कोरोना वायरस / भारतीय मूल की वैज्ञानिक का लॉकडाउन में कमाल, दो मील दूर से किया कठिन प्रयोग

News18 : May 26, 2020, 09:59 AM
नई दिल्ली: कोरोना वायरस (Corona virus) के चलते हुए लॉकडाउन (Lock down) से दुनिया में बहुत से लोगों को परेशानी हो रही है। लेकिन कुछ लोग इसे एक मौके की तरह भी भुनाने में लगे हुए हैं। ऐसा ही कुछ किया भारतीय मूल की ब्रिटिश वैज्ञानिक डॉ अमृता गाडगे ने।


क्या कमाल किया डॉ गाडगे ने

डॉ अमृता ससेक्स यूनिवर्सिटी में कार्यरत हैं। उन्होंने अपने लिविंग रूम से दो मील दूर अपने लैब में पदार्थ की पांचवी अवस्था बना डाली। वैज्ञानिक इसे एक बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं। इस तरह दूर से पहली बार पदार्थ की पांचवी अवस्था बनने की घटना हुई है।


क्या है यह पांचवी अवस्था

आमतौर पर पदार्थ की तीन अवस्था होती हैं, ठोस, तरल और गैसीय अवस्था, इसके अलावा चौथी अवस्था प्लाज्मा अवस्था होती है जिसके लिए बहुत अधिक तापमान की अवस्था होती है, लेकिन पांचवी अवस्था को बोस आइंस्टीन कंडेनसेट (BEC)  कहा जाता है।

क्या है BCE

इस अवस्था में पदार्थ बहुत ही ठंडी स्थिति में पहुंच पाता है जब अणु एक दूसरे से मिल जाते हैं और एक समान चीज की तरह कार्य करने लगते हैं। इस स्थिति में हजारों रूबीडियम अणु जो गैसे अवस्था से बहुत ही ज्यादा ठंडे (Absolute Zero) किए जाते हैं जिससे अणु हिलना तक बंद हो जाते हैं लेकिन उससे (परमशून्य तापमान) ठीक पहले अणु एक क्वांटम वस्तु की तरह बर्ताव करने लगते हैं।


क्या था वह प्रयोग

यूनिवर्सिटी का क्वांटम सिस्टम्स एंड डीविसेस रिजर्च ग्रुप BEC को एक मैग्नेटिक सेंसर की तरह उपयोग कर अपने प्रयोग करता है। प्रोफेसर क्रूगर ने बताया कि लैब में उनके शोधकर्ता बहुत ही कम तापमान पर बार बार लेसर और रेडियो तंरगों का उपयोग रूबीडियम गैस बनाने के लिए करते हैं।  इसके लिए बहुत ही नियंत्रित वातावरण में माइक्रोचिप में लेसर प्रकाश, मैग्नेट, करेंट, पर सटीक कम्प्यूटर नियंत्रण की जरूरत होती है।


तो कैसे हो सका यह प्रयोग

डॉ अमृता ने अपने लिविंग रूम से दो मील दूर से अपने कम्प्यूटर का रिमोट कंट्रोल की तरह उपयोग गिया और उससे लेसर और रेडियो तरंगों से यह अवस्था बना ली। लॉकडाउन से पहले ही उनकी टीम ने एक 2D मैग्नेटिक ऑपटिक ट्रैप बना लिया था। इससे लेसर और मैग्नेट की मदद पर अणु को पकड़ा जाता है। उन्होंने अपने घर के कम्प्यूटर से अपनी लैब के कंप्‍यूटरों में जाकर जटिल गणनाएं की।


काफी समय लगता अगर लैब में ही होता यह प्रयोग

डॉ अमृता ने बताया कि अगर वे लैब में ही जाकर यह प्रयोग करतीं तो यह काफी समय लेता, लेकिन उन्होंने इस प्रयोग को दूर से करने की कोशिश की और उसमें वे सफल हुईं। शोधकर्ताओं को लगता है कि इस सफल प्रयोग से दूसरे शोधकर्ताओं को अपने प्रयोग दूर से ही करने में मदद मिलेगी। अब वे उन वातारणों में भी यह प्रयोग कर सकेंगे जहां पहुंचना नामुमकिन होता है।


दुर्गम स्थानों पर ही दूर से किए जा सकते हैं ऐसे प्रयोग

यूनिवर्सिटी के प्रोफेस पीटर क्रूगर ने कहा कि वे इस प्रयोग की सफलता से बहुत उत्साहित हैं। इससे उनकी लैब की क्षमताएं बढ़ी हैं इस प्रयोग से अब क्वांटम तकनीक के क्षेत्र उन जगहों और वातावरणों में भी प्रयोग किए जा सकेंगे जो बहुत ही विपरीत हालातों में होते हैं जैसे, जमीन के नीचे, अंतरिक्ष गहरे समुद्र, बहुत ही खराब मौसम वाले इलाके आदि।

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