जोधपुर. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार बचाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, प्रदेश में यह कोई पहला मौका नहीं है जब मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी बचाने के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है। 66 साल पहले 1954 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के खिलाफ कांग्रेस में बगावत हो गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू अपने सबसे खास व्यास की कुर्सी को नहीं बचा पाए थे। इसके बाद उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद व्यास ने एक तांगे में सामान भरवाया था और मुख्यमंत्री आवास खाली कर दिया था।
सचिन पायलट की ट्वीटर खामोशी, सारा पायलट का दमदार अंदाज
दो जगह से हार कर भी मुख्यमंत्री बने थे व्यास
साल1952 में लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव हुए। जयनारायण व्यास के नेतृत्व में कांग्रेस ने 160 में से 82 सीट जीत ली, लेकिन व्यास खुद जोधपुर बी और जालोर ए सीट से चुनाव हार गए। दो सीट हारने के बाद टीकाराम पालीवाल को मुख्यमंत्री बनाया गया। पालीवाल भी इससे पूर्व व्यास के अंडर में उप मुख्यमंत्री रह चुके थे। उस समय सभी ने यह मान लिया कि व्यास की पारी का अंत हो चुका है, लेकिन खेल अभी बाकी था। किशनगढ़ से चुनाव जीतने वाले चांदमल मेहता ने अपनी सीट खाली कर दी और व्यास को वहां से उपचुनाव लड़वाया गया। व्यास के चुनाव जीतते ही प्रदेश की राजनीति के सारे समीकरण बदल गए। दिल्ली से संदेश आया और पालीवाल को इस्तीफा देना पड़ा।
विधायकों ने मतदान कर चुना नेता
1 नवंबर 1952 को व्यास मुख्यमंत्री बने। हालांकि, इसके दो साल के भीतर ही कांग्रेस के अंदर फूट हो गई। 38 साल के युवा नेता मोहनलाल सुखाड़िया ने बगावत कर दी। तब तत्कालीन पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पूरी कोशिश की व्यास की सरकार बचाने की। लेकिन, उन्हें कामयाबी नहीं मिली। कांग्रेस ने पार्टी के तत्कालीन महासचिव बलवंत राय मेहता को जयपुर भेजा। पार्टी विधायकों ने मतदान के माध्यम से नेता चुनने का फैसला लिया।
इसके बाद विधायकों ने मतदान किया। इसमें सुखाड़िया विजयी रहे। कांग्रेस कार्यालय में नतीजा आते ही व्यास एक तांगे में बैठ मुख्यमंत्री आवास पहुंचे। तब तक सुखाड़िया माणिक्य लाल वर्मा और मथुरादास माथुर को लेकर उनके घर आशीर्वाद लेने पहुंच गए। एक दौर में वर्मा और माथुर को व्यास का सबसे खास माना जाता था, लेकिन तब उन्होंने पाला बदल लिया था।
अभी भी ऐसे ही हालात
कांग्रेस की राजनीति में 66 साल बाद भी कोई खास बदलाव नहीं आ पाया है। सुखाड़िया के समान ही युवा नेता सचिन पायलट ने गहलोत के खिलाफ बगावत कर दिया है। दोनों गुट आमने-सामने आ गए हैं। तब जिस तरह व्यास को पंडित नेहरू का समर्थन हासिल था उसी तरह गहलोत को भी वर्तमान अध्यक्ष सोनिया गांधी का पूरा सपोर्ट है। अब देखने होगा कि इस बार कांग्रेस आलाकमान राजस्थान में सरकार बचा पाता है या पिर 66 साल पुराना इतिहास दोहराया जाएगा।