राजस्थान / वैक्सीन नहीं ली तो बंद हो जाएगी पेंशन, आदिवासियों ने सरकार पर लगाया धमकाने का आरोप

एक तरफ राज्य वैक्सीन की किल्लत को लेकर केंद्र से सवाल कर रहे हैं। दूसरी तरफ शहर और गांवों के बीच वैक्सीन आवंटन की खाई और अधिक बढ़ी है। राजस्थान की ट्राइबल कम्युनिटी तो और अधिक उपेक्षा का शिकार हुई है। दक्षिणी राजस्थान में बड़ी संख्या में आदिवासी बसे हुए हैं यहां की अरावली पहाड़ियों की गोद में भील, मीना और गरासिया जैसी जनजातियों ने अपना ठिकाना बनाया हुआ है।

Vikrant Shekhawat : Jun 04, 2021, 07:36 AM
Delhi: एक तरफ राज्य वैक्सीन की किल्लत को लेकर केंद्र से सवाल कर रहे हैं। दूसरी तरफ शहर और गांवों के बीच वैक्सीन आवंटन की खाई और अधिक बढ़ी है। राजस्थान की ट्राइबल कम्युनिटी तो और अधिक उपेक्षा का शिकार हुई है। दक्षिणी राजस्थान में बड़ी संख्या में आदिवासी बसे हुए हैं यहां की अरावली पहाड़ियों की गोद में भील, मीना और गरासिया जैसी जनजातियों ने अपना ठिकाना बनाया हुआ है। कोरोना की पहली लहर से बचे रहे ये क्षेत्र कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आते जा रहे हैं। कोरोना ने इन इलाकों के अंदर के गांवों को भी अपनी जद में लेना शुरू कर दिया है।

अरावली पहाड़ी की गोद में बसे सिरोही जिले में आजतक की टीम पहुंची। ये जिला आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। आजतक की टीम सिरोही जिले के सिंघारजोड़ गांव में पहुंचे। इस गांव तक जाने के लिए सड़कें नहीं हैं। कुछ दिन पहले यहां वैक्सीनेशन के लिए स्वास्थ्यकर्मी पहुंचे थे। इसे लेकर गांव में एक अराजकता का माहौल बन गया। इस घटना को याद करते हुए बदाराम बताते हैं

''इधर आए थे टीका लगाने के लिए, उसके बाद और ज्यादा बीमार हो गया। डॉक्टर को बोला तो वो वापस नहीं आया। सात दिन बीमार पड़ा रहा, खाना नहीं खाया, दूसरी जगह जाकर इलाज करवाकर आना पड़ा।''

ट्राइबल कम्युनिटी वैक्सीनेशन ड्राइव को बड़े ही अलग-अलग ढंग से देख रही है। आदिवासी समुदाय देश की मुख्यधारा से बहुत पीछे छूट गया है, महामारी को लेकर यहां कई तरह की भ्रांतियां और डर हैं।

एक ग्रामीण ने बताया ''टीकाकरण हुआ था पर यहां पर कोई नहीं आता, कोई भी नहीं आता है। नर्स को बुलाया, कोई आया नहीं, इधर उधर जाना पड़ा इलाज करने के लिए।''

भीमाराम बताते हैं ''एक बार 20 जनों ने वैक्सीन लगवाया था और दो-तीन दिन बीमार हो गए। फिर उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई थी। सरकारी कर्मचारियों को देखने के लिए बुलाया, बुलाने के बाद भी कोई नहीं आया।''

अस्सी साल के भेराराम ने आजतक को बताया ''उन्होंने मुझसे कहा था अगर वैक्सीन नहीं लगवाई तो खाने के लिए अनाज नहीं मिलेगा। कोई पेंशन नहीं मिलेगी। दुकानों से कुछ नहीं मिलेगा। इसलिए वैक्सीन लगवा लो। इसके बाद क्या हुआ? मैं बीमार पड़ गया, ग्लूकोस की बोतल चढ़वानी पड़ी।''

प्रभुराम के एक सोशल एक्टिविस्ट ने जनजातियों में फैली अफवाहों पर कहा ''जनजाति क्षेत्र में ऐसा कोई शिविर नहीं लगाया गया, प्रचार-प्रसार के माध्यम से थोड़ा जागरूक करना चाहिए, जनजाति क्षेत्र में ऐसा नहीं हो रहा है। उल्टा लोगों को डराया जा रहा है कि पेंशन बंद हो जाएगी, आपका राशन बंद हो जाएगा।''