बड़ा प्लान / भूटान से सीमा विवाद छेड़कर चीन कर रहा है भारत को परेशान

News18 : Jul 07, 2020, 03:52 PM
नई दिल्ली। वैश्विक पर्यावरण संरक्षण परिषद (GEF) की बैठक में 2-3 जून को भूटान ने सक्तेंग वन्यजीव अभयारण्य परियोजना ( Sakteng Wildlife Sanctuary) के लिए चीन से फंडिंग मांगी गई, जिस पर उसने आपत्ति जताई। चीन की यह आपत्ति भूटान के लिए एक झटके के तौर पर थी, क्योंकि चीन को इस बात पर आपत्ति थी कि वह जिस क्षेत्र के लिए फंडिंग मांग रहा है वह विवादित क्षेत्र है। भूटान ने भारत, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और श्रीलंका जैसे सदस्य देशों वाले परिषद के अनुरोध पर दावे का खंडन किया। मीटिंग में भूटान की ओर से कहा गया- 'चीन द्वारा किए गए दावे को भूटान परिषद पूरी तरह से खारिज करता है। सक्तेंग वन्यजीव अभयारण्य भूटान का एक अभिन्न और संप्रभु क्षेत्र है और भूटान तथा चीन के बीच सीमा चर्चा के दौरान इसका कोई मतलब नहीं है।'

हालांकि चीन का यह दावा भारत के लिए समान रूप से खतरनाक होना चाहिए। ऐसा इसलिए कि भूटान के पूर्वी सीमा पर स्थित ट्रैशीगैंग जिले में 650 वर्ग किलोमीटर वन्यजीव अभयारण्य है, जिसे साल 2014 के नक्शे में चीन ने अपना दिखाया था। यह इलाका अरुणाचल प्रदेश से सटा हुआ है।

गौरतलब है कि 2014 के उसी नक्शे में जिसमें दक्षिण चीन सागर में भी चीन ने क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को दिखाया। उसमें सक्तेंग वन्यजीव अभयारण्य के भूटान में होने के नाते ट्रैशीगैंग का सीमांकन किया गया था। चीन और भूटान के बीच सीमा का पूर्वी क्षेत्र कभी विवादित नहीं रहा। विवाद पश्चिमी और मध्य क्षेत्र को लेकर है। दोनों देश साल 1984 से सीमा के मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं और चीन ने कभी अभयारण्य पर दावा नहीं किया। उन लोगों ने यह भी बताया कि ऐसा पहली बार नहीं है कि अभ्यारण के लिए फंडिंग मांगी गई। इससे पहले चीन ने इस पर कभी आपत्ति नहीं जताई थी। यहां तक कि जून 2020 तक चीन ने कोई आपत्ति नहीं जाहिर की।

चीन ने भूटान की परियोजना पर जाहिर की आपत्ति

GEF की बैठक में चीन ने परियोजना पर आपत्ति जताते हुए एक संशोधन का प्रस्ताव दिया। चीन की ओर से  कहा गया  'परियोजना ID 10561 में सक्तेंग वन्यजीव अभयारण्य  चीन-भूटान के विवादित क्षेत्रों में स्थित है जो चीन-भूटान सीमा वार्ता के एजेंडे पर है। चीन इसका विरोध करता है और इस परियोजना पर परिषद के फैसले में शामिल नहीं होगा।'

जून में ही चीन ने भारत में गलवान घाटी पर 'संप्रभुता' का दावा करना शुरू कर दिया था जिस पर उसने साल 1962 के बाद से कभी भी दावा नहीं किया था। चीन के दावों ने विदेश मंत्रालय को 17-18 जून की मध्य रात्रि को रात 12।45 बजे खंडन जारी करने के लिए मजबूर किया जिसमें प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने चीन के दावे को 'अतिशयोक्ति और अमान्य' बताते हुए खारिज कर दिया था।

इसके बाद भारत ने चीन के गलवान वैली के दावे पर तीन और खंडन जारी किए। 20 जून को MEA ने कहा 'गलवान वैली क्षेत्र के संबंध में स्थिति ऐतिहासिक रूप से स्पष्ट है। चीन की ओर से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के संबंध में किये जा रहे प्रयास अतिश्योक्तिपूर्ण और अमान्य हैं। ये दावे स्वीकार्य नहीं हैं। चीन अपनी ऐतिहासिक स्थिति पर नहीं है।'

WMCC की बैठक में भी भारत ने जाहिर की अपनी आपत्ति

24 जून को वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसलटेशन एंड कोआर्डिनेशन के तहत जॉइंट सेक्रेटरी लेवल की वर्चुअल मीटिंग में  भारत ने कहा था: “भारतीय पक्ष ने पूर्वी लद्दाख में हाल के घटनाक्रमों पर अपनी चिंताओं से अवगत कराया, जिसमें 15 जून को गलवान घाटी क्षेत्र में हिंसक झड़प भी शामिल थी, जिसके परिणामस्वरूप कई लोग हताहत हुए थे।  इस बात पर जोर दिया गया कि दोनों पक्षों को वास्तविक नियंत्रण रेखा का कड़ाई से सम्मान और पालन करना चाहिए।'

एक दिन बाद भारत ने कहा- 'भारतीय सैनिक भारत-चीन सीमा क्षेत्रों के सभी क्षेत्रों में  LAC  से पूरी तरह परिचित हैं और इसका पालन करते हैं। वे लंबे समय  से एलएसी के साथ-साथ गालवान घाटी में भी गश्त कर रहे हैं।' सभी बयानों का जोर इस बात पर था कि कि  गलवान घाटी न केवल भारत का है बल्कि चीन द्वारा उस पर संप्रभुता का नया दावा किया जाना ऐतिहासिक स्थिति से हटने जैसा है।

'चीन अपने क्षेत्रीय संप्रभुता की रक्षा के साथ-साथ शांति के लिए दृढ़'

हालांकि सीमा पर विशेष प्रतिनिधियों के बीच बयानों, फोन कॉल, 5 जुलाई को एनएसए अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई बातचीत के साथ ही एलएसी पर तीन जगहों पर डिसएंगेडमेंट के बाद भी चीन अभी भी गलवान घाटी पर  अपना दावा करते हुए दिख रहा है। एक बयान में चीन ने कहा- 'भारत-चीन सीमा के पश्चिमी क्षेत्र में गलवान घाटी में हाल ही में जो सही और गलत हुआ वह बहुत साफ दिख रहा है। चीन अपने क्षेत्रीय संप्रभुता की रक्षा के साथ-साथ शांति के लिए दृढ़ है।'

इसी तरह चीन ने भूटान में भी दावा बरकरार रखा हुआ है। एक राष्ट्रीय दैनिक में छपी खबर के जवाब में 1 जुलाई को चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा- 'पूर्वी, मध्य और पश्चिमी हिस्से  पर लंबे समय से विवाद चल रहे हैं और ये नए विवादित क्षेत्र नहीं हैं।'  चीन के बयान से ऐसा लग रहा है कि वह सत्केंग वन्यजीव अभयारण्य पर विवाद हमेशा मौजूद रहा है। यह दावा भूटान ने न केवल खारिज कर दिया, बल्कि इस पूरे मामले के बारे में जानने वालों ने कहा कि थिंपू (भूटान की राजधानी) ने दिल्ली में अपने दूतावास के माध्यम से भारत में चीनी दूतावास को अपने क्षेत्रीय दावे के बारे में जानकारी देते हुए आपत्ति पत्र भी जारी किया था।'

केंद्रीय तिब्बती प्रशासक लोबसांग सांगे के अध्यक्ष ने हाल ही में CNN-News18 से चीन की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं का खुलासा किया था। उन्होंने कहा कि वे 60 सालों से भारत को चीन की तिब्बत रणनीति के फाइव फिंगर्स के बारे में चेतावनी दे रहे हैं। संगे ने कहा, 'जब तिब्बत पर कब्जा किया गया था तब माओत्से तुंग और अन्य चीनी नेताओं ने कहा- 'तिब्बत वह हथेली है जिस पर हमें कब्जा करना चाहिए तब हम फाइव फिंगर्स पर आगे बढ़ेंगे। पहली उंगली लद्दाख  है। अन्य चार नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश हैं।' गलवान घाटी और भूटान में अरुणाचल की सीमा पर एक साथ दावा इस रणनीति के अनुकूल है और निश्चित रूप से नई दिल्ली को असहज करेगा।

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