जेलर

Aug 10, 2023
कॅटगरी एक्शन कॉमेडी
निर्देशक नेल्सन दिलीपकुमार
कलाकार रजनीकान्त,रम्या कृष्णन
रेटिंग 4.5/5
निर्माता कलानिधि मारन
संगीतकार अनिरुद्ध रविचंदर
प्रोडक्शन कंपनी आमिर खान प्रोडक्शंस

सुपरस्टार रजनीकांत की फिल्मों का उनके फैंस बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं। आज रजनीकांत की फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। रजनीकांत इस फिल्म में एक ऐसे पिता की भूमिका में हैं, जिन्होंने अपने बेटे को सच्चाई के रास्ते पर हमेशा चलने के लिए प्रेरित किया है। लेकिन जब उन्हें लगता है कि उनके बताए रास्ते चलने से बेटे को एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी तो उन्हे इस बात का अफसोस भी होता है, उन्होंने बेटे को गलत शिक्षा दे दी। लेकिन अंत में ऐसे रहस्य से पर्दा उठता है कि मुथुवेल पांडियन का किरदार निभा रहे रजनीकांत खुद दंग रह जाते हैं।


फिल्म की कहानी मुथुवेल पांडियन, उर्फ मुथु एक सेवानिवृत्त जेलर हैं। जो अपने परिवार के साथ एक साधारण जीवन जीते हैं। इस फिल्म में रजनीकांत ने मुथुवेल पांडियन का किरदार निभाया है। उनका बेटा अर्जुन (वसंत रवि) एक ईमानदार पुलिस अधिकारी है। अर्जुन का वर्मा (विनकायन) के साथ झगड़ा हो जाता है, जो भगवान की प्राचीन वस्तुओं और मूर्तियों की तस्करी करता है। अचानक एक दिन अर्जुन लापता हो जाता है।  मुथु को पता चलता है कि उसके बेटे की हत्या कर दी गई है। मुथु अपने बेटे के हत्यारों का सुनियोजित ढंग से मर्डर करता है। तभी पता चलता कि उनके बेटे की हत्या नहीं हुई है, बल्कि किसी ने उसे किडनैप करके रखा है। यहां से कहानी में एक नया मोड़ आता है।


फिल्म में काफी लंबे समय के बाद रजनीकांत एक दमदार किरदार में नजर आए हैं। फिल्म के निर्देशक नेल्सन ने रजनीकांत के किरदार को बहुत ही अच्छे तरीके से फिल्म में पेश किया है। इंटरवल से पहले भाग में रजनीकांत एक सुलझे हुए शरीफ पिता के किरदार में नजर आते हैं, लेकिन जैसे -जैसे फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है, उनका खतरनाक रूप दर्शकों के सामने आता है। कहानी में जबरदस्त मोड़ तब आता है जब वह अपनी पत्नी से  कहते है कि डॉक्टर के सामने मरीज, तुम्हारे सामने शरीफ, दुनिया के सामने गुंडा मवाली, अब ऐसा नहीं होगा, अब एक ही चेहरा होगा। फिल्म में  रजनीकांत की कॉमेडी टाइमिंग का अच्छा इस्तेमाल किया गया है और योगी बाबू के साथ उनके दृश्यों ने खूब हंसाया। पहले घंटे में डार्क कॉमेडी ने काफी अच्छा काम किया। 


पूरी फिल्म देखने के बाद इसे ‘मदर इंडिया’ का आधुनिक वर्जन कह सकते है। कहानी की वन लाइन वही है, जिसे नए परिवेश में ढाला गया हैं। लेकिन फिल्म की कहानी बीच- बीच में अपना असर छोड़ देती है। फिल्म की पटकथा भी थोड़ी सी कमजोर है। निर्देशक ने रजनीकांत को शानदार तरीके से प्रदर्शित किया,लेकिन उनकी स्क्रिप्ट में पर्याप्त दम नहीं था। अगर स्क्रिप्ट पर थोड़ा  ध्यान देते तो फिल्म और बेहतर हो सकती थी। फिल्म का पहला भाग भावनात्मक रूप से अपनी पकड़ बनाने में कामयाब रहता है, लेकिन फिल्म जिस गति से चलती है, इंटरवल के बाद फिल्म अपनी असर खोने लगती है और दर्शकों को इस बात का अहसास हो जाता है कि इस फिल्म का क्लाइमेक्स भी मदर इंडिया जैसी होने वाला है। हां, फिल्म के एक्शन सीन जरूर अपना असर छोड़ते हैं। 


इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसकी हिंदी में डबिंग है। शुरुआत के सीन में कलाकारों की डबिंग इतनी लाउड की गई है कि सिर दर्द होने लगता है। लेकिन जैसे ही फिल्म में रजनीकांत की एंट्री होती है, उनके परफॉर्मेंस को देखकर सिर दर्द गायब भी हो जाता है। फिल्म का  बैकग्राउंड स्कोर कुछ दृश्यों को उभारने में सहायक था। विजय कार्तिक की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है। आर निर्मल का संपादन थोड़ा सुस्त है। इंटरवल के बाद के कुछ दृश्यों को एडिट करने की जरूरत थी। संगीतकार अनिरुद्ध रविचंदर के गीत 'तू आ दिलरुबा' को अगर छोड़ दे तो बाकी गीत कुछ खास असर नहीं छोड़ते हैं। मोहनलाल, जैकी श्रॉफ, शिव राजकुमार जैसे सितारों के कैमियो कहानी का अहम हिस्सा हैं। फिल्म में तमन्ना भाटिया ने काफी निराश किया। वह फिल्म में महज एक शो पीस की तरह नजर आई है। फिल्म के बाकी कलाकारों का परफॉर्मेंस ठीक है।


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