बालिका दिवस / राष्ट्रीय बालिका दिवस 2020: देश में कब सुरक्षित होंगी बालिकाएं?

AMAR UJALA : Jan 24, 2020, 10:57 AM
National Girl Child Day 2020 | राष्ट्रीय बालिका दिवस से पहले खेल के मैदान से आई एक अच्छी खबर ने सबका दिल खुश कर दिया है। आस्ट्रिया के इन्सब्रूक में चल रहे मीटन कप इंटरनेशनल निशानेबाजी चैंपियनशिप में भारत की निशानेबाज अपूर्वी चंदेला ने स्वर्ण पदक पर निशाना साध कर दुनिया मेे देश का मान बढ़ाया है। वहीं, दूसरी तरफ सात वर्ष पूर्व दरिंदगी की शिकार हुई निर्भया की आत्मा आज भी न्याय के लिये तड़प रही है। उसके गुनाहगारों को अभी तक फांसी पर नहीं लटकाया जा सका है।

निर्भया के गुनहगारों को सजा दिलवाने के लिये उनके परिजन न्यायालयों के चक्कर काट रहे हैं। उपर से कुछ तथाकथित मानवतावादी लोग तो निर्भया के परिजनो से गुनहगारों को माफ करने तक की बात करने लगे हैं। भारत में बालिकाएं आज हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के बावजूद भी वो कुरीतियों की शिकार हैं। ये कुरीतियां उसके आगे बढ़ने में बाधाएं उत्पन्न करती है। पढ़े-लिखे लोग और जागरूक समाज भी इस समस्या से अछूता नहीं है। 

आज हजारों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है। आज भी समाज के अनेक घरों में बेटा-बेटी में भेद किया जाता है। बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जाती है। समाज में आज भी बेटियो को बोझ समझा जाता है। हमारे यहां आज भी बेटी पैदा होते ही उसकी परवरिश से ज्यादा उसकी शादी की चिंता होने लगती है। आज महंगी होती शादियों के कारण बेटी का बाप हर समय इस बात को लेकर चिंतित नजर आता है कि उसकी बेटी की शादी की व्यवस्था कैसे होगी। 

हमारे देश में यह एक बड़ी विडंबना है कि हम बालिका का पूजन तो करते हैं, लेकिन जब हमारे खुद के घर बालिका जन्म लेती है, तो हम दुखी हो जाते हैं। देश में सभी जगह ऐसा देखा जा सकता है। देश के कई प्रदेशों में तो बालिकाओं के जन्म को अभिशाप तक माना जाता है, लेकिन बालिकाओं को अभिशाप मानने वाले लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि वह उस देश के नागरिक हैं जहां रानी लक्ष्मीबाई जैसी विरांगनाओं ने देश, समाज के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे।

देश में लिंगानुपात लगातार घट रहा है। इसे बढ़ाने की कोशिश सफल नहीं हो पा रही है। आंकड़ों की बात करें तो 2014-2016 के दौरान लिंगानुपात 898 था। वहीं 2015-17 के दौरान यह 896 पर आ गया। 2011 की जनगणना में लिंगानुपात 940 था। सर्वे के मुताबिक 2012 से 2017 के दौरान देश के शहरी और ग्रामीण इलाकों में जन्म दर में क्रमश: 1.3 फीसदी और 0.6 फीसदी की गिरावट आई है। लिंगानुपात कम होना देश के सभी हिस्सों, जातियों, वर्गो और समुदायों में व्याप्त है। लगातार घटते जा रहे लिंगानुपात के कारण को गंभीरता से देखने और समझने की जरुरत है।

देखा जाए तो अगर समाज में बेटियों को भी उचित शिक्षा और सम्मान मिले तो कभी भी ये बेटियां किसी भी क्षेत्र में पीछे नही रहेंगी। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ एक योजना नहीं बल्कि हम सबकी एक जिम्मेदारी है। हमारा यही फर्ज बनता है कि हम इन बेटियों को भी भयमुक्त वातावरण में पढ़ाये। उन्हें सशक्त बनाएं।

भारत में हर साल तीन से सात लाख कन्या भ्रूण नष्ट कर दिए जाते हैं। इसलिए यहां महिलाओं से पुरुषो की संख्या 5 करोड़ ज्यादा है। समाज में निरंतर परिवर्तन और कार्य बल में महिलाओं की बढ़ती भूमिका के बावजूद रुढ़िवादी विचारधारा के लोग मानते हैं कि बेटा बुढ़ापे का सहारा होगा और बेटी हुई तो वह अपने घर/ससुराल चली जाएगी। बेटा अगर मुखाग्नि नहीं देगा तो कर्मकांड पूरा नहीं होगा।

आज लड़कियां लडकों से किसी भी क्षेत्र में कमतर नहीं हैं। हर क्षेत्र में महिला शक्ति को पूरी हिम्मत से काम करते देखा जा सकता है। समाज के पढ़े-लिखे लोगों को आगे आकर कन्या भ्रूण हत्या जैसे घिनौने कृत्य को रोकना होगा। एक माहौल बनाना होगा और ऐसा करने वाले लोगों को समझा कर उनकी सोच में बदलाव लाना होगा। लोगों को इस बात का संकल्प लेना होगा कि ना तो गर्भ में कन्या की हत्या करेगें ना ही किसी को करने देगें।

एक तरफ जहां बेटी को जन्मते ही मरने के लिये लावारिस छोड़ दिया जाता है, वहीं झुंझुनू जिले की मोहना सिंह जैसी लड़कियां भी हैं, जो देश में फाईटर प्लेन उड़ा कर जिले का पूरे देश में मान बढ़ा रही हैं। समाज में सभी को मिलकर राष्ट्रीय बालिका दिवस के दिन हमें लड़का-लड़की में भेद नहीं करने और समाज के लोगों को लिंग समानता के बारे में जागरूक करने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए।

देश में आए दिन बालिकाओं के साथ बलात्कार, प्रताड़ना की घटनाएं अखबारों की सुर्खियां बनती हैं। लड़कियां आज कहीं भी अपने को सुरक्षित नहीं समझती हैं। हर साल बालिका दिवस मनाने की बजाय सरकार और समाज को मिलकर ऐसे वातावरण का निर्माण करने का प्रयास करना चाहिए, जिसमें बालिकाएं खुद को महफूज समझ सकें। जब तक बालिकाओं की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था नहीं होगी, तब तक बालिका दिवस मनाना सार्थक नहीं हो पाएगा। 

बालिकाओं पर अत्याचार करने वालों के मन में भय व्याप्त करने के लिए सरकार को कानून में और अधिक सुधार की जरूरत है। आंध्र प्रदेश जैसे राज्य में सरकार ने बलात्कार करने वालों को 21 दिन में फांसी देने का कानून बनाया है। ऐसा कानून सभी जगह लागू होना चाहिए। 

निर्भया प्रकरण में पटियाला हाउस कोर्ट ने दोषियों को 22 जनवरी को फांसी देने के लिए डेथ वारंट जारी किया था, लेकिन जब दया याचिका दाखिल की गई तो उसके बाद कोर्ट ने एक फरवरी के लिए नया डेथ वारंट जारी किया है। अब एक फरवरी को भी डेथ वारंट पर अमल होगा कि नहीं उस पर भी अभी संदेह व्यक्त हो रहा है।

हाल ही में केंद्र सरकार ने एक अच्छी पहल करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी डाली है। केंद्र ने अपनी याचिका में कहा है कि ये तय किया जाए कि कोर्ट की ओर से डेथ वारंट जारी करने के बाद सात दिनों के भीतर ही दया याचिका दायर की जा सके। देश के सभी सक्षम न्यायालयों, राज्य सरकारों, जेल प्राधिकारों को उनकी दया याचिका को खारिज करने के सात दिन के भीतर डेथ वारंट जारी करने और इसके सात दिनों के भीतर मौत की सजा देने का आदेश दिया जाए। भले ही उसके साथी दोषियों की पुनर्विचार या क्यूरेटिव याचिका दया याचिका लंबित हो।

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