मरजावां

Nov 15, 2019
कॅटगरी एक्शन ,ड्रामा
निर्देशक मिलाप झवेरी
कलाकार तारा सुतारिया,नुशरत भरुचा,रितेश देशमुख,सिद्धार्थ मल्होत्रा
रेटिंग 2.5/5
निर्माता कृष्ण कुमार,दिव्या खोसला कुमार,भूषण कुमार
संगीतकार तनिष्क बागची,पायल देव,मीत ब्रदर्स,यो यो हनी सिंह
प्रोडक्शन कंपनी टी-सीरीज एम्मे एंटरटेनमेंट

मरजावां‘ के डायरेक्टर मिलाप ज़ावेरी ने 2002 की कल्ट मूवी ‘कांटे’ के डायलॉग लिखे हैं। कांटे में उनका एक डायलॉग है-

कहानी में ट्विस्ट हो न, तो मज़ा आता है।

लेकिन वो ये कहीं नहीं बताते कि क्या हो अगर कहानी में ज़रूरत से कहीं ज़्यादा ट्विस्ट हों और कोई एक सिरा पकड़ना ही असंभव हो जाए?

कहानी-

अन्ना मुंबई में पानी के टैंकरों की कालाबाज़ारी करता है। जब रघु ‘इतना सा’ था तब अन्ना उसे गटर से उठाकर लाया था। अन्ना का एक सगा बेटा भी है। नाम है- विष्णु। यूं ‘विष्णु’ अन्ना का वारिस है और रघु ‘लावारिस’। जैसा रघु एक जगह कहता है।

विष्णु, रघु से नफ़रत करता है। क्यूंकि अन्ना उससे ज़्यादा रघु को चाहता है। रघु की प्रेमिका ज़ोया एक कश्मीरी लड़की है, जो बोल नहीं सकती। विष्णु की नफरतों और जलन के चलते इन सभी करैक्टर्स और उनकी कहानियों में ट्विस्ट एंड टर्न्स आते हैं और अंत में कहानी का किसी एटीज़-नाइंटीज़ वाली फिल्म सरीखा इमोशनल क्लाइमेक्स होता है।

‘परिंदा’, ‘ग़ुलाम’, ’देवदास’, ‘अग्निपथ’, ‘कयामत से कयामत तक’, ‘गजनी’, ‘काबिल’, ‘लावारिस’ और ‘केजीएफ’ जैसी ढेरों मूवीज़ की याद दिलाती इस मूवी की स्क्रिप्ट कहीं से भी नई नहीं है। लेकिन इस सब के बावज़ूद स्क्रिप्ट के कई मोमेंट्स हैं जहां पर ये दर्शकों को शोर मचाने, गुस्सा दिलाने और इमोशनल होने पर मजबूर करती है।

दुःख इस बात का होता है कि ‘विष्णु’, ‘अन्ना’ और ‘रघु’ के करैक्टर्स मल्टीलेयर्ड होने का माद्दा रखते थे। लेकिन स्क्रिप्ट में एफर्ट्स की कमी के चलते वो ‘परिंदा’ के ‘नाना पाटेकर’ या ‘सत्या’ के ‘जे डी चक्रवर्ती’ के आस-पास भी नहीं फटक पाए।

केवल स्क्रिप्ट ही नहीं, डायलॉग्स से लेकर म्यूज़िक तक में अगर सबसे ज़्यादा कमी खलती है तो वो है फिनिशिंग टच की।

एक और दिक्कत ये है कि इसमें एक्शन को ज़्यादा भाव दिया गया है, जबकि इसका रोमांस वाला पार्ट ज़्यादा उभर कर आता, ऐसा मेरा मानना है।

म्यूज़िक-

मूवी का म्यूज़िक एक्सेप्शनल नहीं कहूंगा लेकिन पिछले दिनों आईं कई मूवी एलबम्स से कहीं बेहतर है। ‘तुम ही आना’ एक नज़्म सरीखी है जिसके लिरिक्स और म्यूज़िक एक दूसरे को बेहतरीन तरह से कॉम्प्लीमेंट करते हैं। इसे कई जगह ‘सैड ट्यून’ की तरह बैकग्राउंड में यूज़ किया गया है। अरिजीत का गाया हुआ ‘थोड़ी जगह’ गीत अपने लिरिक्स और म्यूज़िक के चलते आशिकी 2 एल्बम की याद दिलाता है। ‘एक तो कम जिंदगानी’, ‘किन्ना सोणा’ और ‘हैया हो’ गीत पुराने हिट गीतों के नए वर्ज़न हैं, जो आजकल की फिल्मों का नॉर्म बन चुका है।

ट्रेलर वर्सेज़ मूवी-

मूवी देखने जाने के अनुभव को बहुत सी चीज़ें प्रभावित करती हैं। उनमें से एक है मूवी का ट्रेलर। तो अगर आप ‘मरजांवा’ का ट्रेलर देखकर मूवी के ऐंवे-ऐंवे होने की उम्मीद लगा रहे हैं तो आप सरप्राइज़ हो सकते हैं। क्यूंकि मूवी उतनी बुरी नहीं है जितना इसका ट्रेलर।

डायलॉग-

मिलाप ज़ावेरी ने ही ‘मरजावां’ के डायलॉग भी लिखे हैं। हमने पहले बताया कि जब मूवी का ट्रेलर आया था तो उसकी सोशल मीडिया पर काफी भद्द पिटी। सबसे ज़्यादा ट्रोल हुए इसके डायलॉग्स। लेकिन मूवी देखने के बाद आपको लगेगा कि मूवी के सबसे घटिया डायलॉग्स चुन-चुन कर ट्रेलर में डाले गए हैं। मतलब ये कि मूवी के डायलॉग इतने भी बुरे नहीं हैं। लेकिन वो इतने ज़्यादा बार ‘वन लाइनर्स’ सरीखे हो जाते हैं कि मज़ाक लगते हैं। ओवर लगने लगते हैं। ‘हाईट क्या है?’ वाला सवाल बार-बार आता है और अपने जवाब से पहले कुछ बार तो संतुष्ट करता है लेकिन फिर इरिटेट करने लगता है। जैसे-

कंपटीशन की हाईट क्या है- नियाग्रा फॉल के सामने टॉयलेट करना।

स्टुपिडिटी की हाईट क्या है- कंघी के लिए लड़ते हुए दो गंजे।

दीवानगी की हाईट क्या है- किसी लड़की को बोलो ‘आई लव यू’ और लड़की हंस कर बोले ‘हा हा हा’ तो खुश हो जाओ कि उसने तीन बार हां कहा।

आपने गौर किया होगा कि दूसरे वाले डायलॉग में गंजे व्यक्तियों के लिए असंवेदनशीलता दिखाई है। ऐसे ही एक सीन इव टीजिंग को जस्टिफाई करता है। जब एक छोटा बच्चा एक रस्ते से गुज़र रही लड़की के लिए ‘बदतमीज़ दिल’ गाता है, और ज़ोया उसे ऐसा फिर से करने को बोलती है।

एक्टिंग-

सिद्धार्थ मल्होत्रा का न सिर्फ रोल बल्कि उनकी एक्टिंग भी ‘एक विलेन’ के उनके करैक्टर ‘गुरु’ की याद दिलाता है। तारा सुतारिया, श्रद्धा कपूर लगती हैं। लेकिन ‘एक विलेन’ वाली नहीं, ‘आशिकी टू’ वालीं। रितेश देशमुख ने अपनी एक्टिंग से प्रभावित करने की कोशिश की है लेकिन, कई बार कनिंगनेस को दिखाने के लिए एक आंख बंद कर लेना एक्टिंग को लेकर उनके ‘कैजुअल बिहेवियर’ को शो करते हैं। गौर करेंगे तो वो न केवल अपनी हाईट से ज़ीरो के शाहरुख़ लगते हैं बल्कि अपने चेहरे, एक्टिंग और फेशियल एक्सप्रेशन्स से भी।

रवि किशन को नॉर्थ इंडिया के क्राउड को सिनेमाघरों की तरफ खींचने के लिए फिल्म में लिया गया है। इसलिए ही वो दो सीन्स में ‘हमारे बिहार में एक कहावत है’ से अपने डायलॉग शुरू करते हैं। तब जबकि वो कुल दो-तीन ही सीन में प्रेजेंट हैं। और बैकग्राउंड में। कहानी के सूत्रधार के रूप में।

डायरेक्शन-

इस मूवी को 80 के दशक की मूवीज़ को डेडीकेट करने के लिए उस दशक के सारे मसालों को मिक्स भर कर देना काफी नहीं होता। आपको ये भी जानना ज़रूरी होता है कि किस मसाले की मात्रा कितनी रखी जाए कि डिश खराब न हो। यहीं पर मिलाप चूक गए हैं। ‘मरजावां’ नाम की डिश के मसाले तो ग़लत हैं हीं साथ ही कई सीन अधपके भी लगते हैं। बाप बेटे की नफरत, हिरोइन और हीरो की मौत, अपने बेटे की लाश ढोती मुस्लिम औरत, एक मज़ार के सामने बुरी तरह पिटता एक मुस्लिम… ये कुछ सीन ऐसे हैं जो काफी पावरफुल हो सकते थे। आर्ट के लिहाज़ से नहीं भी तो एक कॉमर्शियल सिनेमा के लिहाज़ से।

फिल्म में मिलाप ज़ावेरी ने सब कुछ डाला है। लेकिन ये सब कुछ बड़ा सतही है।

एक्शन सीन 80’s की मूवी को नहीं किसी बी-ग्रेड साउथ इंडियन या भोजपुरी मूवी को डेडीकेट किए लगते हैं। और वहां भी ‘फिनिशिंग’ की कमी खलती है। एक दो डांस बार के गीतों की कोरियोग्राफी बॉडी के कुछ पार्ट्स को प्रोमिनेंट करने भर का काम करती है और कन्टेंपररी होते हुए भी बहुत भौंडी लगती है।

फाइनल वर्डिक्ट-

जाड़ों का संडे। अलसाई दुपहरी। ‘सेट मैक्स’ पर ‘मरजावां’ तीसरी या चौथी बार देखते हुए बीच-बीच में झपकियां लेते रहना। यही इस मूवी का सबसे अच्छा सदुपयोग होगा। वैसे भी इसके सैटेलाईट राइट्स ‘सेट मैक्स’ के पास ही गए हैं। और स्ट्रीमिंग राइट्स ‘अमेज़न प्राइम’ के पास।


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