनसीपी के नियंत्रण में हैं जो कि लगातार कह रही है कि मुंबई पुलिस जांच में सक्षम है।

पार्टी को एक और झटका तब लगा जब पार्थ ने 10 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का स्वागत किया। पार्थ ने अपने बयान में कहा, “आखिरकार, भारत में आस्था और संस्कृति के प्रतीक राम अपने स्थान पर विराजेंगे। हालांकि इसकी लड़ाई लंबी और पीड़ादायक रही। ये एक ऐतिहासिक दिन रहा जब हमने हिंदू आस्थाओं की पुनर्स्थापना देखी।” मालूम हो कि शरद पवार राम मंदिर के धुर विरोधी रहे हैं और 1 अगस्त को उन्होंने पूछा था कि क्या राम मंदिर से कोविड-19 महामारी खत्म करने में मदद मिलेगी।

शरद पवार को पार्थ की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं कभी रास नहीं आईं, लेकिन अभी तक उन्होंने अपनी नाखुशी को सार्वजनिक रूप से जाहिर नहीं किया था। अजीत के जोर देने पर पार्थ को 2019 के लोकसभा चुनाव में मावल सीट से उतारा गया था जब सीनियर पवार ने वहां से चुनाव न लड़ने की घोषणा की थी। वे माधा से चुनाव लड़ने की तैयार कर रहे थे लेकिन फिर उन्होंने घोषणा की कि ये अच्छी बात नहीं है कि एक ही परिवार के तीन लोग चुनाव मैदान में उतर जाएं। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले पारिवारिक सीट बारामती से चुनाव लड़ीं और आसानी से जीत गईं। लेकिन पार्थ को भाजपा शिवसेना उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा और इसके पीछे अजीत पवार से सीनियर पवार के मतभेदों के अलावा उनकी खुद की गलतियां और जनता में उनकी छवि भी जिम्मेदार रही।

पवार का पार्थ को नापसंद करना कोई नया नहीं है। अजीत पवार से उनका भरोसा तब ही उठ चुका था जब उन्होंने नवंबर 2019 में सरकार बनाने के लिए भाजपा से हाथ मिला लिया था और वह सरकार महज 78 घंटे चली। महाराष्ट्र की कोई भी राजनीतिक गप्प बगैर अजीत पवार और सुप्रिया सुले के मतभेदों के जिक्र के बगैर पूरी नहीं होती। इसमें पवार का हाथ बेटी के सिर पर है जो कि अजीत के मुकाबले कम करिश्माई मानी जाती हैं।

पार्थ को राजनीति में स्थापित करने के लिए अजीत हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। 23 नवंबर 2019 को एनसीपी से ‘बगावत’और देवेंद्र फड़नवीस का डिप्टी बनने के बाद उन्होंने पार्थ को राज्यसभा के लिए नामांकित करने की मांग की थी। अगर सरकार चली होती तो अजीत की ये मांग पूरी भी हो गई होती। अजीत एनसीपी कोटे से पार्थ को विधानपरिषद सदस्य बनवाने में भी विफल रहे।

अजीत की बगावत भी बेकार चली गई जब सीनियर पवार ने बाजी पलट दी और अजीत समर्थक 12 विधायकों को वापस अपने खेमे में खींच लिया। इसके बाद से पवार, अजीत पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं। कागजों पर भले ही अजीत उप मुख्यमंत्री हैं लेकिन हर कोई जानता है कि असली ताकत तो शरद पवार के पास ही है।

हालांकि युवा पार्थ पर पवार की फटकार का असर नहीं पड़ा है। उनके समर्थकों ने उनके इंस्टाग्राम फैन क्लब एकाउंट पर 13 अगस्त को एक वीडियो पोस्ट किया है जिसमें उन्हें दादाजी से मुकाबला करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस वीडियो में पार्थ, पवार के साथ एक सार्वजनिक कार्यक्रम में हैं और पीछे एक मराठी गीत चल रहा है जिसका अर्थ है आगे बढ़ो, तुम्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं है (तू चल रे पुढे गड्या तुला भीती कुनाची)। पार्थ के मामा राणा जगजीत सिंह के पुत्र मल्हार पाटिल उन्हें “जन्मजात योद्धा” कहते हैं।

पवार के बयान के कुछ घंटों बाद अजीत और सुले की हड़बड़ी में पवार के घर पर बैठक हुई। समझा जाता है कि पवार ने अजीत को बेटे पर लगाम लगाने को कहा है। उन्होंने पूछा कि आखिर पार्थ हमेशा एनसीपी की लाइन से विपरीत रुख क्यों अपनाता है। 13 अगस्त को पार्थ की भी सीनियर पवार से मुलाकात हुई है जिसमें सुले भी मौजूद थीं। यह बैठक करीब दो घंटे चली।

एक दिलचस्प मोड़ आया जब पुणे के नजदीक कन्हेरी में पार्थ अपनी मां सुनेत्रा, चाचा श्रीनिवास और चाची शर्मिला के साथ एक पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल हुए। अजीत इसमें शामिल नहीं थे। इस कार्यक्रम से हैरानी इसलिए हुई क्योंकि अजीत के बड़े भाई श्रीनिवास परिवार के संकटमोचन माने जाते हैं। इसके बाद पार्थ के समर्थकों ने फिर एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें उन्हें ‘टाइगर’ बताया गया था। पवार के पार्थ के प्रति नाराजगी भरे रुख से एक कयास ये भी लगाया जा रहा है कि अजीत एक बार फिर बगावत का रास्ता चुन सकते हैं। लेकिन ये आसान नहीं होगा क्योंकि पवार उनकी गतिविधियों को लेकर पहले के मुकाबले इस बार ज्यादा सचेत हैं।

सुप्रिया के अलावा पवार को अपने एक और पोते रोहित से उम्मीदें हैं जो कि उनके भतीजे राजेंद्र पवार का बेटा है। रोहित कर्जत-जामखेड से एनसीपी के विधायक हैं और पवार की बात काटने वाला कोई बयान नहीं देते हैं। लेकिन एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने इंडिया टुडे डॉट कॉम को बताया कि रोहित भाजपा में जाना चाहते थे और 2019 का विधानसभा चुनाव पुणे के नजदीक की सीट हडपसर से लड़ना चाहते थे। लेकिन हैरतंगेज फैसले में भाजपा ने उन्हें शामिल करने का फैसला वापस ले लिया क्योंकि सीनियर पवार और भाजपा के बीच एक अलिखित समझौता ये है कि उनके परिवार के लोगों का दलबदल नहीं कराया जाएगा। इस वजह से रोहित एनसीपी के वफादार बने हुए हैं

राजनीतिक विश्लेशक मानते हैं कि रोहित निकट भविष्य में राजनीतिक उठापठक वाला कोई कदम नहीं उठाएंगे लेकिन पार्थ का कदम निश्चित तौर पर रूठे अजीत को उत्साहित करेगा।

फिलहाल एमवीए गठबंधन सरकार स्थिर दिखाई देती है क्योंकि इसके तीनों घटक- शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस एक-दूसरे को गच्चा देने के मूड में नहीं हैं। 105 विधायकों के साथ भाजपा सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है लेकिन इसे सरकार गिराने के लिए कम से कम 40 विधायकों की जरूरत है। यहां तक कि अगर ये 15 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन हासिल कर लेती है तो भी बाकी के 25 विधायकों का जुगाड़ करना बहुत मुश्किल है। सुनने में आ रहा है कि कांग्रेस और एनसीपी विधायकों का एक गुट फायदे का ऑफर मिलने पर बगावत करने की इच्छा रखता है। लेकिन इसी समय एनसीपी भी दावा कर रही है कि उसके सात विधायक जो पिछले साल भाजपा में चले गए थे, अब वापस पार्टी में आना चाहते हैं।

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