अटैक

Apr 01, 2022
कॅटगरी एक्शन
निर्देशक लक्ष्य राज आनंद
कलाकार जैकलीन फर्नांडीज,जॉन अब्राहम,प्रकाश राज,रकुल प्रीत सिंह,रत्ना पाठक शाह
रेटिंग 4/5
निर्माता अजय कपूर,जयंतीलाल गडा,भौमिक गोंडालिया
संगीतकार शाश्वत सचदेव
प्रोडक्शन कंपनी पेन इंडिया लिमिटेड

सार

जॉन अब्राहम की फिल्म 'अटैक' सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। जॉन की ये फिल्म देशभक्ति की कहानी पर आधारित है। 'अटैक' दो पार्ट में रिलीज होगी, आइए आपको फिल्म के पहले पार्ट का रिव्यू देते हैं।


विस्तार

सेनाओं को भविष्य के युद्ध के लिए तैयार रहना है। ये युद्ध सीमाओं पर भी होंगे, सीमाओं के भीतर भी होंगे और सीमाओं से परे भी होंगे। ये युद्ध शारीरिक शक्ति से ज्यादा मानसिक शक्ति का इम्तिहान होंगे और इम्तिहान होंगे हमारे सियासी नेताओं के। फिल्म ‘अटैक’ (Attack) एक ही फिल्म के रूप में बननी शुरू हुई, लेकिन जॉन अब्राहम की मानें तो ये फिल्म जहां आकर अपने मिशन का समापन दिखाती है, वहां से इसकी कहानी आगे जानी ही जानी है तो फिल्म का दूसरा भाग भी बनने ही वाला है। स्क्रिप्ट तैयार है। सितारे तैयार हैं, लेकिन क्या पब्लिक तैयार है, आइए इसका पता लगाते हैं। विज्ञान एक अच्छा नौकर है लेकिन इसके हाथ में मालिकाना हक दे दिया जाए तो ये सत्यानाश भी कर सकता है। यूक्रेन में दुनिया इसे देख रही है। फिल्म ‘अटैक’ (Attack) के साथ ही रिलीज हुई मार्वल कॉमिक्स की फिल्म ‘मॉरबियस’ भी विज्ञान पर नियंत्रण की ही कहानी है, लेकिन फिल्म ‘अटैक’ (Attack) पार्ट वन में संभावनाएं ज्यादा हैं और यहीं ये फिल्म अपने साथ ही रिलीज हुई हॉलीवुड फिल्म से इक्कीस साबित होती है। फिल्म का सरप्राइज हैं जैकलीन फर्नांडीज, जिन्होंने पहली बार अपने अभिनय को इतनी सहजता से परदे पर पेश किया।


कहानी एक सुपर सोल्जर की

फिल्म ‘अटैक’ (Attack) पार्ट वन वहां से शुरू होती है, जहां इन दिनों राष्ट्र प्रेम पर बनी हर फिल्म जाना चाहती है, यानी कश्मीर। अर्जुन शेरगिल के जिम्मे एक मिलिट्री ऑपरेशन है। बात आज से 10 साल पहले की है। 15 साल का एक बच्चा फिदायीन बना सामने मिलता है। अर्जुन उसे बचा भी लेता है। 10 साल बाद वही बच्चा देश के प्रधानमंत्री के सिर पर पिस्तौल सटाए संसद में बैठा है। अर्जुन को समझ आता है कि अच्छा होना अच्छी बात है, लेकिन दूसरे का अच्छा करने से पहले अपना अच्छा करना उससे जरूरी बात है। फर्क इस बीच ये आया है कि एक आतंकी हमले में वह अपनी प्रेमिका आयशा को खो चुका है। उसका शरीर भी गर्दन के नीचे से बेकार हो चुका था लेकिन सेना के एक अफसर ने एक वैज्ञानिक के साथ मिलकर उसे जीवनदान दिया। वह अब सुपरसोल्जर है।


जॉन अब्राहम का नया प्रयोग

सुपरसोल्जर की अवधारणा नई नहीं है। तमाम विदेशी फिल्मों में दर्शक इसे देख भी चुके हैं। नया है इस सुपरसोल्जर का और इसके शरीर में लगाए गए कंप्यूटरीकृत सिस्टम की कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के बीच संवाद। जॉन अब्राहम ने अमेरिका के एक दिव्यांग की कहानी से प्रेरित होकर ये कहानी सोची। फिल्म ‘न्यूयॉर्क’ के दिनों के अपने परिचित लक्ष्य राज आनंद को इस पर फिल्म बनाने की जिम्मेदारी सोची। सोचने वाली बात यहां ये है कि लक्ष्य राज आनंद को यशराज फिल्म्स की पाठशाला में ट्रेनिंग मिली। भाई भी उनका बड़ा डायरेक्टर है। लेकिन, बतौर निर्देशक उन्हें पहला मौका दिया जॉन अब्राहम ने। वह इसके प्रोड्यूसर भी हैं और जॉन की बनाई फिल्मों की एक ब्रांडिंग तो है कि ये आपको बोर नहीं करती और कुछ नया दिखा जाती है।


तकनीकी रूप से समृद्ध फिल्म

‘विकी डोनर’, ‘मद्रास कैफै’ और ‘बाटला हाउस’ जैसी फिल्मों की बनाई लीक पर आगे बढ़ती फिल्म ‘अटैक’ (Attack) पार्ट वन भूमिका बनाने में भले थोड़ी देरी करती हो और इंटरवल के पहले हिस्से में इसकी गति मध्यम भी है लेकिन इंटरवल के बाद ये बिल्कुल ‘धूम’ मचा जाती है। जॉन अब्राहम हिंदी सिनेमा की फ्रेंचाइजी फिल्मों का सबसे लोकप्रिय चेहरा रहे हैं और उनके चेहरे के मासूमियत के साथ उनकी आंखों में दिखने वाला विश्वास ही उनको इस किरदार के लिए बिल्कुल सही चुनाव बनाता है। फिल्म के एक्शन सीन्स खासे दमदार हैं और हिंदी सिनेमा में अरसे बाद कुछ अलग सा दिखने वाला एक्शन रचने के लिए इसकी पूरी टीम तारीफ की हकदार है।


जैकलीन का जानदार अभिनय

जॉन के अलावा फिल्म में जो कलाकार सबसे ज्यादा चौंकाता है वह हैं जैकलीन फर्नांडीज। आमतौर पर देह प्रदर्शन के लिए ही फिल्मों में जगह पाने वाली जैकलीन ने पहली बार अपने करियर में अच्छा अभिनय किया है। खासतौर से उस सीन में जब जॉन का सिस्टम रीबूट हो रहा होता है और कैशे क्लीयर होने से ठीक पहले दोनों की यादों की फाइल जॉन के दिमाग में चल रही होती है। रकुल प्रीत अपने करियर में जहां आ अटकी हैं, वहां उन्हें अब एक दमदार किरदार की जरूरत है। पूजा फिल्म्स की मालकिन बनने से पहले उनको अभिनय में थोड़ा नाम तो जरूर कमाना चाहिए। किरण कपूर को अरसे बाद परदे पर देखना अच्छा लगता है। प्रकाश राज और रत्ना पाठक ने अपने अपने किरदार यूं लगता है कि निपटा दिए हैं।


शाश्वत और आरिफ का कमाल

फिल्म को अपने पार्श्व संगीत और संपादन से सबसे ज्यादा मदद मिली है और इसके लिए शाश्वत सचदेव व आरिफ शेख तारीफ के सच्चे हकदार हैं। ये दोनों ही देखा जाए तो फिल्म के असल सितारे हैं। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी अलग अलग समय पर अलग अलग लोगों ने की है और इसके चलते भावनाओं के हिसाब से शॉट टेकिंग मे बदलाव भी नजर आता है। फिल्म की दो कमजोर कड़ियां हैं। एक तो इसकी पटकथा जिसमें प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का आपसी प्रेम तो दिखाया गया है लेकिन दोनों के किरदार कैरीकेचर से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। और, दूसरी कमजोरी है फिल्म का संगीत। फिल्म के गानों पर और मेहनत की जरूरत थी और जितनी सहज, सरल और प्यारी सी अर्जुन और आयशा की प्रेम कहानी है, उसमें दोनों की भावनाओं को जोड़ने का, इन्हें परदे पर दिखाने का और फिर दोनों के बिछड़ने का सुर बेहतर लग सकता था।



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