अफगानिस्तान / तालिबान ने भारत के लिए दिया ये प्रस्ताव लेकिन रखी एक शर्त

Zoom News : Jul 16, 2021, 04:47 PM
अफगानिस्तान के विभिन्न हिस्सों पर कब्जा जमाने के बीच तालिबान ने कहा है कि देश में मदद मुहैया कराने और पुनर्निर्माण कार्य जारी रखने के लिए वो भारत का स्वागत करेगा। लाइव मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने एक इंटरव्यू में कहा कि सत्ता में आने के बाद समूह अफगानिस्तान में भारत का स्वागत करेगा ताकि विकास कार्यों को आगे बढ़ाया जा सके। हालांकि, तालिबान ने कहा कि भारत को तटस्थ रहना चाहिए और सैन्य उपकरणों के साथ मौजूदा काबुल प्रशासन का समर्थन नहीं करना चाहिए। यह उनकी (भारत) छवि और अफगानिस्तानी लोगों की उनके प्रति धारणा के लिए अच्छा नहीं है। इससे पहले, तालिबान ने चीनी निवेशकों का भी स्वागत करने की बात कही थी।   

कतर स्थित तालिबान के अंतरराष्ट्रीय कार्यालय में इंटरव्यू में सुहैल शाहीन ने कहा कि वह भारत और तालिबान के बीच बातचीत से अवगत नहीं हैं। तालिबान का यह बयान उस समय सामने आया है जब अफगानिस्तान के कई पड़ोसी मुल्क तालिबान के उभार से चिंतित हैं।

भारत इस बात से चिंतित है कि पाकिस्तान समर्थित तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा किए जाने के बाद से उसके हितों को खतरा पैदा हो सकता है। जब 1996-2001 के बीच तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा था, तो कश्मीर में आतंकवाद के मामलों में तेजी देखी गई थी।

नई दिल्ली को काबुल में एक ऐसी सरकार की चाह रही है जो कश्मीर को निशाना बनाने वाले पाकिस्तान स्थित आतंकवादी गुटों का समर्थन ना करती हो। भारत अफगानिस्तान को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए चाबहार बंदरगाह का विकास कर रहा है। पाकिस्तान की जमीन से संचालित आतंकी गुटों से निपटने को लेकर अफगानिस्तान भारत के लिए बेहद अहम है।   

काबुल में मौजूदा सरकार के साथ सत्ता साझेदारी को लेकर समझौते के सवाल पर सुहैल शाहीन ने कहा कि दोहा में हमारी नेगोशिएशन टीम काबुल की वार्ताकार टीम के साथ नियमित बैठकें कर रही है। दोनों पक्ष संयुक्त एजेंडा पर चर्चा करते हैं जिन पर पहले ही रजामंदी बन चुकी है। अब यह दोनों टीमों पर निर्भर है कि वे भविष्य की इस्लामी सरकार के गठन के बारे में अंतिम निर्णय लें। वास्तव में, हमारा एजेंडा जिसे हमने दूसरे पक्ष के साथ साझा किया है, वही हमारे प्लान का ढांचा है। 

सुहैल शाहीन ने कहा कि तालिबान का मकसद अफगानिस्तान से विदेशियों को हटाना और इस्लामी सरकार कायम करना है। उन्होंने कहा कि इन दो मकसद को हासिल करने के बाद हमने शांतिपूर्ण समाधान तक पहुंचने के लिए अपना दरवाजा खुला रखा है। समानांतर में, हम अपने सैन्य नजरिये का भी इस्तेमाल करेंगे। लेकिन जब हम समाधान कर लेंगे तो जंग की जरूरत नहीं रह जाएगी।


भारत अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं का बड़ा भागीदार रहा है। भारत ने अफगानिस्तान में सड़कें, बिजली की लाइनें और सलमा बांध भी बनाया है। काबुल में सरकार का हिस्सा बनने के बाद तालिबान का भारत के प्रति क्या रुख होगा? सुहैल शाहीन ने कहा कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद विकास साझेदार अफगानिस्तान में काम करना जारी रख सकते हैं और विदेशी दूतावास भी रह सकते हैं।

तालिबान प्रवक्ता ने कहा, दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों के संबंध में हमने पहले ही आधिकारिक बयान जारी कर कहा है कि हम किसी भी देश के किसी भी राजनयिक मिशन के लिए खतरा पैदा नहीं करेंगे।


नेशनल प्रोजेक्ट्स और अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण पर सुहैल शाहीन ने कहा कि भविष्य की इस्लामी सरकार अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और पुनर्वास में अन्य देशों के सकारात्मक योगदान का स्वागत करती है। हालांकि, भारत को तटस्थ रहना चाहिए और सैन्य उपकरणों के साथ मौजूदा काबुल प्रशासन का समर्थन नहीं करना चाहिए।

ऐसी खबरें हैं कि भारत तालिबान के संपर्क में है, आपसे बातचीत चल रही है। क्‍या आप इस बारे में कोई ब्‍यौरा दे सकते हैं कि किस प्रकार की बातचीत हो रही है? सुहैल शाहीन ने कहा कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा, 'मैं इन संपर्कों और बैठकों के बारे में नहीं जानता। जहां तक मैं जानता हूं, ऐसा नहीं हुआ है।'

तालिबान की सत्ता साझेदारी के बाद आतंकी खतरों की आशंका को लेकर भारत की चिंता पर तालिबान प्रवक्ता ने कहा कि दोहा समझौते के मुताबिक हमारी प्रतिबद्धता है कि हम किसी को भी किसी अन्य देश के खिलाफ अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल करने की इजातत नहीं देंगे। हम समय-समय पर यह बात कहते रहे हैं। 

भविष्य में अफगानिस्तान में चीन और पाकिस्तान की भूमिका के सवाल पर सुहैल शाहीन ने कहा, 'पिछले चार दशकों के दौरान हमारे लोगों ने बहुत कुछ झेला है और हमारा देश एक युद्धग्रस्त देश है। हमें चीन और पाकिस्तान और अन्य सभी देशों की सहायता की आवश्यकता है। लेकिन साथ ही, हम नहीं चाहते कि अफगानिस्तान प्रतिद्वंद्विता का मैदान बने, बल्कि हम चाहते हैं कि यह सहयोग का आधार हो।'

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