जालोर / वजह क्या है कि जवाई से 5—10 गुना बड़े बांध भर गए, लेकिन यहां क्षमता का 30% पानी ही आया है

बीसलपुर बांध क्षमता के लिहाज से जवाई बांध से पांच गुना तक बड़ा है, लेकिन पूरा भर चुका है। जवाई बांध अपनी क्षमता का एक तिहाई भी नहीं भरा है। वजह क्या है कि भारी बारिश वाले जिलों में बांध अभी पूरे नहीं भर पाए हैं, जिनका लाभ उन किसानों को नहीं मिलता जो नदी में पानी छोड़े जाने की आस लगाए बैठे रहते हैं। किसानों की उम्मीदों को पंख लगने तो दूर प्रकृति की अनूठी नेमत को सहेजने के उपाय तक नहीं सोचे जा रहे हैं।

बीसलपुर बांध क्षमता के लिहाज से जवाई बांध से पांच गुना तक बड़ा है, लेकिन पूरा भर चुका है। जवाई बांध अपनी क्षमता का एक तिहाई भी नहीं भरा है। वजह क्या है कि भारी बारिश वाले जिलों में बांध अभी पूरे नहीं भर पाए हैं, जिनका लाभ उन किसानों को नहीं मिलता जो नदी में पानी छोड़े जाने की आस लगाए बैठे रहते हैं। 

वैसे तो यह पूरे प्रदेश की कहानी है। बांधों के वाटरशेड वाले जिन जिलों में सामान्य से बहुत अधिक बारिश है। कई जगह वहां के बांधों में कम पानी है। वहीं कई जिले ऐसे हैं, जहां अच्छी बारिश पर भी बांध भर गए हैं, जिनकी क्षमता भी बहुत अधिक हैं। इस समस्या की ओर न तो सरकार का ध्यान जा रहा है और न अन्य किसी एजेंसी का। ऐसे में किसानों की उम्मीदों को पंख लगने तो दूर प्रकृति की अनूठी नेमत को सहेजने के उपाय तक नहीं सोचे जा रहे हैं। 

राजस्थान में बांधों की क्षमता के लिहाज से राज्य का सबसे बड़ा बांध राणा प्रताप सागर बांध चित्तौड़गढ़ में है। उसकी क्षमता 2905 मीट्रिक क्यूबिक मीटर है। दूसरे नम्बर पर बांसवाड़ा का माही बजाज सागर 2180 मीट्रिक क्यूबिक मीटर की जलक्षमता के साथ है। तीसरे नम्बर पर 11 सौ एमक्यूएम के साथ टोंक का बीसलपुर और चौथे नम्बर पर उदयपुर का जयसमंद है। 

पांचवें नम्बर पर जवाई बांध है, जिसकी जल क्षमता 208 एमक्यूएम करीबन है। पाली, उदयपुर और राजसमंद में अच्छी बारिश होने पर इस बांध में जल आवक तेजी से होती है। पाली में अब तक सामान्य से 76 प्रतिशत, उदयपुर में 56 प्रतिशत और राजसमंद में निर्धारित मानक से 71 प्रतिशत अधिक बारिश रिकार्ड हुई है, लेकिन बांध में अभी तक करीब 68 एमक्यूएम ही पानी आया है। बांध एक तिहाई ही भरा है। जबकि बीसलपुर के जलग्रहण वाले भीलवाड़ा में 76, अजमेर में 86 और टोंक में 52 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। हालांकि मिलीमीटर में बारिश के मामलें में पाली, राजसमंद और उदयपुर का योग ज्यादा है। साथ ही अरावली की सघन और प्रभावी पहाड़ियां जवाई के जलग्रहण में अधिक है। बीसलपुर क्षमता के लिहाज से जवाई बांध से पांच गुना अधिक है। वह जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा और टोंक जैसे बड़े जिलों की प्यास बुझाता है। शीघ्र भर गया, चादर चलने वाली है। परन्तु जवाई में एक तिहाई भी पानी नहीं आया। ऐसे ही हाल सबसे बड़े बांध जो कि राणा प्रताप सागर करीब 29 सौ एमक्यूएम की क्षमता रखता है के हैं। चित्तौड़ में सामान्य से 56 प्रतिशत अधिक बारिश है। दूसरे नम्बर के माही बजाज सागर पर चादर चल रही है। बांसवाड़ा में सामान्य से 15 प्रतिशत अधिक बारिश है। तो समस्या कहां है? इस पर गौर नहीं किया जा रहा है। 

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जवाई की वास्तविक समस्या पर मौन है नेता

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जवाई बांध पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है और इससे प्यास बुझाने व सिंचाई के मुद्दे पर तीन जिलों पाली—जालोर व सिरोही की राजनीति गर्माती है। जनप्रतिनिधियों की कमजोर पैरवी के चलते जालोर के हाथ तो अक्सर कुछ भी नहीं आता। वहां के जनप्रतिनिधि अखबारी बयान तक अपने आपको सीमित कर लते हैं। यदि इसका पानी जवाई नदी में छोड़ा जाए तो आहोर, जालोर, भीनमाल और सांचौर विधानसभा तक के भू—जल स्तर में बढ़ोतरी होती है। परन्तु ऐसा नहीं होता है, वजह है वहां के चुने हुए नेताओं की ढिलाई। अक्सर पाली और सुमेरपुर इस मामले में बाजी मारते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि जवाई बांध पर हक निर्धारण सुमेरपुर विधायक की आंखों के इशारों से ही होता रहा है। वैसे आपको जानकार आश्चर्य होगा कि जवाई बांध के पानी पर अभी तक जालोर का हक निर्धारित नहीं है, जबकि बाढ़ आने पर हर बार जालोर ही इसका कहर भुगतता है और वहां तक पहुंचने वाला उनके हक का पानी कभी भी निर्धारित रूप से नहीं पहुंचता। इस बांध की पंचायती पाली कलक्टर और वहां के नेताओं के इशारे पर चलती है। इसे कमाण्ड एरिया विकास में भी नहीं शामिल किया गया है। पाली में सिंचित होने वाला क्षेत्र तो बड़ा है, लेकिन लाभान्वित होने वाले किसान कम है। जालोर में छोटे किसान हैं ऐसे में उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह ही दबकर रह जाती है।

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पुनर्भरण का झुनझुना

पाली—जालोर और सिरोही को जवाई का पुनर्भरण का झुनझुना पकड़ाया हुआ है और वह जनता बजा रही है। नेता उसकी तारीफों के पुल बांधे हुए हैं। जबकि वह प्रोजेक्ट 2014 में करीब 12 हजार करोड़ का था, जो आज के समय में जमीन पर शुरू भी नहीं हुआ है। 

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समस्या कहीं और है

जवाई बांध के तेज गति से नहीं भर पाने की सबसे बड़ी वजह है उसके क्षेत्र में अवैध अतिक्रमण। हाईकोर्ट तक जवाई के जलग्रहण क्षेत्र में बने करीब तीन सौ अवैध अवरोधक बांध, चेक डेम और अन्य अवरोध हटाने के आदेश कर चुका है। परन्तु पालना कागजों में ही हुई है। इसका दंश जालोर भी भुगत रहा है और पाली भी। परन्तु जैसा कि आप जानते हैं बांध के रास्ते में अवरोध तो रसूखदार ही डाल सकते हैं। ऐसे में उनके खिलाफ कौन बोले? लिहाजा जल संकट हर साल आता है। प्राकृतिक अरावली की सम्पदा में अवरोध के चलते बांध नहीं भर रहा है।

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अतिवृष्टि होने पर भी इस बांध के पूरा भरने का इंतजार किया जाता है और फिर सारे गेट एक साथ खोल दिए जाते हैं। लिहाजा जालोर में बाढ़ आ जाती है। वह पानी पाकिस्तान तक जाता है और किसी के काम नहीं आता। पुनर्भरण के क्या फायदे होंगे या सिर्फ भारी प्रोजेक्ट से नेताओं की, ठेकेदारों की जेबें भरेंगी। यह हम नहीं जानते। अतिक्रमण हटाने के आदेश कोर्ट दे चुका है। यदि वही हटा दिए जाए तो भी यह बांध बहुत तेज गति से भर सकेगा। पाली जिले के ही एक और बांध सरदार समंद की स्थिति तो इससे भी बुरी है। वह बांध भारी बारिश के बावजूद, नदी चलने के बावजूद चालीस प्रतिशत भर पाया है। बाढ़ में भी बांध पूरा नहीं भरा था। किसानों को उसमें सिंचाई के लिए पानी एक निश्चित स्तर तक भरने के बाद दिया जाता है। उसकी राह में अवरोध और बजरी खनन रोड़ा बने हुए हैं। समय रहते सरकारों को बांधों की इस समस्या को समझना होगा। अन्यथा इन्द्रदेव मेहरबानी कर रहे हैं और जनता के कंठ हमेशा की तरह पानी के लिए तरसते रहेंगे।