गुड न्यूज़

Dec 27, 2019
कॅटगरी कॉमेडी
निर्देशक राज मेहता
कलाकार अक्षय कुमार,करीना कपूर खान,कियारा आडवाणी,दिलजीत दोसांझ
रेटिंग 3.5/5
निर्माता हिरो यश जौहर
संगीतकार तनिष्क बागची
प्रोडक्शन कंपनी धर्मा प्रोडक्शंस

मुंबई के बत्रा कपल, यानी दीप्ति और वरुण के घर में चंडीगढ़ के बत्रा कपल, यानी मोनिका और हनी आने वाले हैं। इस मीटिंग से पहले वरुण गांजा फूंक लेता है। ताकि इस मीटिंग में होने वाली टेंशन के वक्त वो कंपोज्ड रहे। लेकिन जो सस्ता नशा वरुण ने किया है, उसके चलते वो इस पूरी मीटिंग के दौरान अपनी हंसी नहीं रोक पाता।

इस पूरे सीन को देखकर आपको लगता है कि शायद वरुण का कैरेक्टर निभाने वाले अक्षय कुमार वाकई अपनी हंसी नहीं रोक पाए होंगे। और जब कई रिटेक के बाद भी सीन ओके न हुआ होगा, तो उसे जस का तस मूवी में डाल दिया गया होगा। फिर स्क्रिप्ट में थोड़ी हेर-फेर करके शुरू में गांजे वाला सीन भी डाल दिया गया होगा। गौर से देखने पर पाएंगे कि करीना भी साइड में बैठी अपनी हंसी रोकती दिखती हैं।

यूं मूवी बनाते वक्त की मस्ती, एनर्जी और वो टेंपरामेंट मूवी बन चुकने के बाद भी मूवी में दिखाई देता है। और ‘गुड न्यूज़’ सुबह के अखबार में आई किसी बेहतरीन खबर सरीखी हर-सू, रिफ्रेशिंग और पॉजिटिव लगती है। कोई आश्चर्य न होगा, अगर आने वाले सालों में ये एक कल्ट का दर्ज़ा हासिल कर ले। स्लैपस्टिक कॉमेडी के दौर में एक बढ़िया सिचुएशनल कॉमेडी मूवी है ‘गुड न्यूज़’।

दो कपल हैं। दोनों के लास्ट नेम बत्रा। मुंबई वाले बत्रा कपल के बच्चे नहीं हो रहे। 5 साल से। चंडीगढ़ वाले बत्रा कपल के दो बार होने को थे, तो दोनों बार मिसकैरेज हो गया। अब दोनों कपल आर्टिफिशियल तरीके से बच्चे पैदा करना चाहते हैं। आईवीएफ तकनीक से। इन विट्रो फर्टिलाइजेशन। मतलब स्पर्म और एग्स को लेबोरेटरी में मिलाया जाएगा, फिर फर्टिलाइजेशन के बाद मां के पेट में इंजेक्ट कर दिया जाएगा। इस पूरी प्रोसेस में स्पर्म की अदला-बदली हो जाती है। फिर जो ‘गूफ अप’ होते हैं, वही सारे ‘गुड न्यूज़’ में बड़े कॉमिक और कहीं-कहीं इमोशनल ढंग से दिखाए गए हैं।

दीप्ति बत्रा का किरदार करीना कपूर ने प्ले किया है। दीप्ति इस मूवी का सबसे सीरियस कैरेक्टर है। जिसके पास मूवी के इमोशनल कोशंट को बनाने और बढ़ाने का ज़िम्मा है। लेकिन जहां कहीं भी ह्यूमर की दरकार है, वहां ये किरदार गियर बदलते देर नहीं करता। अगर भविष्य में करीना के सबसे बेहतरीन रोल की चर्चा होगी, तो उसमें दीप्ति बत्रा का नाम भी ज़रूर आएगा।

‘हाउसफुल 4’ में अक्षय के किरदार को देखकर अफ़सोस हो रहा था कि यार इस बंदे की कॉमिक टाइमिंग इतनी अच्छी है, लेकिन अगर कुछ पावरफुल डायलॉग और सीन मिल जाते, तो कमाल ही हो जाता। यहां वो अफ़सोस जाता रहता है।

दिलजीत दोसांझ की एंट्री से पहले ही मूवी पेट में कम दर्द नहीं कर रही थी। फिर उनकी एंट्री के बाद तो लगता है कि हंसी की डोज़ बढ़ाकर 250 से सीधे 500 एमजी कर दी गई हो। हालांकि उनका कैरेक्टर थोड़ा पंजाबी स्टीरियोटाइप लगता है।

उनके साथ कियारा आडवानी मिलकर हनी-मोनिका नाम का क्यूट कपल बनाती हैं। जैसा कि वो खुद भी अपने आप को एक जगह कहते हैं। कियारा का बाकी लीड एक्टर्स के मुकाबले रोल कुछ छोटा है। लेकिन इसके बावज़ूद उनका पंजाबी एक्सेंट और मैनरिज्म देखकर आप उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे।

इन चारों के अलावा आदिल हुसैन और टिस्का चोपड़ा, डॉक्टर कपल बने हैं और जहां कहीं भी दिखते हैं, जंचते हैं। आदिल हुसैन के किरदार, डॉक्टर आनंद के हिस्से भी कई ह्यूमरस सीन आए हैं। जैसे डिलीवरी के दौरान प्रेयर पढ़ना या डिलीवरी करने से पहले अपनी आंख में आई ड्रॉप डालना।

 गुड न्यूज़: लल्लन ख़ास

ये एक कॉमर्शियल सिनेमा है। इसलिए सबसे पहला सवाल यही होना चाहिए कि क्या मूवी एंटरटेनिंग है? जवाब है कि बहुत। ये मूवी आपके पेट और गालों में दर्द कर देगी। ह्यूमर इतना और ऐसा कि आप अपनी या थियेटर में बगल में बैठे इंसान की हंसी से अगला पंच मिस कर सकते हैं।

राज मेहता की डायरेक्टोरियल डेब्यू ‘गुड न्यूज़’ के डायलॉग और सीन ढेरों रेफरेंस और इस्टर एग्स से भरे पड़े हैं और इस तरह एक प्रीमियम और इंटेलिजेंट लाफ्टर पैदा करते हैं। जैसे ‘स्टार किड’ वाला रेफरेंस जो अप्रत्यक्ष रूप से करीना के बेटे तैमूर को टारगेट करता हो या फिर अक्षय की ‘केसरी’ वाला रेफरेंस या खबरों से मूवी स्क्रिप्ट बना लेने का रेफरेंस या सर्जिकल स्ट्राइक वाला रेफरेंस या उबर के ड्राइवर्स का रेफरेंस।

कुछ पन या शब्दों के खेल भी बड़े मज़ेदार हैं। जैसे- ‘मोरनी बागा में बोले आधी रात को’  वाले गीत में मोरनी की जगह ‘ओवरी’ डाल देना या ‘रात पश्मीने की/रात पसीने की’ वाला या ‘ओला/होला’ वाला पन।

ऋषभ शर्मा के लिखे ज़्यादातर डायलॉग ऑरिजनल हैं। उस तरह के व्हाट्सएप फ़ॉरवर्ड नहीं, जैसे आजकल की मूवीज़ के चलन बन गए हैं।

कुछ सीन ऐसे हैं, जो शायद एक ‘वेल स्क्रिप्टेड मूवी’ में न लिए जाते। या उनमें एडिटिंग डेस्क पर कैंची चला दी जाती। लेकिन ‘गुड न्यूज़’ में यही सीन मूवी को और रियल बना देते हैं। ये सीन कहानी को आगे बढ़ाने या फिर इमोशन या लाफ्टर पैदा करने के हिसाब से गैरज़रूरी होते हुए भी डिटेलिंग और प्रोडक्शन के दौरान की ‘तसल्ली’ को दर्शाते हैं। जैसे जब अक्षय का किरदार अपना फोन फेंककर तोड़ चुका होता है और करीना का तोड़ने वाला होता है। या फिर एक गाड़ी वाले को अक्षय का किरदार इसलिए टोकता है, क्योंकि वो हॉस्पिटल में हॉर्न बजा रहा होता है। या फिर उबर बुक करने के बाद 12 मिनट का वेट टाइम।

मूवी का ह्यूमर, मूवी के मैसेज और इसके इमोशन के आड़े नहीं आता और कई सीन आपकी आंखों को ख़ुशी से भिगोने तक का माद्दा रखते हैं। खास तौर पर क्लाइमेक्स के कुछ सीन। ह्यूमर और इमोशन का ये कॉन्ट्रास्ट एक बहुत उजली तस्वीर बनाने में सफल रहता है। बाकी बचा हुआ फिनिशिंग और पैकेजिंग का काम कर देता है करण जौहर का प्रोडक्शन हाउस धर्मा प्रोडक्शन।

मूवी की सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें स्टार अक्षय, करीना या दिलजीत नहीं स्क्रिप्ट है। बाकी डिपार्टमेंट, जैसे- म्यूज़िक, कोरियोग्राफी और सिनेमाटोग्राफ़ी भी ठीक-ठाक हैं। रेगुलर।

 गुड न्यूज़: गंदी बात

बहुत बड़े स्तर पर तो मूवी में ज़्यादा कुछ बुरा नहीं है। लेकिन फिर भी कुछ छोटी-मोटी चीज़ें हैं, जो खटकती हैं। जैसे मूवी के दूसरे ही सीन में अक्षय का सिगरेट पीते हुए दिखना, जबकि कुछ मिनट पहले ही वो नंदू को ऐसा न करने और सिगरेट में मौत के छुपे होने का ज्ञान दे रहे थे। अगर ये सिगरेट वाला सीन थोड़ी देर बात आता तो शायद उतना नहीं खटकता, लेकिन मूवी शुरू होने से पहले आने वाले सामजिक संदेश से प्रॉक्सिमिटी के चलते और भी ज़्यादा बुरा लगता है।

कहीं-कहीं ‘कपिल शर्मा’ ब्रांड ह्यूमर का सहारा लिया गया है, जैसे एक छोटे कद के वेटर को ‘बेबी’ कहकर ह्यूमर पैदा करना या फिर प्रेगनेंसी को लेकर अक्षय के किरदार का ‘कैजुअल’ बिहेवियर। हालांकि इसे लेकर वो अंत में सॉरी भी होता है, लेकिन तब तक ये ‘चिड़िया चुग गई खेत’ की कैटेगरी में आ चुकता है।

मूवी एक फैमिली मूवी होते-होते रह जाती है। जब लोहड़ी-होली टाइप बिलो दी बेल्ट जोक्स, स्लिप डिस्क टाइप पन और ड्रग्स को पॉज़िटिव दिखाते सीन इसमें सुनने और दिखने को मिल जाते हैं।

हमने पहले बताया था कि मूवी का ह्यूमर, मूवी के मैसेज और इसके इमोशन के आड़े नहीं आता, लेकिन इसका उल्टा सच नहीं है। मलतब कई जगह जब मूवी कॉमिक से इमोशनल सीन में स्विच कर रही होती है, तो ये स्मूदली नहीं होता। एक कर्व के बदले एक एज-सा बनता है। चुभता है ये ट्रांजिक्शन। यूं कहानी बढ़ाने के लिए ज़रूरी इमोशनल सीन ही कभी-कभी बाधा की तरह आते लगते हैं।

‘दिल लेना दिल देना’ गीत जिस जगह पर बैकग्राउंड म्यूज़िक की तरह यूज़ किया गया है, वहां पर इसका म्यूज़िक तो बहुत सही लगता है लेकिन लिरिक्स मिसप्लेस्ड लगती हैं।

पोस्टमॉर्टम हाउस

‘कॉमेडी मूवीज़’ के नाम पर इस साल ढेरों मूवीज़ आईं, उनमें से ज़्यादातर मूवीज़ केवल कहने भर के लिए कॉमेडी मूवीज़ थीं। लेकिन साल खत्म होते-होते ये मूवी आई। मूवी, जो सिनेमा, दर्शकों और फेस्टिव सीज़न सबके लिए एक ‘गुड न्यूज़’ है। और यूं इसके प्रोड्यूसर्स भी अगले कुछ हफ्तों तक गुड न्यूज़ सुनते रहने वाले हैं। बॉक्स ऑफिस से, डिस्ट्रीब्यूटर्स से, अवार्ड्स ज्यूरी से और हम समीक्षकों से।


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