दुनिया / पुरानी दुश्मनी भुलाकर मुस्लिम मुल्क क्यों इजरायल से हाथ मिला रहे हैं?

News18 : Sep 18, 2020, 08:49 AM
Delhi: एक के बाद एक लगातार अरब देश इजरायल से दोस्ती (Israel and Arab nations friendship) कर रहे हैं। ये सारी मित्रता अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (American president Donald Trump) की मेजबानी में हो रही है। इजराइल के साथ अरब देशों की दोस्ती के ऐतिहासिक मायने हो सकते हैं क्योंकि दशकों से सारे ही मुस्लिम देश यहूदी-बहुल देश इजरायल को दुश्मन मानते रहे। दोनों तरफ लड़ाइयों का लंबा इतिहास रहा। तब क्या वजह है कि अचानक अरब देश दुश्मनी भुलाकर इजरायल से संबंध सामान्य करने की तरफ बढ़े हैं। जानिए, क्या हैं इसके मायने।


हो रही है मैत्री

अगस्त में ही इजरायल और यूनाइटेड अरब एमिरेट्स ने 5 दशक से भी ज्यादा पुरानी दुश्मनी को छोड़ते हुए दोस्ती का हाथ मिलाया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों देशों के बीच पुल का काम किया। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्‍याहू और अबूधाबी के क्राउन प्रिंस मोहम्‍मद अल नहयान के बीच हुए इस समझौते के तहत इजरायल फिलिस्तीन के वेस्ट बैंक पर से अपनी दावेदारी वापस ले रहा है। दूसरी तरफ यूएई इजरायल से पूर्ण राजनैतिक संबंध शुरू कर रहा है।

दो देश पहले ही दुश्मनी भुला चुके

इस तरह से यूएई, मिस्र और जॉर्डन के बाद तीसरा ऐसा देश बन गया, जिसने इजरायल को मान्यता दी। बता दें कि साल 1979 में मिस्र और साल 1994 में जॉर्डन ने इजरायल के साथ पीस डील की। इन तीन देशों के बाद बहरीन ताजा देश है, जिसके साथ इजरायल का राजनयिक संबंध बन गया है। हाल ही में ट्रंप की ही अध्यक्षता में इस चौथे अरब देश ने यहूदी देश इजरायल को मान्यता दी। अब उम्मीद की जा रही है कि दूसरे अरब देश भी इजरायल के लिए अपनी दुश्मनी भुलाकर आगे आएंगे।

कैसे और कब हुआ बैर

इन देशों की दोस्ती का महत्व समझने के लिए ये जानना जरूरी है कि अरब मुल्कों और इजरायल में दुश्मनी की शुरुआत कैसे और कब हुई थी। असल में मुस्लिम देशों से घिरा इजरायल एकमात्र यहूदी देश है, जो न केवल अपनी रक्षा कर पाता है, बल्कि हमले का जवाब दोगुनी ताकत से देता आया है। वो कहने को तो छोटा देश है लेकिन सैन्य मोर्चे पर काफी मजबूत है। साथ ही साथ वो परमाणु शक्ति वाला देश भी है। साल 1948 में अपने निर्माण के साथ ही इजरायल खाड़ी देशों की नफरत का शिकार होने लगा। इसकी वजह थी, वहां की अलग धार्मिक मान्यता और उसकी बढ़ती ताकत।

6 दिन के युद्ध में इजरायल का दिखा पराक्रम

नतीजा ये हुआ कि साल 1967 में खाड़ी देशों ने इजरायल पर हमला बोल दिया। ये लड़ाई जून के पहले हफ्ते से लगभग 6 दिन चलती रही लेकिन इससे अरब देशों का नक्शा ही बदल गया। छोटा होने के बाद भी ताकतवर देश इजरायल ने मिस्र, सीरिया और जॉर्डन को अपनी सीमाओं से पीछे धकेल दिया। इस युद्ध में इजरायल की ताकत से घबराए देशों ने अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के कहने पर उस समय तो चुप्पी साध ली लेकिन भीतर ही भीतर गुस्सा भड़कता रहा।

इसी अरब-इजरायल युद्ध के बाद से सारे खाड़ी देश इजरायल के कट्टर दुश्मन बन गए। उसपर कई तरह के प्रतिबंद लगाए गए। जैसे सऊदी अरब ने इसे पेट्रोलियम देने वाले देशों तक पर रोक लगा दी। साल 1979 में मिस्र पहला देश बना, जिसने इजरायल से दुश्मनी भुलाकर आगे बढ़ने की सोची। इसके बाद नब्बे की शुरुआत में जॉर्डन ने दोस्ती की। हालांकि ये दोनों ही देश बाकी अरब देशों से कई तरह के प्रतिबंध झेलते रहे।


बन रहे हैं नए समीकरण

अब कोरोना की मार के बाद देशों की केमिस्ट्री तेजी से बदलती दिख रही है। यूएई के बाद बहरीन ने भी अपने कट्टर दुश्मन इजरायल से दोस्ती कर ली है। माना जा रहा है कि लगभग 9 अरब देश इजरायल से मित्रता चाहते हैं। यूरेशियन टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक खुद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि बहरीन और यूएई के बाद कई और देश कतार में हैं। ट्रंप के मुताबिक इसमें कई बड़े देश भी शामिल होंगे।


चीन भी है एक वजह 

लगभग 5 से भी ज्यादा दशक के बाद अरब और इजरायल की दोस्ती को dawn of a new Middle East (मिडिल ईस्ट में नया सवेरा) की तरह देखा जा रहा है। वैसे आपसी दुश्मनी भुलाने की एक बड़ी वजह चीन की बढ़ती ताकत और धौंस को भी माना जा रहा है। असल में चीन एक खास रणनीति के तहत छोटे देशों में पैसे लगाकर वहां अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है। इस तरीके से वो वहां के बंदरगाहों पर कब्जा कर रहा है और समुद्री रास्ते से व्यापार आगे बढ़ा रहा है। कुल मिलाकर चीन दुनिया के बहुत से बड़े देशों और खासकर अमेरिका के लिए खतरा हो चुका है। यही देखते हुए अमेरिका सभी देशों को चीन के खिलाफ एकजुट करने में लगा हुआ है। ट्रंप की हालिया कोशिश इसी तरह देखी जा रही है।


इजरायल और खाड़ी देशों की दोस्ती अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मेजबानी में हो रही है

एक और वजह चीन और ईरान की बढ़ती दोस्ती और उससे उपजे खतरे भी हैं। दोनों देशों के बीच हुई डील के तहत 25 सालों तक उनके बीच व्यापारिक समझौता रहेगा। इसी डील के साथ चीन ईरान को उसके चाबहार रेल प्रोजेक्ट के लिए काफी सस्ती दरों पर कच्चा तेल देगा और ईरान इसके बदले में चीन को अपने यहां इनवेस्टमेंट करने देगा।


चीन और ईरान के मिलने से बढ़ा खतरा

न्यूयॉर्क टाइम्स ने दोनों के बीच इस समझौते पर 18 पन्नों का डॉक्युमेंट हासिल किया है। इन दस्तावेजों से पता चलता है कि चीन ईरान में लगभग 280 अरब डॉलर का इनवेस्टमेंट करने जा रहा है। साथ ही दोनों देश मिलकर सैन्य और खुफिया जानकारी भी साझा करेंगे। कोरोना काल में दोनों देशों के बीच इस समझौते से अमेरिका काफी भड़का हुआ है। साथ ही चाबहार रेल प्रोजेक्ट से बाहर जाने के कारण भारत को भी धक्का लगा है। इसके अलावा अगर चीन ईरान में रहेगा तो भारत को ईरान से व्यापारिक साझेदारी में मुश्किल आ सकती है। इधर ये भी अनुमान है कि ईरान और चीन का मिलना आतंकी गतिविधियों को अलग तरह से बढ़ावा दे सकता है।

यही देखते हुए तोड़ के रूप में अमेरिका ने अरब के बाकी देशों और इजरायल को मिलाने का काम शुरू कर दिया है। ये एक तरह से चीन और ईरान की दोस्ती का जवाब है। साथ ही सैन्य तौर पर काफी मजबूत होने के कारण मिडिल ईस्ट से आतंकी गतिविधियां खत्म करने में भी इजरायल बड़ा काम कर सकता है।

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