वार

Oct 02, 2019
कॅटगरी एक्शन ,थ्रिलर
निर्देशक सिद्धार्थ आनंद
कलाकार टाइगर श्रॉफ,वाणी कपूर,हृतिक रोशन
रेटिंग 3/5
निर्माता आदित्य चोपड़ा
संगीतकार विशाल-शेखर
प्रोडक्शन कंपनी यशराज फिल्म्स

हृतिक रोशन अपने हाथ में चुंबक पहनते हैं और पास पड़ी कुर्सी को अपनी ओर खींचते हैं. सारे दर्शक चिल्लाते हैं- धूम 2. लेकिन धूम फ़्रेंचाइज़ का ये नास्टैल्जिया यहीं खत्म नहीं होता. कार चेज़, बाइक चेज़, डांस सिक्वेंस, फाइट सीन्स और यश राज का बैनर. ऐसी कई चीज़ें हैं जो इस फिल्म को धूम फ़्रेंचाइज़ की ही मूवी सरीखा बना देती हैं.

कहानी-

अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की जयंती के दिन रिलीज़ हुई ‘वॉर’ कबीर और खालिद, यानी गुरु और चेले की कहानी है, जिसमें गुरु जब करप्ट हो जाता है तो चेले को टास्क दिया जाता है कि जाओ उसे रोको. फिल्म का ट्रेलर देखते वक्त ही आपको अंदाज़ा हो गया होगा कि कहानी कुछ बुरी तरह फ्लॉप बॉलीवुड मूवीज़ का मैशअप है- जैसे कोहराम, अय्यारी वगैरह. इसके अलावा आगे जो होता है, वो शायद लेखक को लिखते वक्त शॉकिंग या सरप्राइजिंग लगा हो पर दर्शकों को नहीं.

हां तो, गुरु हैं हृतिक रोशन, चेले हैं टाइगर श्रॉफ और गुरु को रोकने का टास्क देते हैं आशुतोष राणा जिन्होंने इस फिल्म में कर्नल लूथरा का किरदार निभाया है.

वाणी कपूर इसमें एक ‘सिविल एसेट’ बनी हैं. एसेट बोले तो वो लोग जो मिलट्री, पुलिस या डिफेंस में नहीं होकर भी उनकी हेल्प करते हैं.

फिल्म का क्लाइमेक्स ‘दी डार्क नाइट’ सरीखा लगता है जहां टाइगर श्रॉफ का किरदार हार्वी डेंट और हृतिक रोशन का बैटमैन की याद दिलाता है. साथ में जिस तरह से एंड होती है उससे ये भी लगता है कि ‘वॉर टू’ भी ज़रूर आएगी.

कुछ, जो बुरा लगा-

फिल्म देखकर आपको यकीन हो जाएगा कि इसकी कास्टिंग पहले हुई है और स्क्रिप्ट बाद में लिखी गई है. क्यूंकि हृतिक, टाइगर और इन दोनों के ब्रोमांस के अलावा स्क्रिप्ट में ज़्यादा कुछ नहीं है. ‘फेस-ऑफ’ मूवी की तरह प्लास्टिक सर्जरी की नींव के ऊपर सस्पेंस की पूरी इमारत खड़ी कर लेना एक लेज़ी स्क्रिप्ट का उदाहरण है.

इंट्रेस्टिंग बात ये कि वाणी ‘वॉर’ में कास्ट किए जाने से पहले रियल लाइफ में काफी प्लास्टिक सर्जरियों से गुजरी हैं, इसलिए ये जानने के लिए कि ये ‘बेफिक्रे’ वाली ही वाणी कपूर हैं या नहीं, आपको उन्हें गौर से देखना पड़ेगा. लेकिन गौर से देखने का ये वक्त ‘वॉर’ आपको देती नहीं. वाणी के छोटे से रोल के चलते. सेकेंड हाफ के बाद और चंद मिनटों के लिए- टू लिटिल टू लेट.

 कुछ अच्छी बातें-

फिल्म में आर्ट और हार्ट नहीं है लेकिन टेक्निकली और क्राफ्ट के लिहाज़ से ये एक बहुत स्ट्रॉन्ग मूवी है. कुछ सीन वाकई कमाल के हैं. जैसे अंटार्कटिका की बर्फ में फिल्माया कार चेज़ और गलियों से लेकर सीढ़ियों में चल रहा एक बाइक चेज़ सीक्वेंस. इस दौरान बैकग्राउंड म्यूज़िक भी नया सा है. ‘ढे़ंट ढे़ंण’ से थोड़ी अलग. थोड़ी सॉफ्ट. मगर पर्दे पे जो चल रहा है उसे कॉम्प्लीमेंट करता. आसमान से हज़ारों फीट ऊपर एरोप्लेन का फाइट सीन और उसके स्टंट आपको ‘दी डार्क नाइट राइजेज़’ के ओपनिंग सीन की याद दिलाते हैं. टाइगर जिस सीन में एंट्री करते हैं, उसे देखकर लगता है कि ये एक लम्बा इंगेजिंग वन शॉट सीन है जिसमें शायद ही कैमरे को कट बोला गया होगा.

देश विदेश के 17 से ज़्यादा शहरों की सिनेमाटोग्राफी बहुत खूबसूरत है. ड्रोन शॉट्स, बर्ड आई व्यू और स्लो-मो शॉट्स ‘व्यूइंग प्लेज़र’ वाली कैटेगरी में आते हैं.

कुछ औसत-

म्यूज़िक औसत है तो लिरिक्स ऐसी कि गीत आपको न रिमिक्स लगेंगे न ऑरिजनल- ‘घूंघरू टूट गए’ और और ‘जय जय शिवशंकर’ जैसे मुखड़े आप पहली बार नहीं सुन रहे होते हैं. और अंतरे दोबारा नहीं सुनना चाहते. हृतिक और टाइगर का डांस कमाल है, जो ‘वॉर’ के प्रोड्यूसर्स जानते हैं. और उसे कैश करवाने की कोशिश यू ट्यूब में इसे रिलीज़ करते वक्त की गई पैकेजिंग से ही पता लग जाती है.

अंततः-

फिल्म में एक जगह वाणी का किरदार हृतिक से कहता है कि तुम्हें शहीद होने की पड़ी है क्यूंकि घर में तुम्हारा कोई इंतज़ार नहीं कर रहा. इस फिल्म के साथ भी यही बात लागू होती है. फिल्म शहीद हो जाती है क्यूंकि इसमें घर वापस आने के लिए कोई सब्सटेंस नहीं है. फिल्म एक ऐसा गिफ्ट है जिसका रैपर बहुत बढ़िया है लेकिन उसके अंदर प्लास्टिक का पेंसिल बॉक्स रखा हुआ है.


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