अंतिम प्रणाम / झुंझुनूं के जवान यूं अजय हो जाते हैं, लेह लद्दाख में शहीद हुए जाखल के जवान अजय कुमार को अंतिम विदाई

Zoom News : Jun 21, 2020, 08:58 AM

झुंझुनूं  जिले के जाखल गांव के जवान शहीद अजय कुमार का पूरे सम्मान के साथ शनिवार को अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान लोगों ने शहीद अमर रहे के जयकारे लगाए। अजय कुमार 17 जून को सियाचीन ग्लेशियर में जाते हुए पैर फिसलने से गिर गए थे। जिसके बाद वे शहीद हो गए। शनिवार सवेरे उनकी पार्थिव देह जाखल गांव पहुंची। इससे कुछ दूरी पहले ही टीटनवाड़ गांव से युवाओं ने बाइक रैली निकाली और शहीद की पार्थिव देह गांव लाई गई।
 
घर की दहलीज पर जैसे ही उनकी पार्थिव देह पहुंची। पिता परमेश्वर लाल, मां विद्या देवी, पत्नी पूनम छोटे भाई संजय जैसे बेसुध हो गए। यह दृश्य देख हर आंख नम हो उठी। इसके बाद अंतिम यात्रा शुरू हुई। श्मशान घाट पर सेना की एक टुकड़ी पुलिस ने शहीद अजय कुमार को गार्ड ऑफ ऑनर दिया। 
इससे पहले सांसद नरेंद्र कुमार खींचड़ कांग्रेस के नेता डॉ. राजपाल शर्मा ने शहीद के पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र अर्पित किए। इस दौरान डीएसपी सतपाल सिंह, सरपंच मनोज मूंड, विक्रमसिंह जाखल, मनोहर सिंह, बुगाला सरपंच आनंद बुगालिया, कारी सरपंच सुमेर सिंह, रविंद्र कुमार, आजादसिंह, गुढा एसएचओ राजेंद्र शर्मा आदि मौजूद थे।

ग्लेशियर बॉर्डर पहुंचते समय हुए शहीद
अजय कुमार पुत्र परमेश्वर लाल कुमावत भारतीय सेना में 41 तोपखाना में नायक थे। उनकी पार्थिव देह लेकर आए सूबेदार अंकुर ठाकुर ने बताया कि 17 जून को उनकी टीम सियाचीन ग्लेशियर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा रही थी। अजय कुमार लेह लद्दाख से तीनों पड़ाव पूरा करते हुए ग्लेशियर बॉर्डर पर पहुंच चुके थे। इसी दौरान पैर फिसलने से अजय कुमार नीचे जा गिरे और शहीद हो गए।

टीटनवाड़ से जाखल तक युवाओं ने निकाली बाइक रैली 
सवेरे शहीद की पार्थिव देह के टीटनवाड़ पहुंचने पर यहां से युवा बाइक रैली से जाखल रवाना हुए। गांव तक पूरे रास्ते में महिलाओं पुरुषों ने जगह जगह पुष्प वर्षा की। इस दौरान आसपास के भी कई गांवों से लोग पहुंचे। लोग भारत माता की जय और शहीद अमर रहे के नारे लगा रहे थे। विधायक डॉ. राजकुमार शर्मा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर गांव की राजकीय बालिका माध्यमिक स्कूल का नामकरण शहीद अजय कुमार के नाम पर करने की मांग की है।

होली पर आए थे छुटि्टयां मनाने, 15 मार्च काे गए थे 
अजय परिवार के साथ होली मनाने के बाद 15 मार्च को लेह लद्दाख ड्यूटी पर गए थे। अजय के पिता रामेश्वरलाल भवन निर्माण के मिस्त्री मजदूरी का कार्य करते हैं। घर में मां, भाई, तीन साल की बेटी हंसवी पत्नी पूनम हैं। जब शहीद की पार्थिव देह घर में पहुंची तो इन सबका रो रो कर बुरा हाल था, लेकिन सब जैसे एक दूसरे को अजय की वीरता की बातें बताकर हिम्मत बंधा रहे थे। मासूम बेटी इन सबसे बेखबर जैसे यह सोच रही थी कि पापा कब उठेंगे।

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