- भारत,
- 03-Aug-2025 07:20 PM IST
India-US Tariff War: भारतीय निर्यातकों ने खाद्य, समुद्री, और कपड़ा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित 25 प्रतिशत शुल्क के प्रभाव को कम करने के लिए सरकार से वित्तीय सहायता और किफायती ऋण की मांग की है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के साथ हाल ही में हुई बैठक में निर्यातकों ने उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसी योजनाओं को लागू करने का सुझाव दिया।
अमेरिकी शुल्क का प्रभाव
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि निर्यातकों ने अमेरिकी बाजार में उच्च शुल्क के कारण उत्पन्न होने वाली चुनौतियों पर अपनी चिंताएं व्यक्त कीं। उन्होंने कहा, "निर्यातकों ने अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए सस्ती दरों पर ऋण और राजकोषीय प्रोत्साहन की मांग की।" मंत्री गोयल ने निर्यातक समुदाय को अपने सुझाव लिखित रूप में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। यह 25 प्रतिशत शुल्क, जो मौजूदा मानक आयात शुल्क के अतिरिक्त है, 7 अगस्त, 2025 (भारतीय समयानुसार सुबह 9:30 बजे) से लागू होगा।
ब्याज दरों में अंतर
निर्यातकों ने बताया कि भारत में ब्याज दरें 8 से 12 प्रतिशत या उससे भी अधिक हैं, जो वैश्विक प्रतिस्पर्धियों की तुलना में काफी अधिक हैं। उदाहरण के लिए, चीन में केंद्रीय बैंक की दर 3.1 प्रतिशत, मलेशिया में 3 प्रतिशत, थाईलैंड में 2 प्रतिशत, और वियतनाम में 4.5 प्रतिशत है। यह उच्च ब्याज दर भारतीय निर्यातकों की लागत को बढ़ाती है, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होती है।
प्रभावित क्षेत्र और रोजगार पर खतरा
उच्च शुल्क का असर विशेष रूप से कपड़ा ($10.3 बिलियन), रत्न एवं आभूषण ($12 बिलियन), झींगा ($2.24 बिलियन), चमड़ा और जूते-चप्पल ($1.18 बिलियन), रसायन ($2.34 बिलियन), और विद्युत एवं यांत्रिक मशीनरी ($9 बिलियन) जैसे क्षेत्रों पर पड़ेगा। अमेरिका भारत के चमड़ा और परिधान निर्यात का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। निर्यातकों ने चेतावनी दी कि अमेरिकी खरीदारों द्वारा ऑर्डर रद्द करने या रोकने के कारण निर्यात में कमी आ सकती है, जिससे रोजगार पर भी असर पड़ सकता है। विशेष रूप से परिधान और झींगा जैसे क्षेत्र पहले से ही दबाव में हैं।
सरकार के लिए चुनौतियां
निर्यातकों ने यह भी स्वीकार किया कि सरकार के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन प्रदान करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। फिर भी, उन्होंने सस्ते ऋण और पीएलआई जैसी योजनाओं के माध्यम से समर्थन की आवश्यकता पर जोर दिया। उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को निर्यातकों की प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे, ताकि वैश्विक बाजार में भारत की स्थिति मजबूत रहे।
