COVID-19 Update / डबल म्यूटेंट डेल्टा वेरिएंट से कई गुना ज्यादा घातक हो सकता है लैम्ब्डा, ये 5 बातें बढ़ाती हैं चिंता

Zoom News : Jul 10, 2021, 10:04 AM
नई दिल्ली। कोरोना वायरस (Coronavirus) संकट के बीच नई चुनौती लैम्ब्डा वेरिएंट (C।37) की दस्तक हुई है। हालांकि, इसपर अभी और स्टडी की जानी बाकी है, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के तरफ से मिली चेतावनी डराने वाली है। संगठन के प्रमुख डॉक्टर टेडरोस अधानोम घेब्रेयसस (Dr Tedros Adhanom Ghebreyesus) ने लैम्ब्डा की तुलना दुनियाभर में कहर मचा रहे डेल्टा वेरिएंट (Delta Variant) से की थी। GISAID का डेटा बताता है कि यह वेरिएंट दुनिया के 31 देशों में फैल चुका है।

कोरोना के इस नए रूप लैम्ब्डा की शुरुआत पेरू में अगस्त 2020 में हई थी। ब्रिटेन में कुछ नमूनों में इस वेरिएंट की पुष्टि हुई है। वहीं, अमेरिका के 50 राज्यों में से 43 में इस वेरिएंट के मरीज मिल चुके हैं। इनके अलावा लैम्ब्डा वेरिएंट की एंट्री इजरायल, स्पेन, जर्मनी, इटली, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, टर्की और ऑस्ट्रेलिया में हो चुकी है। पहले ही डेल्टा वेरिएंट का सामना कर रही दुनिया में लैम्ब्डा के तेजी से बढ़ते मामले मुश्किलों में ही इजाफा करेंगे।WHO का डेटा बताता है कि पेरू में मई-जून में मिले 82 फीसदी मामलों का कारण लैम्ब्डा वेरिएंट था। जबकि, इसी दौरान चिली में 32 प्रतिशत मामले इस वेरिएंट के थे। अर्जेंटीन में कोरोना के इस रूप के 37 फीसद मामले सामने आए थे। पेरू के अलावा यह वेरिएंट, अर्जेंटीना, ब्राजील, कोलंबिया, इक्वडोर और मैक्सिको जैसे दक्षिण अमेरिकी देशों में फैल रहा है। दुनिया में कोविड के चलते सबसे ज्यादा मृत्यु दर पेरू में ही है।

स्पाइक प्रोटीन में दो म्यूटेशन होने के चलते डेल्टा वेरिएंट को डबल म्यूटेंट कहा जा रहा था। लैम्ब्डा वेरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में सात म्यूटेशन देखे गए हैं। वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट का मतलब है कि इसे लेकर जांच जारी है। इसका यह भी मतलब निकलता है कि इस वेरिएंट के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है। जब हमें पता लगेगा कि यह स्ट्रेन कई असामान्य जैनेटिक बदलाव देख चुका है, तो मुश्किल और बढ़ सकती है।

इस वेरिएंट को ज्यादा संक्रामक बनाने के पीछे एक म्यूटेशन L452Q हो सकता है। क्योंकि यह डेल्टा के L452R म्यूटेशन जैसा है, जो इस वेरिएंट को और संक्रामक बनाता है। WHO ने कहा है कि म्यूटेशन के चलते इस वेरिएंट में फैलने की ज्यादा शक्ति और टीका प्रतिरोध में इजाफा हो सकता है। इसके अलावा यह शरीर की इम्यून प्रतिक्रिया को भी चकमा दे सकता है। कुल मिलाकर वेरिएंट ने 75 फीसदी सीक्वेंस में म्यूटेशन देखे हैं। इन असामान्य म्यूटेशन को देखते हुए ब्रिटेन ने इस वेरिएंट को जांच के दायरे में रखा है।

पेरू के एक मॉलेक्युलर बायोलॉजिस्ट ने दावा किया है कि लैम्ब्डा वेरिएंट ज्यादा संक्रामक है। लीमा के कायटानो हेरेडिया यूनिवर्सिटी के डॉक्टर पाब्लो सुकायामा ने प्रवृत्ति को देखते हुए कहा कि लैम्ब्डा की संक्रामकता कोरोना वायरस के दूसरे वेरिएंट्स से ज्यादा है। फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट में दिसंबर में डॉक्टर पाब्लो को हवाले से लिखा गया कि लैम्ब्डा वेरिएंट 200 में से एक सैंपल में दिखा, जो मार्च में 50 फीसदी और जून में 80 प्रतिशत बढ़ गया।

लैम्ब्डा को लेकर की गई स्टडी में बताया गया है कि वेरिएंट संक्रामकता को दो गुना बढ़ाता है। हालांकि, इस स्टडी की समीक्षा की जानी बाकी है। वहीं, एक अन्य स्टडी में बताया गया है कि लैम्ब्डा अल्फा और गामा वेरिएंट्स से ज्यादा संक्रामक है। अगर यह डेल्टा वेरिएंट से ज्यादा संक्रामक साबित होता है, और दुनिया में तेजी से फैलता है, तो इसे जल्दी वेरिएंट ऑफ कंसर्न में शामिल किया जाएगा।

सीमित अध्ययनों से पता चलता है कि मौजूदा mRNA वैक्सीन इसे असरदार कर सकती हैं, लेकिन कोरोना के इस रूप के खिलाफ वेरिएंट के प्रभाव का पता लगाने के लिए और स्टडीज की जरूरत है।

अमेरिका और यूरोपीय देशों में यात्राओं के चलते भारत के लिए भी यह चिंता की बात है। अभी तक भारत में लैम्ब्डा वेरिएंट का कोई भी मामला नहीं मिला है, लेकिन हम अंतरराष्ट्रीय यात्राओं के चलते भविष्य में इसकी संभावनाओं से इनकार नहींकर सकते। एक बार अगर लैम्ब्डा वेरिएंट के मामले भारत में मिले, तो यह केवल कोविड केस में इजाफा करेंगे।

दूसरी लहर को पहले कहा जा रहा था कि डेल्टा वेरिएंट इसका जम्मेदार नहीं है, लेकिन अब भारत और दुनिया में यह वेरिएंट प्रभावी है। भारत ने इस बात को स्वीकार कर लिया है कि यह स्ट्रेन देश में दूसरी लहर का कारण था। लैम्ब्डा वेरिएंट को लेकर भारत को सावधान रहना जरूरी है। वैक्सीन को देखें, तो अभी तक ऐसी कोई स्टडी नहीं आई है, जो बताए कि भारत में इस्तेमाल किए जा रहे टीके- कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पूतनिक V वेरिएंट को बेअसर कर सकते हैं या नहीं। इसके अलावा बड़ी परेशानी यह भी है कि हमारी 70 फीसदी आबादी को अभी भी टीका नहीं लगा है।

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